फिल्म 'कुत्ते' में अपने किरदार को लेकर अर्जुन कपूर ने कही यह बात
विश्वास बहुत जरूरी है। विश्वास चाहे वह मीडिया पर हो, अपने आप पर हो या फिर अपने साथियों पर। यह विश्वास आपको अपने निर्माता पर होगा, निर्देशक पर भी होगा और अपने साथी कलाकारों पर भी होगा। इसी विश्वास के साथ जब आगे बढ़ते हैं तो एक वादा होता है उस फिल्म के लिए जो आपको स्वयं से जोड़े रखती है। ऐसा होता है कि आप फिल्म बनाते हैं। आप कॉन्ट्रैक्ट तो बिल्कुल साइन कर लेते हैं। फिल्म के सेट पर भी पहुंच पाते हैं, लेकिन अगर वह भरोसा निर्देशक पर नहीं होगा तो आप अच्छे से एक्टिंग भी नहीं कर पाएंगे।
यह भरोसा सिर्फ अपने काम या व्यवसाय के लिए नहीं बल्कि आपसी रिश्तो के लिए भी बहुत जरूरी होता है। कोई आप पर विश्वास दिखाएगा तभी आपका परफॉर्मेंस बेहतर हो सकेगा। इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि करियर के 10 साल बाद अब मुझे बहुत जरूरी है कि मैं जिनके साथ काम करूं वह भी मेरे पर भरोसा करें। और जब वह करते हैं तो परफॉर्मेंस बेहतरीन होता है। कई बार आप ऐसे लोगों के साथ भी काम करते हैं जो आप पर विश्वास जताते हैं। और उस विश्वास के सहारे आप बहुत सारी ऐसी चीजों को भी सफलता से पा लेते हैं जो आपने सोच ही नहीं हो।
यह कहना है अर्जुन कपूर का जो हालिया रिलीज फिल्म 'कुत्ते' में एक पुलिस ऑफिसर की भूमिका निभा रहे हैं। मीडिया से बातचीत करते हुए अर्जुन ने कभी इमोशनल तो कभी हल्की फुल्की बातचीत करना पसंद किया।
वेबदुनिया ने जब यह पूछा कि कुत्ते नाम की फिल्म जब आप कर रहे थे तो आपको धर्मेंद्र जी के मशहूर डायलॉग की याद आई?
देखे ना पिता ने कमीने बनाई। बेटे ने कुत्ते बनाई, अब आने वाले दिनों में हो सकता है 'तेरा खून पी जाऊंगा' कुछ इस नाम की फिल्म बना ले। कुछ भी हो उन लोगों को तो सात खून माफ है। मस्ती की बात अलग है, लेकिन यहां पर बताना चाहता हूं कि इस नाम का बहुत अच्छे से उपयोग किया गया है और टाइटल के तौर पर इतना सही रहा इस शब्द का इस्तेमाल करना जब आप फिल्म देखेंगे तो खुद ब खुद समझ में आ जाएगा।
इन्होंने बहुत ही फिलोसॉफिकल होकर इस शब्द का इस्तेमाल टाइटल के तौर पर किया है। अब देखिए ना हो सकता है कुत्ते की तरह कोई वफादार भी तो होता है। कुत्ता वफादारी के लिए भी तो मशहूर है लेकिन एक के लिए वफादार है तो हो सकता उसके दुश्मन को वह पसंद ना आए और अगर वह शख्स वफादारी में भी फेल हो जाए तो फिर सभी लोग कहने लग जाएंगे। यह तो कुत्ते से भी गया गुजरा है। यानी इतनी सारी बातें हैं जो टाइटल की वजह से अपने आप साफ हो जाएंगे लेकिन उसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
फिल्म में एक तरीके का ह्यूमर भी है। कम से कम ट्रेलर में तो ही नजर आता है।
बिल्कुल है इस फिल्म में। मैं जो रोल निभा रहा हूं, वह निहायत ही दल बदलू किस्म का इंसान है। उसको जहां मौका मिलता है वह अपने फायदे के लिए किसी का भी साथ देता और किसी का भी साथ छोड़ देता है। हंसी इसलिए आती कि एक वर्दी में कोई पुलिस वाला है और वह बोल रहा है कि मैं तो बिक गया हूं और फिर अचानक से वो किसी और खेमे में चला जाता है।
उसे देखकर आंखों पर यकीन नहीं होता है। वैसे भी आज के समय में हम जिस तरीके की दुनिया में रह रहे हैं, यहां पर लालच या भूख कोई भी काम करवा सकती है। आप किसी के भी साथ दे सकते हो। आप किसी के भी साथ रह होते हो। आप किसी के लिए कुछ भी कर सकते हो जब तक कि उससे आपका काम बनता हो जिससे कि आपको पैसे कमाने का मौका मिलता हो और जहां तक बात है, बाकी के कलाकारों के ह्यूमर की तो यह लोग जैसे तब्बू हैं या नसीब ही हैं या कुमुद जी हैं यह तो अपने आप किसी भी समय में भी लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट देकर चले जाते हैं।
