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Last Updated : रविवार, 27 सितम्बर 2020 (14:51 IST)

50 Years of YRF : पिता यश चोपड़ा को याद कर भावुक हुए आदित्य चोपड़ा, कही यह बात

50 Years of YRF : पिता यश चोपड़ा को याद कर भावुक हुए आदित्य चोपड़ा, कही यह बात - 50 years of yrf aditya chopra remembers dad yash chopra on his birth anniversary
यश चोपड़ा बॉलीवुड के वो निर्देशक रहे थे, जिन्होंने सिनेमा दर्शकों को रोमांस की अलग और नई परिभाषा सिखाई। उन्होंने हिंदी सिनेमा को एक से एक बढ़कर फिल्में दीं। 1959 में अपने करियर की शुरुआत करने वाले यश चोपड़ा की 27 सितंबर को 88वीं जयंती है। पिता यश चोपड़ा को याद करते हुए आदित्य चोपड़ा ने एक बहुत ही भावुक पोस्ट अपने सोशल मीडिया पर शेयर किया है।

 
उन्होंने इस पोस्ट के जरिए बताया कि कैसे यश चोपड़ा ने एक छोटे से कमरे से शुरुआत की थी और फिर कैसे यशराज फिल्म्स ने देश ही नहीं दुनिया में भी अपनी पहचान बनाई। यशराज फिल्म्स के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर एक आदित्य ने एक नोट शेयर किया है।
 
इस नोट में आदित्य ने लिखा- 1970 में मेरे पिता यश चोपड़ा ने अपने भाई श्री बीआर चोपड़ा की छत्र-छाया की सुरक्षा को त्याग कर अपनी खुद की कंपनी बनाई। उस समय तक, वह बीआर फिल्म्स के केवल एक मुलाजिम थे और उनके पास अपना कोई सरमाया नहीं था। वह नहीं जानते थे कि एक कारोबार कैसे चलाया जाता है। उन्हें इस बात की भी खबर नहीं थी कि एक कंपनी चलाने के लिए किन चीजों की जरूरत पड़ती है। उस समय यदि उनके पास कुछ था, तो अपनी प्रतिभा और कड़ी मेहनत पर दृढ़ विश्वास और आत्म-निर्भर बनने का एक ख्वाब।
 
आदित्य ने यश राज फिल्म्स के 25 साल पूरे होने पर दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंग बनाने को भी याद किया। इस नोट में आदित्य ने घोषणा की कि उनकी विशेष योजनाएं क्या हैं, क्योंकि कंपनी 50 साल पूरे कर रही है। उन्होंने कंपनी से जुड़े हर व्यक्ति को धन्यवाद दिया और कहा कि वह हर जन्म में बॉलीवुड का हिस्सा बनना पसंद करेंगे।
 
उन्होंने आगे लिखा, आज हम यशराज फिल्म्स के 50वें वर्ष में प्रवेश करते हैं। इसलिए, जैसा कि मैंने इस नोट को लिखा है, मैं यह पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं कि वास्तव में इस 50 साल की सफलता का रहस्य क्या है? एक कंपनी 50 वर्षों तक क्या फलती-फूलती है? क्या यह यश चोपड़ा की रचनात्मक प्रतिभा है? अपने 25 साल के बड़े बेटे के दुस्साहसिक विजन? या यह सिर्फ सादा भाग्य है? यह उपरोक्त में से कोई नहीं है।
 
पिछले 50 वर्षों से प्रत्येक YRF फिल्म में काम करने वाले लोग। मेरे पिताजी एक कवि की लाइन- मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए हमारा कारवां बनता गया (मैं अपनी मंजिल की ओर अकेले ही चला, लोग जुड़ते रहे और कारवां बढ़ता रहा). इसे पूरी तरह समझने में मुझे 25 साल लग गए।
 
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