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Written By अनिल जैन
Last Updated : शुक्रवार, 6 नवंबर 2015 (19:45 IST)

बिहार के नतीजों से देश की राजनीति बदलेगी

बिहार के नतीजों से देश की राजनीति बदलेगी - Bihar election results
बिहार विधानसभा का चुनाव वैसे तो दो व्यक्तित्वों यानी नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार को केंद्र में रखकर लड़ा गया है लेकिन इसका नतीजा देश की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला होगा। बिहार के नतीजों से न सिर्फ एक बार फिर देश का राजनीतिक मुहावरा या कहें कि देश की राजनीति का मनोविज्ञान बदलेगा बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भी नया मोड आएगा। इसके साथ ही बदलेगी भाजपा की अंदरूनी राजनीति और उसके विरोधी भी बदलेंगे। 
 
अगर बिहार में भाजपा जीतती है तो उसका उतना बड़ा असर नहीं होगा जितना हारने पर होगा। बिहार की जीत नरेंद्र मोदी की चुनावी सफलताओं की श्रृंखला में महज एक और ट्रॉफी होगी। महाराष्ट्र, हरियाणा में जैसी अनसोची जीत मिली और मोदी की वाहवाही हुई वैसे ही बिहार की जीत भी उनके खाते में दर्ज हो जाएगी। लेकिन इससे बड़ी बात यह होगी कि देश में मंडलवादी राजनीति बुरी तरह बेदम हो जाएगी। राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में यह बड़ी अकल्पनीय घटना होगी। इसकी श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया होगी। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर अपनी मर्जी के मुताबिक फैसले लेने के लिए निर्बंध हो जाएगी। वे सरकार और पार्टी को जैसा चाहेंगे वैसा चलाएंगे। संघ परिवार में भी अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए नए उत्साह का संचार होगा होगा। उसके वाचाल और बदजुबान तत्वों के तो कहने ही क्या?
 
बिहार जीतने की स्थिति में ऊपर से लेकर नीचे तक पूरी भाजपा अपने गुजरात मूल के शहंशाह नरेंद्र मोदी और उनके सबसे बड़े सिपहसालार अमित मोदी के चरणों में नतमस्तक नजर आएगी। शहंशाह और शाह ऐसे अपराजित योद्धा माने जाएंगे, जिनके अश्वमेध का घोड़ा पश्चिम बंगाल, केरल और असम की ओर कुलांचे भरता दिखेगा।
 
एक तरह से बिहार में भाजपा की यह जीत 2002 के गुजरात विधानसभा चुनाव जैसी होगी। उस चुनाव में जीत के बाद मोदी ने वहां कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। भाजपा 2002 के बाद गुजरात में जैसे बदली, गुजरात का जैसा भगवाकरण हुआ और वह संघ परिवार के हिंदुत्व या कि सांस्कृतिक राष्टवाद की प्रयोगशाला बना, वैसा ही बिहार का और पूरी भाजपा का होगा। कोशिश पूरे भारत में भी वैसा ही करने की होगी। यह सब इसलिए हो पाएगा, क्योंकि भाजपा और संघ परिवार विरोधी सारी ताकतें घायल-लहुलूहान अवस्था में थकी और निस्तेज नजर आएंगी।
 
इस स्थिति के ठीक उलट यदि बिहार में भाजपा हारी तो फिर नरेंद्र मोदी के करिश्मे की कलई उतर जाएगी और वे बुरी तरह घिर जाएंगे। उनके सारे विरोधी उन पर दहाड़ते मिलेंगे। सीधे नरेंद्र मोदी पर हल्ला बोल होगा। हार के लिए मोहन भागवत, संघ परिवार के आक्रामक हिदुत्व, गोवध, बीफ जैसे मुद्दों को जिम्मेदार ठहराते हुए आव्हान होगा कि मोदी या तो इनसे नाता तोडे या इन पर लगाम कसे। मोदी को यह थीसिस उनके इनर सर्कल से भी पेश की जाएगी। पिछले 18 महीनों में दुनिया के तमाम देशों में घूम-घूमकर खासकर वहां बसे भारतीयों के बीच उन्होंने जो अपनी छवि बनाई है उस पर बट्टा लगेगा सो अलग। 
 
मतलब एक ऐसा भंवर बनेगा जिससे निकलने के सुझाव कई होंगे लेकिन उस भंवर से बाहर निकलना आसान नहीं होगा। एक तरफ गैर-संघी ताकते उन्हें घेरेंगी तो दूसरी और संघ परिवार और भाजपा में अवज्ञा बढ़ेगी। मतलब कोई किसी की नहीं सुनेगा। भाजपा के तमाम बड़े नेता, सांसद और मुख्यमंत्री तब सीधे मोदी-अमित शाह को लेकर असंतोष और चिंता के सुर निकालने लगेंगे।
 
ऐसी स्थिति में संघ की भूमिका बढेगी। इसलिए कि बिहार में मोदीत्व की हवा निकलने की हकीकत के बाद संघ को ही मोदी और शाह की जोड़ी के लिए रक्षा कवच बनना पड़ेगा। एक तरफ संघ पर राजनीतिक समर्थन और आगे के चुनाव के लिए मोदी की निर्भरता बढ़ेगी तो दूसरी और मोदी पर संघ और उसके हिंदुत्व के एजेंडे से दूरी बनाने का दबाव होगा।

बिहार में भाजपा के हारने की स्थिति में यह भी तय है कि मोदी का विकास नुस्खा सियासी तौर पर अप्रासंगिक हो जाएगा। इसलिए कि उन्होंने अपने चेहरे और विकास के वायदों पर ही बिहार का चुनाव लड़ा हैं।  जब लोगों ने उस पर भरोसा नहीं किया और उन्हें झांसेबाज माना गया तो आगे वे इसके बूते पूरे देश में कैसे भरोसा बनवा सकते हैं? कुल मिलाकर बिहार की हार के बाद नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनके विरोधी और मीडिया इतने आक्रामक हो जाएंगे कि उनके सामने कुछ नया करने का विकल्प नहीं बचेगा और ले देकर उग्र हिंदुत्व के तेवर वाली राजनीति का विकल्प ही उन्हें अपनाना पड़ेगा।