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Last Updated : शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023 (15:22 IST)

12th Fail movie review: हारा वही जो लड़ा नहीं

चम्बल को डाकुओं के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां पर रहने वाले एक लड़के मनोज शर्मा ने तमाम विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए अपना सपना पूरा किया और चम्बल क्षेत्र का नाम रोशन किया। 12वीं में वह इसलिए फेल हो गया था क्योंकि एक पुलिस ऑफिसर ने उसे चीटिंग नहीं करने दी थी। उस पुलिस ऑफिसर की ईमानदारी इस किशोर के दिल को छू गई और उसने वैसा ही ऑफिसर बनने की ठानी। यदि मेरे जैसा ऑफिसर बनना है तो चीटिंग छोड़ना पड़ेगी। उस पुलिस ऑफिसर की इस बात की मनोज शर्मा ने गांठ बांध ली और फिर कभी बेईमानी नहीं करते हुए ईमानदारी की बेहद कठिन डगर पकड़ ली और तमाम मुश्किलों को पार करते हुए सफल होकर ही दम लिया। 
12th Fail movie review: हारा वही जो लड़ा नहीं - 12th Fail movie review directed by Vidhu Vinod Chopra
 
निर्देशक विधु विनोद की फिल्म 12th Fail अनुराग पाठक के इसी नाम से लिखे गए उपन्यास से प्रेरित है। यह उपन्यास आईपीएस ऑफिसर मनोज कुमार शर्मा और आईआरएस ऑफिसर श्रद्धा जोशी की रियल स्टोरी है। विधु विनोद ने फिल्म के नाम पर थोड़ी-बहुत छूट लेते हुए 12th Fail फिल्म बनाई है जो उन लोगों को प्रेरित करती है जो तमाम अभावों के बावजूद बड़े सपने देखते हुए उन्हें पूरा करने का साहस रखते हैं। 
 
मनोज शर्मा के पिता ईमानदार होने के कारण सस्पेंड हो गए और कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। घर की आर्थिक स्थिति अत्यंत ही नाजुक है। मां और भाई मजदूरी करते हैं। छोटी बहन भी है। किसी तरह मनोज शर्मा बीए करता है और फिर ग्वालियर होते हुए दिल्ली जा पहुंचता है ताकि यूपीएससी की तैयारी कर सके। 
 
लाइब्रेरी में साफ-सफाई, टॉयलेट क्लीनिंग, आटा चक्की में वह 15 घंटे वह काम करता है, 6 घंटे पढ़ाई करता है और 3 घंटे सोता है। पैसों के नाम पर उसके पास कुछ नहीं है, लेकिन उसके इर्दगिर्द कुछ मददगार लोग हैं जिनकी सहायता पर उसकी गाड़ी चलती रहती है। ये वो लोग हैं, जो भेड़-बकरियां कहलाते हैं और दिल्ली के मुखर्जी नगर में रह कर यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं। 
 
12th Fail मनोज शर्मा के संघर्ष की दास्तां बयां करती है। यह एक डॉक्यूमेंट्री भी हो सकती थी, लेकिन विधु विनोद ने इसमें ड्रामा, इमोशन, रोमांस और कॉमेडी के सहारे एक फिल्म का रूप दिया है। उन्होंने वास्तविक कहानी में जो कल्पना डाली है उसका संतुलन इस तरह बनाए रखा है कि मनोज शर्मा की मूल कहानी को वो डिस्टर्ब ना करें। मनोज शर्मा के संघर्ष पर नकलीपन हावी न हो।  
 
12th Fail का अंत सभी को पता है और सारा जोर मनोज शर्मा की संघर्ष यात्रा पर है। तमाम तकलीफों से जूझते हुए मनोज पर दर्शकों को तरस नहीं आता बल्कि उसके हौंसले और हार नहीं मानने वाले गुण पर गर्व होता है और यही बात फिल्म को देखने लायक बनाती है। बहुत ज्यादा मेलोड्रामा फिल्म के संतुलन को बिगाड़ सकता था और इस पर विधु विनोद चोपड़ा ने कड़ी निगाह रखी। 
 
