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Last Updated : बुधवार, 14 अक्टूबर 2020 (12:41 IST)

वेब सीरीज '1992 द हर्षद मेहता स्टोरी' : परदे के पीछे की कहानी

वेब सीरीज '1992 द हर्षद मेहता स्टोरी' : परदे के पीछे की कहानी - web series scam 1992 the harshad mehta story prateik gandhi
लॉकडाउन के दौरान जहां पर दर्शकों को देश के सुरक्षा दलों और जासूस, और कई ऐसी बातों के बारे में मालूम पड़ रहा है जो देशवासियों ने पहले ना तो कभी पढ़ी थी और ना ही अपनी आंखों से देखी थी। अब ऐसे में ही एक और वेब सीरीज जोड़ने वाली है। नाम है क्या? 1992 द हर्षद मेहता स्टोरी सोनी लिव पर हाल ही में रिलीज हुई वेब सीरीज है।

 
हंसल मेहता द्वारा निर्देशित यह वेब सीरीज एक किताब पर आधारित है और किताब का नाम है हु वन फुल ऑस्ट एंड वॉटर। इसे लिखने वाले पत्रकार देवाशीष बासु और पद्मश्री पुरस्कार विजेता पत्रकार सुचेता दलाल।
 
फिल्म की वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान निर्देशक हंसल मेहता ने बताया कि कुछ कहानी ऐसी होती है जिससे बताना बहुत जरूरी होता है और वह किस समय बताई जाए, यह भी उतना ही जरूरी होता है। जब हम इस किताब को एक वेब सीरीज के बारे में बनाना सोच रहे थे तो हमारे सामने लगभग 550 पन्ने की एक पूरी की पूरी किताब रखी थी। और अगर सीधी-सादी भाषा में बताऊं तो जब कोई फिल्म बनती है। तो उसकी जो स्क्रिप्ट होती है वह 90 या 95 पन्नों से ज्यादा की होती नहीं है। यानी मेरे सामने जो किताब रखी हुई थी उसके ऊपर में लगभग 5 फिल्में बना सकता था। सुनिश्चित किया गया कि क्यों ना इसे एक वेब सीरीज के तरीके से दिखाया जाए और किताब को भी न्याय दिया जा सकेगा।
 
हंसल मेहता आगे बताते हैं कि जब हम इस मुख्य किरदार यानी हर्षद मेहता के लिए लोगों का चयन कर रहे थे। तब मेरे दिमाग में एक ही चीज थी। वह यह कि इस किरदार का लुक इतना मायने नहीं रखेगा जितना कि उसका कैरेक्टर मायने रखता है। तो हर्षद मेहता जैसा दिखने वाला भले ही ना हो लेकिन उसके किरदार को जीने वाला सशक्त अभिनेता होना चाहिए।
 
ऐसे में प्रतीक मुझे बहुत अच्छा नाम लगा क्योंकि उसका वजन बढ़ाया, घटाएं यह तो हो जाएगा, लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है कि जब पहली बार लोग हर्षद मेहता को अपने सामने खड़ा पाए तो वह व्यक्ति बहुत ज्यादा विश्वसनीय लगे। वह बोले भी ऐसे जैसे हर्षद मेहता ने बोला हो या फिर सोचा हो तो ऐसे में प्रतीक बहुत अच्छी चॉइस रहा हमारे लिए।

अपने रोल के बारे में हर्षद का रोल निभाने वाले प्रतीक ने अपने दिल की बात करते हुए बताया कि मुझे जिस तरीके से हंसल जी ने बताया कि मेरा यह रोल होगा तो मैंने तो सबसे पहले इसी बात को सोचकर हां कर दी कि मैं हंसल मेहता जी के साथ काम करने वाला हूं। उसके बाद मैंने ध्यान दिया की रोल किस तरीके का होगा। अब जब बात हर्षद मेहता की आई तो जाहिर है, मेरे लिए बहुत जरूरी था कि मैं उनके जैसा ही व्यवहार दिखाऊं। 
 
