मंगलवार, 22 जुलाई 2025
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. फिल्म समीक्षा
Written By समय ताम्रकर

द ट्रेन : टाइमपास सफर

द ट्रेन रक्षा मिस्त्री एचएस हैदराबादवाला
निर्माता : नरेन्द्र बजाज, श्याम बजा
निर्देशक : रक्षा मिस्त्री, एचएस हैदराबादवाला
संगीत : मिथु
कलाकार : इमरान हाशमी, गीता बसरा, सयाली भगत, असीम मर्चेण्ट

PR
रक्षा मिस्त्री और एचएस हैदराबादवाला निर्देशित फिल्म ‘द ट्रेन : सम लाइन्स शुड नेवर बी क्रॉस्ड’ शादी के बाद अवैध संबंध और ब्लैकमेल पर आधारित है। एक चालाक लड़की अपने प्रेमी के साथ शादी-शुदा नायक को अपने जाल में फंसाती हैं। फिर शुरू होता है ब्लैकमेल का दौर। इस प्रकार की कई फिल्में पहले भी आ चुकी हैं। ज्यादा दूर नहीं जाए तो ‘जहर’ व ‘जिस्म’ का विषय भी कुछ ऐसा ही था जिसमें लड़की के मोह में फंसकर नायक अपना सब कुछ खो बैठता है।

ऐसी फिल्मों में रहस्य बरकरार रहें तभी दर्शकों को मजा आता है। लेकिन ‘द ट्रेन’ में आधा घंटे बाद ही सारी कहानी समझ में आ जाती है और सारे ट्विस्ट और टर्न जाने-पहचाने से लगते हैं। कहानी को ज्यादा घुमाव-फिराव देने के बजाय सीधे-सपाट पेश किया गया है।

विशाल (इमरान हाशमी) और अंजली (सयाली भगत) शादी-शुदा हैं और दोनों के बीच तनाव है। उनकी बेटी निक्की बीमार है और उसकी किडनी बदली जानी है। विशाल ऑफिस रोजाना ट्रेन से जाता है और उसकी मुलाकात रोमा (गीता बसरा) से होती है।

दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। दोनों के अवैध रिश्ते को तीसरा आदमी जान लेता हैं और शुरू होता है ब्लैकमेल का दौर। विशाल ने जो पैसे अपनी बेटी के इलाज के लिए बचाए थे वह सारे उसे ब्लैकमेलर को देने पड़ते हैं। एक दिन विशाल को पता चलता है कि जो ब्लैकमेलर हैं वह असल में रोमा का प्रेमी हैं और उन दोनों ने उसे फंसाया है। अंत में रोमा और उसका प्रेमी मारा जाता है और विशाल को पैसे वापस मिल जाते हैं।

शुरूआत में फिल्म बेहद धीमी गति से चलती है और बोर करती है। अंजली और विशाल के झगड़े नाटकीय लगते हैं। उनके विवादों के पीछे कोई ठोस आधार नहीं तैयार किया गया है। असीम मर्चेण्ट के आने के बाद फिल्म में थोड़ी जान आती है।

पूरी फिल्म विदेश में फिल्मायी गई है और अब ये माना जाने लगा है कि सभी जगह भारतीय किरदार मौजूद रहते हैं। निर्देशक ने फिल्म के नाम पर थोड़ी छूट ले ली है। बैंकाक की पुलिस को भी उसने भारतीय पुलिस समान मान लिया है। मर्डर हो जाते हैं और पुलिस को ये पता ही नहीं चलता कि कातिल कौन है? रजत बेदी के रूप में एक पुलिस ऑफिसर का चरित्र रखा गया है लेकिन ठीक से उसका विस्तार नहीं किया गया।

कुछ लोगों को यह बात अखर सकती हैं कि अपनी मरणासन्न बेटी के इलाज के लिए जमा पैसे कोई बाप कैसे अपने अवैध रिश्ते को छुपाने के लिए ब्लैकमेलर को दे सकता है। अंजली से छिपाने के लिए विशाल यह सब करता है। आखरी में वह जब वह फंस जाता है तो खुद ही अंजली के सामने अपना गुनाह कबूल लेता है। ऐसा वह पहले भी कर सकता था।

इमरान हाशमी को अपना वजन कम करना चाहिए। बड़ी हुई दाढ़ी और बिखरे बाल में वे बीमार जैसे लगे। अभिनय उनका ठीक-ठाक है लेकिन आवाज की वजह से वे मार खा जाते हैं। दोनों नायिकाओं को अभी अभिनय सीखना होगा लेकिन सयाली भगत गीता बसरा के मुकाबले ज्यादा अच्छी लगीं। विलेन के रूप में असीम मर्चेण्ट अपनी छाप छोड़ते है।

रक्षा और हैदराबादवाला का निर्देशन उनकी पिछली फिल्म ‘द किलर’ के मुकाबले कमजोर हैं। हालांकि फिल्म की स्क्रिप्ट कमजोर होने का असर उनके निर्देशन पर भी पड़ा। संगीतकार मिथुन ने ‘वो अजनबी’ की धुन अच्छी बनाई है। सईद कादरी के लिखे गीत अर्थपूर्ण है।

यदि सिर्फ टाइमपास करना हों तो ‘द ट्रेन’ में बैठा जा सकता हैं।