मनोज की कहानी के साथ पृष्ठभूमि में कई घटनाएं होती हैं। दर्शाया गया है कि सिस्टम में अभी भी बहुत सारे पूर्वाग्रह और पक्षपात हैं, जो मनोज जैसे लोगों के लिए जीवन को कठिन बना देते हैं। परीक्षा का सिस्टम, पुलिस का भ्रष्टाचार, नेताओं की दादागिरी, गरीबों के साथ अत्याचार, कोचिंग वालों की बेइमानी वाले मुद्दों को मनोज की कहानी में इस तरह से गूंथा गया है कि ये अलग से चिपकाए हुए नहीं लगते।

 
अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणादायक कविता और अब्दुल कलाम के स्ट्रीट लाइट में पढ़ने वाले किस्सों का समय-समय पर जिक्र होता रहता है, ये वो उन छात्रों के लिए सबक है जो अपनी असफलता का दोष अभावों को देते हैं। फिल्म इस बात पर भी जोर देती है कि भाषा सफलता में बाधा नहीं बनना चाहिए क्योंकि भारत में हिंदी मीडियम और अंग्रेजी मीडियम को लेकर पूर्वाग्रह हैं।
 
फिल्म में कुछ उम्दा इमोशनल सीन हैं, जैसे तमाम अभावों के बावजूद मनोज की मां का यह बताना कि वे जिंदगी में बेहद खुश है, मनोज का दमघोंटू आटा चक्की में काम करना, मनोज का ऑफिसर बनने के बाद उस पुलिस ऑफिसर से मिलना जिससे उसे प्रेरणा मिली थी, इंटरव्यू के दौरान मनोज का गर्लफ्रेंड श्रद्धा का लेटर पढ़ना। बीच में कुछ हल्के-फुल्के सीन भी आते हैं जैसे इंटरव्यू के पहले हेअर कट करने वाले शख्स का मनोज से यह पूछना कि आईएएस कट करूं या आईपीएस कट। फ्रेंडशिप और रोमांस को लेकर भी कुछ उम्दा सीन देखने को मिलते हैं।
 
फिल्म में वाइस ओवर बहुत ज्यादा है, जिससे बचा जा सकता था। फिल्म की लंबाई को कम करने की गुंजाइश भी नजर आती है।
 
निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने मनोज शर्मा की कहानी को दिलचस्प तरीके से पेश किया है। बिना कट किए लंबे शॉट उन्होंने फिल्माए हैं जिसमें कैमरा किरदारों का पीछा करता है। बैकग्राउंड म्यूजिक में उन्होंने गाड़ियों के शोर के जरिये किरदारों की मनोदशा दिखाई है। तनाव के क्षणों में मनोज के कान सुन्न हो जाते हैं जो दर्शकों पर भी असर छोड़ते हैं। विधु विनोद ने फिल्म को रियलिटी के करीब रखा है जिससे यह मुद्दों पर मजबूती से प्रहार करती है। 
 
फिल्म के सभी कलाकारों का अभिनय शानदार है। लीड रोल में विक्रांत मैसी कमाल करते हैं। उनके किरदार में कई रंग हैं और विक्रांत ने इन्हें फीका नहीं पड़ने दिया है। मजबूरी, गरीबी, हौंसला, लड़ने का माद्दा उनके एक्सप्रेशन्स में नजर आते हैं।   
 
मेधा शंकर, प्रियांशु चटर्जी, अंशुमन पुष्कर, गीता अग्रवाल सहित सारे कलाकार अपने किरदारों के साथ न्याय करते हैं। 
 
12वीं फेल जिस उद्देश्य के लिए बनाई गई है उस पर खरी उतरती है। 
  • निर्देशक: विधु विनोद चोपड़ा
  • फिल्म : 12th-fail
  • गीतकार : स्वानंद किरकिरे
  • संगीतकार : शांतनु मोइत्रा 
  • कलाकार : विक्रांत मैसी, मेधा शंकर, प्रियांशु चटर्जी, अंशुमन पुष्कर
  • सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 27 मिनट 
  • रेटिंग : 3.5/5