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Last Modified: बुधवार, 14 अगस्त 2019 (12:28 IST)

Exclusive Interview: बाटला हाउस में मैंने अपने करियर की बेस्ट एक्टिंग की है- जॉन अब्राहम

जॉन अब्राहम ने वेबदुनिया से विशेष बातचीत करते हुए कहा कि किस तरह से बाटला हाउस की शुरुआत हुई और संजीव कुमार से मिलकर उनके क्या अनुभव रहे।

Exclusive Interview: बाटला हाउस में मैंने अपने करियर की बेस्ट एक्टिंग की है- जॉन अब्राहम | I have done the best acting of my career in movie Batla House- John Abraham
"बाटला हाउस मेरे हिसाब से भारत के उत्तरी हिस्से में बाबरी मस्ज़िद के बाद होने वाली बड़ी घटनाओं में शामिल है। जब ये फिल्म मेरे पास निखिल आडवाणी लेकर आया तो उसने कहा कि मैं इसे पढ़ लूं। पढ़ने के बाद मैंने निखिल से कहा कि तू ही क्यों नहीं निर्देशित कर लेता और इस तरह से बाटला हाउस पर फिल्म बनाने की तैयारी शुरू हुई। मैं कह सकता हूं कि मेरे अब तक के करियर की सबसे दमदार एक्टिंग मैंने इसी फिल्म में की है। 
 
15 अगस्त को रिलीज़ होने वाली बाटला हाउस के बारे में बात करते हुए जॉन ने बताया- "मैं जब से निर्माता बना हूं मैं बेहतर एक्टिंग भी करने लगा हूं। एक समय ऐसा भी आया था कि जिस तरह की फ़िल्में मैं करना चाहता था वो मुझे मिल नहीं रही थीं, लेकिन निर्माता बनने के बाद मैं उस तरह की फ़िल्में कर रहा हूं जिन कहानियों के बारे में मैं कहना चाहता था। विकी डोनर जैसी फिल्म ने शुभ मंगल सावधान और बधाई हो जैसी फ़िल्मों के लिए रास्ते खोले हैं।"


 
इतने संजीदा टॉपिक पर फिल्म बनाते समय कहीं लगता है कि हम भी तथ्यों को जज या जांचने परखने ना लगें? 
हां, ये स्वाभाविक है कि हमारी सोच आड़े आ जाए, लेकिन हमने पहले ही मन बना लिया था कि हम जिस भी विचारधारा के हों फिल्म की कहानी पर यह बात हावी न हो। हमने जितने पहलुओं को छू सकते थे वो किया। हम बिल्कुल नहीं कह रहे हैं कि ये गलत और ये सही।  बस यही कह रहे हैं कि हमें ये ठीक लगा और हमें ये मालूम हुआ, बाकी की बात दर्शक निर्धारित करें। 
 
सच्चाई पर बनी फिल्म के निर्माण करते समय ये सोच कभी आई है कि एक पीढ़ी ये लिए मेरी फिल्म विजुअल डॉक्यूमेंट है तो कहीं कई गलती ना हो? 
मेरी फ़िल्मों में होने वाली हर बात के लिए मैं ज़िम्मेदारी लेता हूं। सच्चाई पर बनी फ़िल्मों की किसी को तो ज़िम्मेदारी लेनी होगी। इन घटनाओं के बारे में बताना बहुत जरूरी है। मसलन परमाणु में काम करने के बाद मुझे लगा नई पीढ़ी क्या, ये तो हमारी पीढ़ी को भी नहीं पता कि पोकरण में क्या हुआ था। जब 'मद्रास कैफ़े' मैंने कुछ चुनिंदा युवाओं को दिखाई तो सभी ने कहा कि अरे ये मौत क्यों हो गई?  जॉन अब्राहम ने उसे बचाया क्यों नहीं? उनमें से शायद एक ही इस घटना के बारे में जानता था। अगर ये हाल है हमारी नई पीढ़ी का तो बेहतर है कि इस पीढ़ी के सामने ऐसी घटनाओं के बारे में फिल्म बनाई जाए। 


 
आप असली ऑफिसर और उनके घरवालों से मिले? यदि हां तो क्या कहा उन्होंने? 
मैं संजीव और उनकी पत्नी से मिला था। पहली मीटिंग करीब 6 घंटे तक चली। कई बातें समझी उनसे। उनकी पत्नी ने मुझे कहा कि मेरे पति कभी पाँच मिनिट से ज़्यादा बात नहीं करते। ये बात मैंने अपनी फिल्म में भी रखी है। संजीव बहुत ही शांत स्वभाव के शख्स मुझे लगे। उन्होंने कई वीरता पुरस्कार जीते हैं। उन्होंने फिल्म के बारे में कहा कि अगर ये फिल्म बनी तो वो पूरी दुनिया को इस बारे में बता सकेंगे कि वह अपने देश से कितना प्यार करते हैं। उन्हें किसी भी संप्रदाय से कोई परहेज़ या दुश्मनी नहीं है। वह सिर्फ अपना काम कर रहे थे और वो भी पूरी ईमानदारी के साथ। उनमें मैंने एक विरोधाभास भी देखा। बतौर पुलिस ऑफिसर वह बड़े सख्त हैं, लेकिन जब भी बात पत्नी की आती है वह बहुत नरमदिल हो जाते हैं। वह अपनी पत्नी ये बहुत प्यार करते हैं। उन्हें ये भी महसूस होता है कि वो एक समय में बहुत ही गंदी राजनीति का शिकार हो गए थे। इतने अवसाद में चले गए थे कि आत्महत्या तक करने वाले थे। सर्जिकल स्ट्राइक देश के बाहर फौजी करते हैं और हमारे घर के अंदर रोज सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले संजीव कुमार जैसे ही लोग हैं। 
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