मेट्रो : रिश्तों की परछाई
निर्माता : रोनी स्क्रूवाला निर्देशक : अनुराग बसु संगीत : प्रीतमकलाकार : शिल्पा शेट्टी, शाइनी आहूजा, इरफान खान, धर्मेन्द्र, कंगना, कोंकणा सेन शर्मा अनुराग बसु की ‘लाइफ इन ए……मेट्रो’ महानगर में रहने वाले लोगों की जिंदगी पर आधारित है। महानगरीय जिंदगी के दबाव के चलते वे एक ऐसी रेस में दौड़ते रहते हैं जिसका कोई अंत नहीं है। सफलता का शार्टकट ढूंढते हुए वे कई अनैतिक काम और रिश्ते भी कायम करते हैं। इस फिल्म में कई चरित्र हैं जिनकी कहानियाँ साथ में चलती रहती है। अनुराग बसु ने इन चरित्रों के माध्यम से अपनी बात को कहा है। इस फिल्म के सभी चरित्र हैरान और परेशान से हैं। वे अपने जीवन साथी से खुश नहीं है और प्यार की तलाश में यहाँ-वहाँ भटकते रहते हैं। शिखा (शिल्पा शेट्टी) और रंजीत (केके मेनन) की शादी को आठ साल हो गए हैं। उनके बीच आए दिन झगड़े होते रहते हैं। रंजीत अपने ऑफिस में काम करने वाली नेहा (कंगना) के साथ अनैतिक रिश्ते कायम करता है। नेहा को तरक्की की चाह होती है इसलिए वह बॉस का साथ देती है। नेहा को उसी ऑफिस में काम करने वाला राहुल (शरमन जोशी) भी चाहता है पर अपने दिल की बात नहीं कह पाता। राहुल को भी जिंदगी में सब कुछ जल्दी पाना होता है। वह अपने अंकल की फ्लैट की चाबी अपने ऑफिस में काम करने वालों को मुहैया करवाता रहता है। उसके दोस्त वहाँ जाकर अपनी गर्लफ्रेंड्स और वेश्याओं के साथ समय व्यतीत करते हैं। इधर शिखा भी रंजीत से परेशान होकर आकाश (शाइनी आहूजा) में प्यार खोजती है। आकाश भी अपनी पत्नी से अलग हो चुका हैं। शिखा चाहते हुए भी अपनी बेटी के कारण आकाश का साथ देने से हिचकती है। श्रुति (कोंकणा सेन शर्मा) तीस वर्ष की होने को आई पर उसे कोई लड़का नहीं चाहता। इंटरनेट के जरिए देबू (इरफान खान) उसकी जिंदगी में आता है पर वह उसे पसंद नहीं है। अमोल (धर्मेन्द्र) चालीस वर्ष बाद अमेरिका से भारत अपने पहले प्यार वैजयंती (नफीसा अली) के कारण आता है जिसे वह अपना कैरियर बनाने की खातिर छोड़ जाता है। वह जानलेवा बीमारी से पीडि़त है साथ ही अपराध बोध से ग्रस्त भी है। वह वैजयंती को वृद्ध आश्रम से भगाकर ले जाता है और उसके साथ हम बिस्तर भी होता है। इन सभी कहानियों को आखरी रील में एक दूसरे से जोड़ा गया है। यह निर्देशक अनुराग बसु का कमाल है कि सारी कहानियाँ साथ चलती रहती है लेकिन कई किसी तरह का भ्रम नहीं होता। लेकिन सभी कहानियों का अंत अच्छा नहीं कहा जा सकता। धर्मेन्द्र वाली कहानी में नफीसा की मौत दिखाई गई है जबकि इसका अंत और अच्छा हो सकता था। शिल्पा शेट्टी को पता रहता है कि शाइनी आहूजा उसे सच्चे दिल से चाहता है और उसका पति गैरजिम्मेदार और बेवफा है। वह शाइनी के साथ भागना चाहती है लेकिन अंत में उसका पति जब वापस आता है तब वह शाइनी का साथ छोड़ अपने पति का साथ देती है। कंगना का भी अचानक हृदय परिवर्तन दिखाया गया है। इरफान और कोंकणा की कहानी सबसे मजेदार है और उसका अंत भी अच्छा है। अनुराग बसु ने विषय तो अच्छा चुना लेकिन वे फिल्मों को उस ऊँचाइयों तक नहीं ले जा सकें जितनी की अपेक्षा थी। उन पर मधुर भंडारकर का प्रभाव है। मधुर ने महानगरीय जीवन पर कई फिल्में बनाई है। अनुराग ने महानगरीय जीवन का एक ही पक्ष देखा है। महानगर में कुछ उजले पक्ष भी हैं जिन्हें अनुराग ने अनदेखा कर दिया है। अनुराग ने कहानी को तीन गायकों के जरिए आगे बढ़ाया है। जो बीच-बीच में आकर पात्रों की परिस्थिति पर आधारित गीत गाते हैं। सभी कलाकारों ने शानदार अभिनय किया है। शिल्पा शेट्टी की यह श्रेष्ठ फिल्मों में से एक हैं। इरफान खान का तो कहना ही क्या, उन्होंने तो अपने अभिनय से दिल जीत लिया। कंगना का तो लुक ही बदला हुआ है। केके मेनन, कोंकणा सेन, शरमन जोशी, शाइनी आहूजा और नफीसा अली ने भी अपने-अपने किरदार बखूबी निभाए। धर्मेन्द्र को बड़े परदे पर देखना सुखद लगा। कुलमिलाकर ‘मेट्रो’ भारी-भरकम अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती और महान फिल्म न होकर साधारण फिल्म लगती है।