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Written By Author अनिल जैन
Last Modified: पटना , सोमवार, 26 अक्टूबर 2015 (17:10 IST)

बिहार में हिट हो रहा है सिर्फ लालू का एजेंडा

बिहार में हिट हो रहा है सिर्फ लालू का एजेंडा - Lalu Prasad Yadav
पटना। बिहार विधानसभा के चुनाव में न तो नीतीश कुमार का विकास और सुशासन का एजेंडा उतना हिट हो पा रहा है जैसी की उन्हें अपेक्षा थी और न ही भाजपा का वह एजेंडा चल पा रहा है जिसके तहत वह लालू प्रसाद यादव के 'जंगल राज' को निशाना बनाने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए अपनी नैया पार लगाने का मंसूबा बांधे हुए थी। इस चुनाव में हिट हो रहा है तो सिर्फ लालू यादव का अगड़ा बनाम पिछड़ा का एजेंडा। 
लालू की इस कामयाबी का श्रेय जाता है संघ के मुखिया मोहन भागवत के उस बयान को जिसमें उन्होंने आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा किए जाने की बात कही थी। उनके इस बयान को लालू यादव ने तत्काल लपका और उसे आरक्षण खत्म करने की साजिश करार देकर बड़ी चतुराई से चुनावी मुकाबले को अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई बना दिया। भाजपा को भी मजबूरन उनके इस प्रचार का जवाब देना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के तमाम नेता लगातार सफाई दे रहे हैं कि आरक्षण की व्यवस्था हर हाल में जारी रहेगी।
 
जिस वक्त चुनाव का ऐलान हुआ तब शायद किसी को भी अंदाजा नहीं होगा कि चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य होने के बावजूद लालू प्रसाद पूरे चुनाव अभियान की धुरी बन जाएंगे, लेकिन आज हकीकत यही है कि लालू चुनावी धुरी बन गए हैं। भाजपा और उसके सहयोगी दलों का पूरा फोकस लालू प्रसाद पर है, जबकि उनके सहयोगियों की परेशानी यह है कि उनको कैसे चुप कराएं।
 
अभी तक मतदान के दो चरण सम्पन्न हो चुके हैं। दोनों चरणों में लालू का यह एजेंडा प्रभावी रहा है। दोनों चरणों में महागठबंधन को बढ़त मिलने के दावे किए जा रहे हैं। बाकी के तीन चरणों के लिए भी लालू इसी एजेंडा को लेकर भाजपा को घेर रहे हैं और भाजपा तथा उसकी सहयोगी पार्टियां उनके प्रचार का जवाब दे रही हैं। उनका एजेंडा कितना सटीक है, इसका अंदाजा भाजपा के यह कहने से ही लगाया जा सकता है कि उसकी ओर से कोई अगड़ा मुख्यमंत्री नहीं होगा। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को बार-बार न सिर्फ यह सफाई देनी पड़ रही है कि भाजपा आरक्षण विरोधी नहीं है, बल्कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की जाति भी बतानी पड़ रही है और यह भी बताना पड़ रहा है कि उनकी जाति अति पिछड़ा वर्ग में आती है। 
 
चुनाव आयोग ने लालू के खिलाफ जातिवादी भाषण देने का मुकदमा दर्ज कराया, पर इससे उनका एजेंडा और पुख्ता हुआ। मुकदमा दर्ज होने के बाद भी उन्होंने यादव और कुर्मी के बेटे यानी लालू और नीतीश के एक होने की बात कही। इस तरह उन्होंने जमीन पर यादव और कुर्मी को एक-दूसरे के वोट ट्रांसफर नहीं होने की आशंका को कम किया।
दरअसल, लालू यादव बिहार में यादव वोट बैंक के इकलौते क्षत्रप हैं। 
 
लोकसभा चुनाव के समय से नरेंद्र मोदी बिहार के यदुवंशियों के तार द्वारका (गुजरात) से जोड़ने के लिए ना-ना प्रकार के जतन कर रहे हैं। लेकिन लालू प्रसाद का असर खत्म नहीं हो रहा है। बहुसंख्यक यादव अब भी उनके साथ हैं। चुनाव नतीजे जो भी आएं, फिलहाल तो वे अपनी अनोखी शैली, लोगों से संवाद बनाने की क्षमता, आरक्षण का मुद्दा और यादव वोट बैंक के दम पर अपने विरोधियों की नींद हराम किए हुए हैं।