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Written By WD feature Desk

श्री रामकृष्‍ण परमहंस के बारे में 5 रोचक बातें

Ramakrishna paramahamsa
Ramakrishna paramahamsa jayanti 2024: बंगाल के हुगली जिले में स्थित कामारपुकुर नामक गांव में स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस का जन्म 20 फरवरी 1836 ईस्वी को हुआ। 16 अगस्त 1886 को महाप्रयाण हो गया। उनके पिता का नाम खुदीराम चटोपाध्याय था। रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन शुक्ल की द्वितीया तिथि को हुआ था। तिथि के अनुसार उनकी जयंती 12 मार्च 2024 को भी मनाई जाएगी। आओ जानते हैं उनके जीवन की 5 रोचक बातें।
 
1. परमहंस क्यों कहते हैं?
स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक सिद्ध पुरुष थे। उन्हें कई तरह की सिद्धियां प्राप्त थी। हिंदू धर्म में परमहंस की पदवी उसे ही दी जाती है जो सच में ही सभी प्रकार की सिद्धियों से युक्त सिद्ध हो जाता है। उनका पूरा जीवन कठोर साधना और तपस्या में ही बीता। रामकृष्ण ने पंचनामी, बाउल, सहजिया, सिक्ख, ईसाई, इस्लाम आदि सभी मतों के अनुसार साधना की। 
 
2. कालिका माता के दर्शन:
रामकृष्ण परमहंस माता कालिका के भक्त थे। उन्हें हर जगह माता कालिका ही नजर आती थी और वे मां काली से बात भी करते थे। रामकृष्‍ण परमहंस के गुरु तोतापुरी महाराज थे। उन्होंने रामकृष्‍ण से कहा कि कालिका तुम्हारे भीतर ही है, मूर्ति में नहीं। तुम्हें इस भ्रम को तोड़ना होगा तभी तुम ज्ञान को उबलब्ध हो सकते हो। 

3. परमहंस अपनी पत्नी को मां कहते थे:
स्वामी रामकृष्‍ण परमहंस का असली नाम गदाधर चटोपाध्याय था। रामकृष्‍ण परमहंस ने शारदादेवी से विवाह किया था। उनकी पत्नी पहले उन्हें पागल समझती थी बाद में उन्हें समझ आया कि यह तो ज्ञानी और सिद्ध है। रामकृष्‍ण परमहंस अपनी पत्नी को मां कहते थे, जो उम्र में उनसे बहुत छोटी थी।
 
4. रामकृष्ण का शरीर हो गया था स्त्रियों जैसा : 
कहते हैं कि एक बार रामकृष्‍ण परमहंस जी सखी संप्रदाय की साधना कर रहे थे तब उनका चरित्र पूर्णत: स्त्रियों जैसा हो गया था और यह भी कहा जाता है कि इससे उनके शरीर में भी बदलाव आ गया था। सखी संप्रदाय के लोग मानते हैं कि पुरुष तो सिर्फ कृष्ण ही है बाकी सभी स्त्रियां हैं। 
 
5. संवेदनशीलता की पराकाष्ठा :
एक बार रामकृष्‍ण परमहंस हुगली नदी पर बैठे थे तभी वे जोर-जोर से चिखने-चिल्लाने लगे कि मुझे मत मारो। सभी भक्त उन्हें देखकर आश्चर्य करने लगे कि उन्हें तो कोई नहीं मार रहा फिर भी उनकी पीट पर कोड़े से मारने के निशान उभरने लगे थे। बाद में पता चला कि नदी के उस पार कोई अंग्रेज गरीबों को कोड़े से मार रहा था जिसका दर्द उन्होंने भी झेला।
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