'जगन्नाथ और पूर्वी की दोस्ती अनोखी' एक्ट्रेस सुष्मिता मुखर्जी बोलीं- घर में रहने वाली पत्नियों और मांओं को नहीं मिलती कोई सराहना
एक निस्वार्थ गृहिणी अपने घर, अपने पति, अपने बच्चों और परिवार के लिए अपना पूरा योगदान देती है। वो हमेशा अपने से पहले दूसरों का हित रखती है। हालांकि उनकी कड़ी मेहनत को अक्सर उनके कर्तव्यों में से एक माना जाता है और समाज इसे एक 'अच्छी गृहिणी' की जिम्मेदारी के रूप में देखता है।
सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन का ज़िंदगी की झलक दिखाता ड्रामा 'जगन्नाथ और पूर्वी की दोस्ती अनोखी' में जगन्नाथ मिश्रा की पत्नी कुसुम का किरदार निभा रहीं एक्ट्रेस सुष्मिता मुखर्जी इस बारे में अपने विचार व्यक्त करती हैं। वो बताती हैं कि गृहिणियों या हाउसवाइफ के काम को आज भी ज्यादा तरजीह नहीं दी जाती।
शो के दौरान दर्शकों ने देखा है कि कुसुम मिश्रा, जगन्नाथ मिश्रा की एक समर्पित और प्यार करने वाली पत्नी हैं। वो हमेशा अच्छे और बुरे समय में उनके साथ खड़ी रही हैं। वो एक ऐसी महिला हैं, जिन्होंने अपने परिवार की खातिर अपनी इच्छाओं, अरमानों और हर तरह के डर को भुला दिया है।
जहां उनके बच्चों और जगन्नाथ के बीच मतभेद बढ़ते जा रहे हैं, वहीं कुसुम हमेशा अपने पति और अपने बच्चों के बीच खींचतान में फंस जाती हैं। कुसुम उन्हें समान रूप से प्यार करती है लेकिन अक्सर वो उनके टकराव में पिस जाती हैं। वो उनके लिए सबकुछ करती है, लेकिन कहीं न कहीं उनके प्रयासों की अनदेखी होती है और इसे कोई तरजीह नहीं दी जाती।
यह देखकर दुख होता है कि जो महिलाएं समाज की रीढ़ हैं और हर परिवार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, उन्हें वो सम्मान नहीं दिया जाता, जिसकी वे हकदार हैं। अभिनेत्री सुष्मिता मुखर्जी को ये देखकर निराशा होती है कि घर में रहने वाली पत्नियों और माताओं की कोई सराहना नहीं की जाती। वे चौबीसों घंटे काम करती हैं, फिर भी उन्हें वो सम्मान नहीं मिलता, जो उन्हें मिलना चाहिए।
इस बारे में बात करते हुए सुष्मिता मुखर्जी कहती हैं, गृहिणियां हमेशा एक घर की रीढ़ रही हैं, और इसी तरह वो समाज की रीढ़ भी बन जाती है। वो उस व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाती हैं, जिसे 'परिवार' कहा जाता है। पहले ये माना जाता था कि महिलाएं व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन के बीच संतुलन नहीं बना सकतीं। काम करने वालीं महिलाओं को नीची नज़र से देखा जाता था क्योंकि ज़ाहिर तौर पर इसका मतलब था कि उन्हें अपने परिवार की परवाह नहीं।
उन्होंने कहा, हालांकि, मुझे बहुत खुशी है कि अब समय बदल गया है! अब महिलाएं ज़िंदगी में आगे बढ़ने और परिवार के खर्च में योगदान देने के लिए अपनी महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित होती हैं। साथ ही, वे अपने परिवार की सलामती सुनिश्चित करती हैं। महिलाएं असल में दोनों दुनिया का सबसे अच्छा आनंद ले रही हैं। हालांकि, एक समाज के रूप में हम में ही कहीं कमी है। ये सच है कि हम घर पर रहने वाली मांओं और पत्नियों की सराहना नहीं करते, जो लगातार मेहनत कर रही हैं, लेकिन उन्हें किसी भी प्रकार की स्वीकृति से पुरस्कृत नहीं किया जाता है। यह देखकर कभी-कभी निराशा होती है।
सुष्मिता कहती हैं, शो में जगन्नाथ अपनी पत्नी का बहुत सम्मान करते हैं और उनसे प्यार करते हैं, लेकिन एक रूढ़िवादी परिवार में पले-बढ़े होने के कारण वो इसे कभी व्यक्त नहीं करते। उन्हें लगता है कि महिला को किसी भी तरह के फैसले लेने के बजाय सिर्फ परिवार का ख्याल रखना चाहिए, लेकिन उनकी ज़िंदगी में पूर्वी के आने से इस बारे में जगन्नाथ के विचार बदल जाते हैं, जो एक बहुत ही जरूरी बदलाव की दिशा में एक बढ़िया कदम है।