धर्मेन्द्र के हाथों जब चीते की गई जान कर्तव्य की शूटिंग के दौरान
बॉलीवुड के सदाबहार हीरो धर्मेन्द्र को यूं ही 'ही-मैन' नहीं कहा जाता है। कई फिल्मों में खतरनाक एक्शन सीन उन्होंने खुद किए हैं। डुप्लिकेट का सहारा लेना उन्हें पसंद नहीं था। यह उस दौर की बात है जब एक्शन दृश्यों को फिल्माते समय सुरक्षा के उपकरण भी नहीं होते थे। पर धर्मेन्द्र को इन बातों की परवाह कहां। जांबाज मर्द की तरह वे हर खतरों से भिड़ जाया करते थे।
मोहन सहगल ने धर्मेन्द्र को लेकर एक फिल्म अनाउंस की। नाम रखा 'कर्तव्य'। चूंकि फिल्म का हीरो फॉरेस्ट ऑफिसर था इसलिए धर्मेन्द्र से बेहतर चॉइस हो ही नहीं सकती थी। उनका डीलडौल और व्यक्तित्व इस रोल के लिए बिलकुल सही था। वैसे भी उस समय तक धर्मेन्द्र की इमेज एक्शन हीरो की बन चुकी थी और धर्मेन्द्र जब गुंडों की पिटाई करते थे तो दर्शक खुश होते थे।
कर्तव्य में धर्मेन्द्र के साथ रेखा, विनोद मेहरा, निरुपा रॉय, अरुणा ईरानी, रंजीत, उत्पल दत्त जैसे कलाकार चुने गए। यह 1973 में आई कन्नड़ फिल्म 'गंधादा गुडी' का रीमेक थी। कर्तव्य 1979 में रिलीज हुई थी और सुपरहिट रही थी।
एक दिन चीता और धर्मेन्द्र की फाइट को शूट किया जाना था। सचमुच का चीता लाया गया। खतरा था इसलिए धर्मेन्द्र को सलाह दी गई कि आपकी बजाय डुप्लिकेट के साथ इस एक्शन सीन को फिल्मा लेते हैं। यह सुनते ही धरम पाजी भड़क गए। बोले कि मैं खुद इस सीन को शूट करूंगा। फिल्म की टीम अपने हीरो को खतरे में नहीं डालना चाहती थी, उन्हें समझाने की कोशिश हुई, लेकिन धर्मेन्द्र टस से मस नहीं हुए और आखिर में उनकी बात मानी गई।
चीता पिंजरे में कैद था। साथ में ट्रेनर भी था। शूटिंग के दौरान कई लोग मौजूद रहते हैं। भारी लाइट्स और कैमरे भी थे। बहुत शोर था। इसलिए चीता थोड़ा असहज हो गया था। गुर्रा रहा था। उसका मूड देख यूनिट के लोग थोड़ा घबराए हुए थे।
शूटिंग के लिए सब तैयार थे। चीते को छोड़ा गया जो धर्मेन्द्र की तरफ लपका और उसने सीधे गरम धरम पर हमला कर दिया। धर्मेन्द्र समझ गए कि चीता बहुत ही खतरनाक मूड में है। उन्होंने अपने बाजू में चीते की गर्दन को जकड़ लिया। शूटिंग स्थल पर अफरा-तफरी मच गई। ट्रेनर कहीं नजर नहीं आया।
धर्मेन्द्र ने अपनी बाजू की पकड़ ढीली नहीं की। वे जानते थे कि चीता छूटा तो वे गए काम से। थोड़ी देर बाद जब ट्रेनर पहुंचा तो धर्मेन्द्र ने चीते को छोड़ा। पर ये क्या, चीते का तो काम तमाम हो चुका था। सभी हैरान रह गए।
कहते हैं कि निर्देशक मोहन सहगल ने फाइन पर भर कर किसी तरह से मामले को रफा-दफा किया। आज यह किस्सा हो जाता तो कई लोगों को जेल हो सकती थी। बहरहाल, धर्मेन्द्र की ताकत और साहस के सभी कायल हो गए कि परदे पर दिखने वाला यह ताकतवर हीरो रियल लाइफ में भी बेजोड़ है। खतरों से लड़ना और निपटना इसे आता है। तभी तो लोगों ने धर्मेन्द्र को इतना प्यार दिया और वर्षों तक वे हीरो के रूप में पसंद किए जाते रहे।