सोशल मीडिया पर चढ़ा बिहार चुनाव नतीजों का रंग
पटना। बिहार चुनाव के नतीजों के रुझान में जैसे-जैसे जदयू की अगुवाई वाला गठबंधन बहुमत हासिल करने की तरफ बढ़ रहा था, वैसे-वैसे सोशल मीडिया भी उस रंग में रंगता गया। एक तबका जहां इस परिणाम को लोकतंत्र की जीत बता रहा है वहीं कुछ का मानना है कि इससे बिहार में जंगल राज की वापसी होगी।
पटना, मुजफ्फरपुर और दरभंगा से दिल्ली तक लोगों ने फेसबुक और ट्विटर के सहारे अपने-अपने ढंग से चुनाव परिणामों पर राय प्रकट की। कुछ लोगों ने लालू-नीतीश की जीत का समर्थन किया तो कुछ ने मोदी-शाह के नेतृत्व में भाजपा की हार पर निराशा प्रकट की।
आरएसएस को निशाने पर लेते हुए एक शहरी कुमुद सिंह ने कहा 'एक बिहार नागपुरियों पर भारी।' बेंगलूरु में रहने वाले पटना के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर नबील अशरफ ने जीत पर संतोष व्यक्त करने के लिए हास्य से भरे वाक्य का प्रयोग किया।
उन्होंने फेसबुक पर लिखा 'भाजपा कह रही है कि चूंकि गाय को मत देने का अधिकार नहीं है इसलिए हम लोगों की हार हुई।'
दूसरे देशों में रहने वाले इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने ज्यादा ही उत्साह से ट्वीट किया। अमेरिका में रहने वाले एक शोधकर्ता अजीत चौहान ने कहा 'जो न कटे आरी से, वो कटे बिहारी से।' चुनाव प्रचार और भाषणों में गाय, गौमांस और पाकिस्तान का मुद्दा छाया हुआ था और जब आज मतगणना होने लगी तो फिर यही मुद्दे सोशल मीडिया पर एक बार फिर से छा गए। ट्विटर प्रयोग करने वाले लोगों ने जमकर मोदी-शाह को कोसा।
फेसबुक पर साझा किए गए एक दिलचस्प पोस्टर में लालू-नीतीश को एक ऐसे रॉकेट को सुलगाते हुए दिखाया गया है जिसमें मोदी-शाह दोनों की तस्वीरों को चिपकाया गया है और लालू-नीतीश उन्हें दिवाली की शुभकामनाएं दे रहे हैं। वहीं मोदी-शाह कह रहे हैं 'मैं जानता हूं यह पाकिस्तान निर्मित रॉकेट है'। भाजपा समर्थकों ने गठबंधन की जीत पर रोष व्यक्त करने के लिए भी वचरुअल मीडिया का सहारा लिया।
दिल्ली निवासी सुरभि प्रसाद ने कहा, 'मुबारक हो..जंगल राज हुआ है।' भाजपा मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए प्राय: 'जंगल राज' शब्दावली का इस्तेमाल करती रही है।
गुड़गांव में रहने वाले गौरव दीक्षित कहते हैं 'और अचानक बिहार का कैलेंडर वर्ष 1995 का हो गया। गर्व महसूस करने वाले बिहारियों को बधाई।' आज सुबह ट्रेंड आने के साथ ही ट्विटर पर चर्चाएं होने लगीं।
मुंबई के ट्विटर उपयोगकर्ता अली फजल ने लिखा, 'बिहार में जीत इस बात की याद दिलाती है कि इसे अपना देश कहने की संभावना अब भी जीवित है। ऐसा मेरे लिए नहीं बल्कि उनके लिए जो देश भर में नफरत के शिकार हो रहे हैं।' (भाषा)