छोटी-सी बात को कहने में यदि ज्यादा समय ले लिया जाए, तो बात अपना असर खो देती है। यही समस्या फिल्म ‘लव खिचड़ी’ के साथ है। इस फिल्म को ज्यादा से ज्यादा डेढ़ घंटे में समेटना था, लेकिन दो घंटे से भी ज्यादा का समय ले लिया गया, जिससे खिचड़ी का स्वाद बिगड़ गया।
आजकल युवाओं का एक वर्ग ऐसा भी है जो लड़कियों के साथ अपने रिश्ते में सिर्फ मौज-मस्ती चाहता है। वे किसी भी किस्म की प्रतिबद्धता नहीं चाहते। इसी विचार को लेकर निर्देशक श्रीनिवास भाश्याम ने ‘लव खिचड़ी’ बनाई, लेकिन इसका निर्वाह वे ठीक से नहीं कर पाए।
कहानी है वीर (रणदीप हुड़ा) नामक शेफ की, जो हर लड़की से फ्लर्ट करता है। चाहे वो उसके घर की नौकरानी हो या कॉल सेंटर की एक्ज़ीक्यूटिव। उसकी जिंदगी में सात महिलाएँ आती हैं और उसे क्या अनुभव होता है, यह फिल्म का सार है।
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सोनाली कुलकर्णी और रिया सेन के किरदारों को छोड़ दिया जाए, तो अन्य महिलाओं के पात्रों को ठीक से पेश नहीं किया गया है। सदा पूरी फिल्म में भ्रमित नजर आती हैं। रितुपर्णा अंत तक ये बात क्यों छिपाती हैं कि वे विवाहित हैं। इस तरह की कई बातों को निर्देशक स्पष्ट नहीं कर पाए।
अभिनय के मामले में रणदीप ठीक रहे, लेकिन क्लायमैक्स में उनका अभिनय कमजोर रहा। नायिकाओं में सोनाली कुलकर्णी, रिया सेन और सदा ने बाजी मारी। सौरभ शुक्ला ने भी अपना काम बखूबी किया।