मिसाल के तौर पर तब्बू एक डायलॉग बोलती हैं। छोटे-बड़े मीडियम पूरा डायलॉग में नहीं बोलो तो अच्छा है पर आप समझ गए होंगे। वो सीधे-सीधे मुझ को और कुमुद जी को बोल रही है। कि तुम क्या हो और किस तरीके के हो और डायलॉग बोलने के बाद बोलती अच्छा तुम किस काम से आए हो? इतने से में उन्होंने हमें मर्द होने की असलियत से वाकिफ करा दिया हम किस तरीके के व्यक्ति होते हैं, इससे वाकिफ करा दिया और फिर काम भी पूछ लिया।
वह बहुत सुलझा हुआ लगा मुझको मुझे आज भी याद है कि नरेशन भी मुझे आसमान ने दिया था। यह तब की बात बता रहा हूं जब पहला लॉकडाउन लगा था और हम कहीं आ जा नहीं सकते थे। उस समय हम लोग जूम मीटिंग के जरिए मिले थे। एक तरफ मैं और दूसरी तरफ से विशाल जी और आसमान। एक-एक उसमें मुझे आसमान ने ही बताई है। कहीं अगर मुझे कोई संदेह हो रहा था तो आसमान ही उसे समझा रहा था। एक भी जगह ऐसी नहीं थी जहां पर उसे विशाल जी का चेहरा ताकना पड़ा हो। कुछ एक बात अगर ऐसी लगती थी तब विशाल जी कह देते थे कि ठीक है हम अलग से इसके बारे में मिलकर बात कर लेंगे। उस समय मुझे लगा कि इस लड़के में कुछ कहने का माद्दा है। इसके अपनी पर्सनालिटी है और फिर स्क्रिप्ट के क्या बात करूं। इतने अच्छे तरीके से लिखी थी। इतनी साफ तौर पर लिखी गई थी कि पढ़ते ही मुझे मजा आ गया था।
आपके 10 साल के करियर में कौन ऐसे अभिनेता रहे जिन से हम बहुत प्रभावित हैं।
मुझे ऐसा लगता है सैफ अली खान मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। जैसा कहते हैं ना इरफान खान की बात अलग है। अपने तरीके के अकेले ही एक्टर रहे हैं। यही बात मुझे सैफ की भी लगती है वो अपने तरीके के अनोखे एक्टर हैं। वह शुरुआत में आए थे, जिस तरीके की फिल्में उन्होंने की फिर बाद में वह नहीं चली पर दिल चाहता है की और उसके बाद जो सफर शुरू हुआ, फिर ओमकारा में भी आए। उन्होंने अपनी जगह अलग बना ली। आज जब भी कोई सैफ की बात करता है, अचानक से एक क्वालिटी की बात आ जाती है। वह बेहतरीन ही काम करेंगे यह सोच खुद ब खुद आपके दिमाग में आ जाती है। हमें यह भी लगता है कि शुरुआत में जो सैफ ने फिल्में की या तो इस बेहतरीन अभिनेता को उसके हिस्से की चमक नहीं मिली या फिर उस तरीके की फिल्में नहीं मिली।
मुझे अभिनेता के तौर पर तो वह पसंद आते हैं। मुझे तो उनकी जीवनी भी बहुत अच्छी लगती कितने उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन आज भी अभिनय के मामले में वह अपने तरह से अलग ही अभिनेता है। इसके अलावा एक और अभिनेता, जिसने मैं बहुत ज्यादा प्रभावित हूं वह है अजय देवगन। अभिनय में तो बेहतर है ही, लेकिन वह जिस तरीके से फिल्मों में सोच समझ कर आगे बढ़ते हैं, वह भी तारीफ के लायक है। एक तरफ जहां वह गंगाजल करते हैं तो वहीं उन्होंने गोलमाल भी की है। सिंघम भी की है, तो खाकी भी की है पुलिस की भूमिका तीनों फिल्में की, लेकिन तीनों फिल्म में भूमिका का एक अलग रूप देखने को मिला है।
उन्होंने रेनकोट किस्म की ड्रामा फिल्म की हैं तो वहीं पर गोलमाल हंसी हंसी ठिठोली वाली फिल्म की है और फिर ऑल द बेस्ट जैसी फिल्में करके सब लोगों के बीच में से घुल मिल जाते है जैसे कि उनकी अपनी कोई आयडेंटिटी नहीं है। मैं कहूंगा सैफ बतौर एक्टर मुझे पसंद है, लेकिन पूरी पर्सनालिटी अगर मुझे किसी अभिनेता की पसंद आती है तो वह अजय देवगन है।