पराग दीक्षित (नील नितिन मुकेश) मानता है कि उस पर भगवान की असीम कृपा है। पराग की उम्र होगी 25 वर्ष के आसपास। इस उम्र में ही उसके पास सब कुछ है। ऐशो-आराम के सारे साधन, मनपसंद काम और खूबसूरत गर्लफ्रेंड। मानसी (मुग्धा गोडसे) भी पराग को बेहद चाहती है।
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पराग की जिंदगी अचानक मोड़ लेती है। कुछ ऐसी घटनाएँ घटती हैं कि पराग अपने आपको जेल के अंदर पाता है। पुलिस उसकी पिटाई करती है। जेल उसे नरक जैसा लगता है। पराग को लगता है कि यह एक बुरा सपना है, लेकिन बाद में वह इस सच्चाई को स्वीकारता है कि वह ऐसी दुनिया है, जिसके बारे में कभी उसने सोचा भी नहीं था।
जेल में पराग की दोस्ती नवाब (मनोज बाजपेयी) से होती है, जो 20 साल की सजा काट रहा है। नवाब से सभी घबराते हैं और किसी की पूछने की हिम्मत नहीं होती कि वह जेल में क्यों है? नवाब का दिल कहता है कि पराग बेगुनाह है। जेल के बाहर मानसी ही उसकी एकमात्र आशा है।
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जल्द ही, पराग जेल के आंतरिक तंत्र से परिचित होता है। उसे पता चलता है कि जेल के अंदर किस तरह की धाँधलियाँ चल रही हैं। कई बेगुनाह लोग सजा काट रहे हैं और कुछ जेल में ही ऐश कर रहे हैं।
पराग के सामने दो ही विकल्प मौजूद हैं। या तो वह अपना शोषण होने दे या व्यवस्था के खिलाफ अपनी आवाज उठाए।