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Written By समय ताम्रकर

ब्लैक एंड व्हाइट : थोड़ी ब्लैक, थोड़ी व्हाइट

ब्लैक एंड व्हाइट
IFM
निर्माता-निर्देशक : सुभाष घई
गीत : इब्राहीम अश्क
संगीत : सुखविंदर सिंह
कलाकार : अनुराग सिन्हा, अनिल कपूर, शैफाली, अदिति शर्मा, मिलिंद गुणाजी, अरूण बक्शी
रेटिंग : 2.5/5

कुछ वर्ष पहले सफलता के शिखर पर बैठे सुभाष घई ने कहा था कि कला फिल्म बनाना आसान है, हिट फिल्म बनाना बेहद कठिन है। उन्हीं सुभाष घई ने मसालेदार फिल्मों की राह छोड़कर एक गंभीर, कलानुमा और वास्तविक जीवन के करीब फिल्म ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ बनाने की कोशिश की है। इस फिल्म को बनाने के बाद शायद उन्हें यह भी समझ में आ गया होगा कि यथार्थवादी और कला फिल्म बनाना भी आसान काम नहीं है।

‘ब्लैक एंड व्हाइट’ में उन्होंने एक आतंकवादी की कशमकश का चित्रण किया है। वह एक मानव बम है। कुछ दिन वह भले लोगों के बीच रहता है और उसका हृदय परिवर्तन होता है। इस विषय पर ‘दिल से’, ‘द टेररिस्ट’, ‘धोखा’ जैसी कुछ फिल्में आ चुकी हैं।

‘नुमैर काजी (अनुराग सिन्हा) एक आतंकवादी है और दिल्ली में 15 अगस्त के कार्यक्रम में विस्फोट करने के इरादे से आया है। वह उस कट्टरपंथी दल का सदस्य है, जिन्होंने बचपन से ही उसके दिमाग में नफरत के बीज बो दिए थे।

नुमैर अपने आपको गुजरात दंगों का शिकार बताता है और दिल्ली के चाँदनी चौक में रहने वाले प्रोफेसर राजन माथुर (अनिल कपूर) और उनकी पत्नी रोमा माथुर (शैफाली शाह) का विश्वास जीतकर उनके घर रहने लगता है।

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नुमैर को 15 अगस्त के कार्यक्रम में प्रवेश के लिए पास चाहिए और रोमा तथा राजन माथुर उसके लिए पास का इंतजाम करते हैं। नुमैर के पास पन्द्रह दिन का समय रहता है, जो वह चाँदनी चौक में रहने वाले लोगों के बीच बिताता है।

अपनी विचारधारा को सही समझने वाला नुमैर उनके बीच रहकर महसूस करने लगता है कि कहीं वो गलत राह पर तो नहीं है। इस कशमकश से वह कैसे निकलता है, यह फिल्म के बाकी हिस्से में दिखाया गया है।

फिल्म की कहानी अच्छी है, लेकिन पटकथा को अपनी सहूलियत के हिसाब से लिखा गया है। पटकथा लेखक सचिन भौमिक, सुभाष घई और आकाश खुराना भ्रमित दिखें।

वे फिल्म को वास्तविकता के करीब दिखाना चाहते थे, लेकिन फिल्म को कमर्शियल टच देने से भी बाज नहीं आए। नतीजन कई घटनाक्रम फिल्मी लगते हैं और फिल्म उतनी प्रभावशाली नहीं बन पाई।

नुमैर का प्रोफेसर और उसकी पत्नी का विश्वास जीतने वाला दृश्य एकदम नकली है। नुमैर के हृदय परिवर्तन के पीछे रोमा की हत्या को दिखाया गया है, लेकिन फिर भी यह वजह ठोस नहीं लगती है। नुमैर का लाल किले की सुरक्षा से भाग निकलना भी पचाने योग्य नहीं है। नुमैर और शगुफ्ता का रोमांटिक एंगल फिल्म की गति में बाधा पहुँचाने का काम करता है।

सुभाष घई के निर्देशन में परिपक्वता और अनुभव झलकता है। पटकथा में खामियों के बावजूद भी उन्होंने दर्शकों को बाँधकर रखा है और फिल्म की गति को धीमा नहीं होने दिया।

घई ने पहले भी बॉलीवुड को नए कलाकार दिए हैं और इस फिल्म के जरिए उन्होंने अनुराग सिन्हा नामक नए अभिनेता को पेश किया है। अनुराग को लगभग पूरी फिल्म में एक जैसी भावमुद्रा बनाकर रखनी थी, जिसमें वे कामयाब हुए हैं। उनकी आवाज प्रभावशाली है और इससे उनके अभिनय में और निखार आता है।

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अनिल कपूर कहीं से भी प्रोफेसर नहीं लगते। उनकी पत्नी के रूप में शैफाली उन पर भारी पड़ी है। अदिती शर्मा के लिए ज्यादा स्कोप नहीं था। हबीब तनवीर प्रभावित करते हैं।

सुखविंदर सिंह द्वारा संगीतबद्ध ‘मैं चला’ और ‘जोगी आया’ सुनने में अच्छे लगते हैं। इब्राहीम अश्क द्वारा लिखे गए गीत अर्थपूर्ण हैं। सुभाष घई ने अपनी लीक से हटकर एक साहसिक प्रयास किया है और यह फिल्म उनकी पिछली फिल्मों ‘किस्ना’, ‘यादें’ से बेहतर है।

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