बुधवार, 25 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. मुलाकात
  4. Khandani Shafakhana, Shilpi Das Gupta, Interview

सेक्स पर बात करना गंदी बात माना जाता था: शिल्पी दासगुप्ता

सेक्स पर बात करना गंदी बात माना जाता था: शिल्पी दासगुप्ता - Khandani Shafakhana, Shilpi Das Gupta, Interview
''खानदानी शफाखाना हमने फ़ैमिली के लिए ही बनाई है। एक बात को मज़ाक़िया तरीके से दिखाया है। ऐसे में अगर आम लोगों में सोनाक्षी की इमेज घरेलु या पारिवारिक है, तो हमारे लिए ये अच्छी बात ही साबित होगा। सोनाक्षी ने अपने ही अभी तक के परफॉर्मेंस की सीमा को तोड़ने का काम किया है। फिल्म ख़ानदानी शफाखाना में मर्दों का मर्दाना कमज़ोरी का इलाज जब महिला करने जाए तो भारत जैसे देश में क्या परिस्थितियाँ हो सकती हैं, इसी बात को हंसी - मज़ाक के साथ पेश करने की कहानी है।'' 
 
निर्देशक शिल्पी दासगुप्ता भोपाल से हैं जहां उन्हें माँ और पिता दोनों से थिएटर और नाट्य विरासत में मिला। बेवदुनिया से आगे बात करते हुए शिल्पी बताती हैं, "मैं बचपन में मिशनरीज़ स्कूल सेंट जोज़फ कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ी हूं। हमारे लिए सेक्स एजुकेशन या इससे मिलता जुलता शब्द सुनना भी मना था। हमें लड़को से डरा कर रखा जाता था कि लड़के किसी मोनस्टर की तरह हैं उसने दूर रहो। 
 
सेक्स जैसी चीज़ों की बात भी नहीं करते थे। हमारे शरीर में भी हार्मोंस इधर से उधर बह रहे थे और हम भी बड़ी नाज़ुक उम्र में थे। समझ में कुछ नहीं आता नहीं था। सेक्स पर बात करना गंदी बात कहा जाता था। आज तो फिर भी लोग गूगल करके देख सकते हैं। मेरी ये फिल्म उस समय के कंफ्यूज़न के लिए है ताकि लोग परिवार या दोस्तों के साथ विषय को समझे। छोटे शहरों में ये डिस्कशन ज़रूरी हैं।'' 
 
भोपाल जैसे शहर की होने की वजह से ये विषय चुना आपने? 
नहीं, ऐसा भी नहीं है, लेकिन छोटे शहर की होने की वजह से मुझे लगता था कि ऐसे टॉपिक पर बात होनी चाहिए। इसलिए जब ऐसा कोई टॉपिक मेरे सामने आया तो मैंने भी फिल्म बनाने का मन बना लिया। सेक्स को लेकर जो धारणा है ये सिर्फ बड़े छोटे शहर की नहीं बल्कि लोगों के सोच की है। ये मान लेना कि सेक्स के बारे में कोई समझा देगा, कोई और बता देगा, तो ये गलत है। अब जरूरी हो गया है कि लोगों को अपने बच्चों का दोस्त बन कर उन्हें जानकारी देना होगी। 
 
एक महिला निर्देशक होने के नाते आपको निर्देशन करते समय क्या ध्यान देना पड़ा? 
मुझे बात को संजीदगी से लेना पड़ा। समाज कितना आगे जा रहा है या पीछे आ रहा है ये इसी बात से समझा जा सकता है कि समाज में औरत की क्या स्थिति है? आसान नहीं होता है कि औरत पहले तो मर्दों की दुनिया में जाए। फिर वह मर्द से उसकी सेक्शुअल परेशानी की बात कर उसे सुलझाए और दवाई भी दे। औरतों के पास वैसे भी कई ज़िम्मेदारियां इसलिए होती हैं क्योंकि वह निभाने का ताकत भी रखती है। 
 
आपको विकी डोनर और शुभ मंगलम सावधान जैसी फ़िल्में कैसी लगी? क्योंकि आपकी फिल्म का टॉपिक भी पा ब्रेकिंग है? 
मुझे विकी डोनर बहुत पसंद आई। लेकिन हम पाथ ब्रेकिंग फिल्म बना रहे हैं ये तो सोचा ही नहीं। उस समय जब कहानी पर बात हो रही थी तो लगा कि ऐसी फिल्म बने, बनाने में मज़ा आएगा। फिर ये महसूस हुआ कि ऐसी बातें भी समाज में होनी चाहिए।