मैंने थोड़ा सा वजन भी बढ़ाया और साथ ही मैं दिन भर यह सोचता रहता था कि अगर हर्षद मेहता होंगे इस स्थिति में तो कैसे बोलेंगे। किस तरीके के शब्दों का चयन करेंगे, कितना हसेंगे। अगर किसी व्यक्ति को घूर कर देखना है तो, किस तरीके से उनका घूरना होगा। ताकि सामने वाले को बिना बोले भी संदेश मिल जाए यानी बॉडी लैंग्वेज के जरिए सामने वाले को अपनी हर बात पहुंचा देना। यह हर्षद मेहता ने किस तरीके से किया होगा। यह मैं दिन भर सोचता रहता था और जिस जिस तरीके से मुझे समझ में आया, मैंने वही रोल कैमरा के सामने निभा दिया।
 
उन्होंने क्या इस रोल के लिए कोई तैयारी भी की है इस बात पर बोलते हुए प्रतीक ने कहा कि मैं ड्रामा थिएटर दुनिया से ताल्लुक रखता हूं। जब कोई ड्रामा करता हूं तो मुझे किसी किरदार को 2 घंटे जीना होता है और फिर उसके बाद लोगों के सामने होते हैं और जो इंस्टेंट ग्रिटिफिकेशन मिलता है कि लोग वाहवाही कर रहे हैं। मुंह पर यह तालियां बजा रहे हैं। जब मैं कोई गुजराती फिल्म करता हूं तो वह 20 या 25 दिन के अंदर अंदर खत्म हो जाती है तो किरदार जो जीता हूं, वह मैं स्वयं हूं।
 
सिर्फ उस नियत समय के लिए जबकि वेब सीरीज मुझे यह फायदा हुआ कि जब मैं प्रैक्टिस करना चाहूंगा, मैं पढ़ाई करना चाहूं या रिसर्च करना चाहूं। इस शख्स के ऊपर तो मेरे पास कम से कम एक से डेढ़ साल तक का समय था। जब मैंने इस शख्स को पढ़ा सोचा समझा। अपने अंदर उतारा और फिर एक्टिंग क बात करूं तो मेरे एक्टिंग का जो लेवल बढ़ गया है। इस वेब सीरीज को करने के बाद इतनी नफासत आ गई है उसके लिए तो मैं धन्यवाद ही कहना चाहूंगा निर्देशक और भगवान का।

यह वेब सीरीज सुचेता दलाल और देवाशीष बासु की लिखी किताब हू वन, हू लॉस्ट एंड हु गॉट अवे, इस पर आधारित है। इस बारे में सुचेता दलाल का कहना था कि मैं उस समय एक दैनिक अखबार के लिए लिखती थी और मुझे रोज बाहर जाकर अपनी रिपोर्ट करनी होती थी। फिर ऑफिस में आकर में लिखना होता था। रोजमर्रा के काम और रिपोर्टिंग के अलावा कुछ नया करना और किताब जैसी चीज पर ध्यान देना बड़ा मुश्किल था। 
 
देबाशीष के साथ शायद यह परेशानी नहीं थी। लेकिन उस समय देवाशीष को किसी ने धमकी दी थी कि कोलकाता से आए हो मुंबई के किस गलियारे में गुम हो जाओगे मालूम भी नहीं पड़ेगा। साथ ही किसी ने मानहानि का दावा भी ठोंक दिया था और जब यह केस न्यायालय पर पहुंचा और न्यायाधीश के हाथों में वह कागजात आए तो उन्होंने सीधे यह कहा कि ऐसे पत्रकार जो इतनी खोज कर रहे हैं और स्कैम के बारे में पूरी मालूमात निकाल रहे हैं। ऐसे पत्रकारों के ऊपर कोई मानहानि का दावा ठोकना सही नहीं होगा। ऐसे पत्रकारों को तो बढ़ावा मिलना चाहिए। और तीन घंटे के अंदर देबाशीष उस केस से छूट गए।
 
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