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Written By समय ताम्रकर

तलाश : फिल्म समीक्षा

तलाश
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बैनर : एक्सेल एंटरटेनमेंट, आमिर खान प्रोडक्शन्स, रिलायंस एंटरटेनमेंट
निर्माता : फरहान अख्तर, आमिर खान, रितेश सिधवानी
निर्देशक : रीमा कागती
संगीत : राम सम्पत
कलाकार : आमिर खान, करीना कपूर, रानी मुखर्जी, राम कुमार यादव, नवाजुद्दीन सिद्दकी
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 20 मिनट * 9 रील

आमिर खान वाला शुक्रवार तीन वर्ष बाद आया है। गुणवत्ता के प्रति उनका आग्रह इतना ज्यादा है कि बहुत कम फिल्म वे करने लगे हैं और बात इस हद तक पहुंच गई है कि यह उनके प्रशंसकों को अखरने लगा है। साथ ही उनकी हर फिल्म से बहुत ज्यादा अपेक्षाएं होने लगी हैं। ये बात किसी भी फिल्म के लिए खतरनाक हो सकती है और ‘तलाश’ के साथ हो गई है। तलाश यदि इमरान हाशमी जैसा हीरो करता तो इसे हमे शायद पसंद कर लेते, लेकिन आमिर जैसे बड़े कद के कलाकार और सितारे के साथ इसकी कहानी न्याय नहीं कर पाती है।

तलाश एक थ्रिलर मूवी है, जिसमें पुलिस ऑफिसर सुर्जन शेखावत (आमिर खान) एक फिल्म स्टार की कार दुर्घटना में हुई मौत की जांच कर रहा है। साथ ही अपनी पर्सनल लाइफ में वह बुरे हालातों से गुजर रहा है। उसके आठ वर्षीय बेटे की मौत हो गई है, जिसके कारण उसकी पत्नी रोशनी (रानी मुखर्जी) और उसके संबंध अब ठीक नहीं रहे हैं।

थ्रिलर मूवी की सफलता उसके क्लाइमेक्स पर बहुत ज्यादा निर्भर होती है। फिल्म का अंत ऐसा होना चाहिए जो दर्शकों को संतुष्ट कर सके। उनके मन में उठने वाले हर प्रश्न का जवाब दे। ‘तलाश’ इस परिभाषा पर खरी नहीं उतरती।

इंटरवल होने तक फिल्म में कसावट है, बांध कर रखती है, लेकिन इसके बाद फिल्म बिखर जाती है। लक्ष्य से भटक जाती है। आमिर और रानी वाला ट्रेक हावी हो जाता है और दुर्घटना की जांच वाले ट्रेक को भूला दिया जाता है। कहानी ठहरी हुई लगती है।

क्लाइमेक्स में जब सभी बातें सामने आ जाती हैं तो दर्शक इसलिए चौंक जाते हैं कि इस तरह के अंत की उन्होंने उम्मीद नहीं की थी। यह अंत ऐसा है जिसे नापसंद करने वाले लोग ज्यादा होंगे। वे ठगाए महसूस करते हैं। पूरी फिल्म में इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है कि यह जिंदगी के करीब लगे, लेकिन अंत में रियलिटी को पूरी तरह भूला दिया गया।

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सारा दोष स्क्रिप्ट का है। कहानी पर थोड़ा गौर करेंगे तो पाएंगे कि यह कहानी बी-ग्रेड फिल्मों जैसी है, यहां कहने का अंदाज थोड़ा बेहतर है। स्क्रिप्ट ऐसी लिखी गई है कि आधी दूरी तय होने के बाद फिल्म हांफने लगती है। अंतिम बिंदु तक पहुंचने का थ्रिल नदारद है। जांच करते हुए पुलिस ऑफिसर बड़ी आसानी से मंजिल तक पहुंच जाता है। कुछ ऐसे प्रश्न भी हैं जिनकी चर्चा यहां इसलिए नहीं की जा सकती है क्योंकि कहानी का रहस्य उजागर हो सकता है।

यदि करीना कपूर के किरदार के बारे में खुलासा थोड़ा पहले किया जाता तो, बेहतर होता, दर्शक भी मानसिक रूप से तैयार हो जाते कि वे क्या देखने जा रहे हैं। साथ ही फिल्म बहुत ज्यादा उदास और रूखी है।

रीमा कागती का निर्देशन, स्क्रिप्ट की तुलना में बेहतर है। उन्होंने किरदारों के मन के अंदर चल रही बातों को स्क्रीन पर पेश करने में सफलता पाई है। गानों की सिचुएशन भी ऐसी बनाई है कि कहानी आगे बढ़ती रहे, लेकिन फिल्म शुरुआत में जो वादा करती है उसे क्लाइमेक्स तक निभा नहीं पाती।

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आमिर खान ने दु:खी पिता और मुस्तैद पुलिस ऑफिसर की भूमिका दमदार तरीके से निभाई है। उनकी बॉडी लैंग्वेज ही बयां कर देती है कि यह आदमी सीने में दु:ख का पहाड़ लिए घूम रहा है। रानी मुखर्जी ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है।

करीना कपूर ने स्क्रिप्ट से उठकर अपने किरदार स्पाइसी बनाने की कोशिश की है। उन्हें कुछ उम्दा संवाद भी मिले हैं। नवाजुद्दीन सिद्दकी ने फिर साबित किया कि वे बेहतरीन अभिनेता हैं। वे जब-जब स्क्रीन पर आए फिल्म में एक हलचल सी पैदा कर गए।

कुल मिलाकर ‘तलाश’ आमिर के कद कसाथ न्याय नहीं कर पाती है।

रेटिंग : 2.5/5
1-बेकार, 2-औसत, 3-अच्छी, 4-बहुत अच्छी, 5-अद्भुत