रंग रसिया के पहले शॉट में दिखाया गया है कि राजा रवि वर्मा द्वारा बनाए गए एक चित्र की नीलामी हो रही है। चित्र को अश्लील मानकर विरोध हो रहा है। लगभग 130 वर्ष पूर्व भी यही स्थिति थी जब चित्र बनाने वाले राजा रवि वर्मा के चित्रों को अश्लील मानकर मुकदमा चला गया था। धर्म के रक्षक तब भी उनके खिलाफ थे। यानी कि इतने वर्षों के बावजूद तकनीकी रूप से कई परिवर्तन हुए हैं, लेकिन सोच के स्तर पर कोई खास तरक्की नहीं हुई है।
स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति वाले मुद्दे पर वर्षों से बहस जारी है और लगता नहीं है कि निकट भविष्य में भी यह बहस खत्म होगी। सेंसर बोर्ड जैसे संस्थान भी हैं जो तय करते है कि कितनी स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। राजा रवि वर्मा अपने द्वारा बनाए गए न्यूड फोटो पर बवाल मचाने वालों से कहते हैं कि हमारी संस्कृति इतनी कमजोर नहीं है कि एक नंगे बदन पर टूट जाए।
ये आश्चर्य की बात है कि रवि वर्मा, जिन्हें केरल के एक राजा ने उनकी प्रतिभा को देख राजा की उपाधि दी, ने हिंदुओं के देवी-देवताओं को चेहरा और स्वरूप दिया, उन पर फिल्म इतने वर्षों बाद बनाई गई। इन चित्रों को बनाने के पहले उन्होंने वेद-पुराण का गहरा अध्ययन किया। देश भर में घूमे और उसके बाद देवी-देवताओं के चित्र बनाए।
लीथोग्राफी प्रिंटिंग के माध्यम से उनके यह बहुरंगी चित्र कागज पर उपलब्ध होकर घर-घर में पहुंचे। दीवारों पर चिपका कर लोगों ने उनकी पूजा की। अछूत मानकर जिन्हें मंदिरों में प्रवेश नहीं दिया जाता था उनके लिए वे भगवान को मंदिर से बाहर उनके घर ले आए। आज भी हम कागज पर छपे भगवान के फोटो के आगे नतमस्तक होते हैं उनमें से ज्यादातर राजा रवि वर्मा के हैं।
रवि वर्मा का यह सफर आसान नहीं था। धर्म के ठेकेदार उनसे पूछते हैं कि किसने उसे हक दिया है कि वह देवी देवताओं के चित्र बनाए। बात तब और बढ़ जाती है जब जिस स्त्री का चेहरा उसने देवी के लिए उपयोग किया था वही चेहरा वह न्यूड फोटो में भी इस्तेमाल करता है, लेकिन फिल्म में दिखाया गया है कि इसमें रवि वर्मा की गलती नहीं थी।
भारतीय सिनेमा भी राजा रवि वर्मा का कर्जदार है क्योंकि भारतीय सिनेमा के पितामह धुंडीराज गोविंद फालके (दादा साहेब फालके) ने न केवल राजा रवि वर्मा के साथ काम किया बल्कि राजा रवि वर्मा ने उन्हें आर्थिक मदद भी की जिसकी मदद से दादा फालके भारत में सिनेमा को ला सके।
फिल्म रंजीत देसाई के बायोग्राफिकल नॉवेल 'राजा रवि वर्मा' पर आधारित है। केतन मेहता धन्यवाद के पात्र हैं कि वर्तमान पीढ़ी को उन्होंने राजा रवि वर्मा से परिचित कराया। राजा रवि वर्मा की पूरी जिंदगी को कुछ घंटे की फिल्म में समेटा है जो इतना आसान नहीं था। फिल्म से ज्यादा हमें राजा रवि वर्मा का काम और जीवन संघर्ष प्रभावित करता है।
फिल्म में ऐसे कुछ दृश्य हैं जिन्हें हटाया जा सकता था। साथ ही कुछ प्रसंग, जैसे राजा रवि वर्मा के भाई वाला किस्सा, उनके द्वारा छोड़ी गई पत्नी का क्या हुआ, अधूरे लगते हैं। इनका ठीक से विस्तार नहीं हुआ है। बावजूद इन कमियों फिल्म बांधकर रखती है।
रवि वर्मा और उनकी प्रेरणा सुगंधा के रिश्ते को बारीकी से रेखांकित किया गया है। इस रिश्ते को देख रवि वर्मा का स्वार्थी रूप भी सामने आता है। केतन मेहता ने रवि वर्मा की जिंदगी के साथ कला की अभिव्यक्ति वाले विचार को भी अच्छी तरह गूंथा है। फिल्म दर्शाती है कि काबू कुछ ही चीजों पर किया जा सकता है। खयालात पर काबू पाना बूते की बात नहीं है। फिल्म को एक पेंटिंग की तरह शूट किया गया है। संवादों में गहराई है। गीत-संगीत फिल्म के मूड के अनुरूप हैं।
रणदीप हुडा ने लीड रोल निभाया है। इसे उनके करियर का बेहतरीन काम कहा जा सकता है। हालांकि कई बार उनकी पकड़ से किरदार छूटा भी है। खासतौर पर जब उन्हें बूढ़ा दिखाया गया है तब उनका अभिनय कमजोर रहा है। नंदना सेन की अदाकारी बेहतरीन है। बोल्ड किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया है। विक्रम गोखले, दर्शन जरीवाला, परेश रावल, आशीष विद्यार्थी, सचिन खेड़ेकर, टॉम अल्टर जैसे बेहतरीन अभिनेता यदि सपोर्टिंग कास्ट में हो तो फिल्म का स्तर बढ़ जाता है।
रंग रसिया एक उम्दा फिल्म है। एक बेहतरीन चित्रकार से रूबरू कराने के साथ-साथ यह फिल्म कुछ प्रश्न भी उठाती है जिनके बारे में सोचते हुए दर्शक सिनेमाघर से बाहर निकलता है।
बैनर : माया मूवीज, इनफिनिटी फिल्म्स
निर्माता : आनंद महेंद्रू, दीपा साही
निर्देशक : केतन मेहता
संगीत : संदेश शांडिल्य
कलाकार : रणदीप हुडा, नंदना सेन, परेश रावल, आशीष विद्यार्थी, सचिन खेडेकर, प्रशांत नारायण
सेंसर सर्टिफिकेट : केवल वयस्कों के लिए * 16 रील
रेटिंग : 3.5/5