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Last Modified: रविवार, 6 अप्रैल 2025 (16:59 IST)

सुचित्रा सेन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाई थी पहचान, इस वजह से ठुकराया था दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

Suchitra Sen Birth Anniversary
भारतीय सिनेमा में सुचित्रा सेन को एक ऐसी अभिनेत्री के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने बंगला फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान करने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विशेष पहचान बनाई। सुचित्रा सेन का मूल नाम रोमा दासगुप्ता था। उनका जन्म छह अप्रैल 1931 को पवना (अब बंगलादेश) में हुआ था। उनके पिता करुणोमय दासगुप्ता हेड मास्टर थे। वह अपने माता-पिता की पांच संतानों में तीसरी संतान थी। 
 
सुचित्रा सेन ने प्रारंभिक शिक्षा पवना से हासिल की। वर्ष 1947 में उनका विवाह बंगाल के जाने-माने उद्योगपति अदिनाथ सेन के पुत्र दीबानाथ सेन से हुआ। वर्ष 1952 में सुचित्रा सेन बतौर अभिनेत्री बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और बंगला फिल्म 'शेष कोथाय' में काम किया। फिल्म हालांकि प्रदर्शित नहीं हो सकी।
 
वर्ष 1952 में प्रदर्शित बंगला फिल्म 'सारे चतुर' अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फिल्म थी। इस फिल्म में उन्होंने अभिनेता उत्तम कुमार के साथ पहली बार काम किया। निर्मल डे निर्देशित हास्य से भरपूर इस फिल्म में दोनों कलाकारों ने दर्शकों को हंसाते-हंसाते लोटपोट कर दिया और फिल्म को सुपरहिट बना दिया। इसके बाद इस जोड़ी ने कई फिल्मों में एक साथ काम किया। इनमें वर्ष हरानो सुर और सप्तोपदी खास तौर पर उल्लेखनीय है। वर्ष 1957 में अजय कार के निर्देशन में बनी फिल्म 'हरानो सुर' वर्ष 1942 में प्रदर्शित अंग्रेजी फिल्म 'रैंडम हारवेस्ट' की कहानी पर आधारित थी।
 
वर्ष 1961 में सुचित्रा-उत्तम कुमार की जोड़ी वाली एक और सुपरहिट फिल्म 'सप्तोपदी' रिलीज हुई। द्वितीय विश्व युद्ध के कुपरिणामों की पृष्ठभूमि पर आधारित इस प्रेम कथा फिल्म में सुचित्रा सेन के अभिनय को जबरदस्त सराहना मिली। इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी बंगला फिल्मों की अभिनेत्रियां इस फिल्म में उनकी भूमिका को अपना ड्रीम रोल मानती है। वर्ष 1955 में सुचित्रा सेन ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी कदम रख दिया।
 
सुचित्रा को शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के मशहूर बंगला उपन्यास 'देवदास' पर बनी फिल्म में काम करने का अवसर मिला। विमल राय के निर्देशन में बनी इस फिल्म में उन्हें अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म में उन्होंने पारो के अपने किरदार से दर्शको का दिल जीत लिया। 
 
वर्ष 1957 में सुचित्रा सेन की दो और हिन्दी फिल्मों मुसाफिर और चंपाकली में काम करने का अवसर मिला। ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म मुसाफिर में उन्हें दूसरी बार दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिला जबकि फिल्म चंपाकली में उन्होंने भारत भूषण के साथ काम किया लेकिन दोनों ही फिल्म टिकट खिड़की पर असफल साबित हुई।
 
वर्ष 1959 में प्रदर्शित बंगला फिल्म दीप जोले जाये में सुचित्रा सेन के अभिनय के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। इसमें सुचित्रा सेन ने राधा नामक नर्स का किरदार निभाया जो पागल मरीजो का इलाज करते करते खुद ही बीमार हो जाती है। अपनी पीड़ा को सुचित्रा सेन ने आंखों और चेहरे से इस तरह पेश किया, जैसे वह अभिनय न करके वास्तविक जिंदगी जी रही हो। वर्ष 1969 में इस फिल्म का हिंदी में रीमेक खामोशी भी बनाया गया, जिसमें सुचित्रा सेन के किरदार को वहीदा रहमान ने रुपहले पर्दे पर साकार किया।
 
वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म बंबई का बाबू सुचित्रा सेन के सिने करियर की दूसरी सुपरहिट हिंदी फिल्म साबित हुई। राज खोसला के निर्देशन में बनी इस फिल्म में उन्हें देवानंद के साथ काम करने का अवसर मिला। इस जोड़ी को दर्शकों ने काफी पसंद किया। वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म उत्तर फाल्गुनी सुचित्रा सेन की एक और महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई। असित सेन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में उन्होंने मां और पुत्री के दोहरे किरदार को निभाया। इसमें उन्होंने एक वेश्या पन्ना बाई का किरदार निभाया जो अपनी वकील पुत्री सुपर्णा का साफ-सुथरे माहौल में पालन पोषण करने का संकल्प लिया है। इस फिल्म में पन्ना बाई की मृत्यु का दृश्य सिनेदर्शक आज भी नहीं भूल पाए हैं।
 
वर्ष 1963 में ही सुचित्रा सेन की एक और सुपरहिट फिल्म सात पाके बांधा प्रदर्शित हुयी, जिसमें उन्होंने एक ऐसी युवती का किरदार निभाया, जो विवाह के बाद भी अपनी मां के प्रभाव में रहती है। इस कारण उसके वैवाहिक जीवन में दरार आ जाती है। बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास होता है .तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और उसका पति उसे छोड़कर विदेश चला जाता है। 
 
इस संजीदा किरदार से सुचित्रा सेन ने दर्शकों का दिल जीत लिया। उन्हें इस फिल्म के लिए मास्को फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में पहला मौका था, जब किसी भारतीय अभिनेत्री को विदेश में पुरस्कार मिला था। बाद में इसी कहानी पर 1974 में कोरा कागज फिल्म का निर्माण किया गया, जिसमें सुचित्रा सेन की भूमिका को जया भादुड़ी ने रुपहले पर्दे पर साकार किया।
 
वर्ष 1975 में सुचित्रा सेन की एक और सुपरहिट फिल्म आंधी प्रदर्शित हुई। गुलजार निर्देशित इस फिल्म में उन्हें अभिनेता संजीव कुमार के साथ काम करने का अवसर मिला। इसमें उन्होंने एक ऐसे राजनेता की भूमिका निभाई, जो अपने पिता के प्रभाव में राजनीति में कुछ इस कदर रम गई कि अपने पति से अलग रहने लगी। आंधी कुछ दिनों के लिए प्रतिबंधित भी कर दी गई। बाद में जब यह प्रदर्शित हुई तो इसने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी सफलता अर्जित की।
 
सुचित्रा सेन के अंतिम बार वर्ष 1978 में प्रदर्शित बंगला फिल्म प्रणोय पाश में अभिनय किया। इसके बाद उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से संन्यास ले लिया और राम कृष्ण मिशन की सदस्य बन गईं तथा सामाजिक कार्य करने लगी। वर्ष 1972 में सुचित्रा सेन को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया।
 
साल 2005 में सुचित्रा सेन को दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। इसकी वजह यह थी कि उन्हें पुरस्कार लेने कोलकाता छोड़कर दिल्ली जाना पड़ता, लेकिन सुचित्रा ने गुमनामी में ही रहने का फैसला किया था। 
 
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