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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 14 मई 2014 (10:58 IST)

गरीबों के लिए ट्रेन में 'भीख' मांगता एक प्रोफेसर

- मधु पाल (मुंबई से)

गरीबों के लिए ट्रेन में ''भीख'' मांगता एक प्रोफेसर -
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मुंबई का चर्चगेट स्टेशन। एक पढ़ा लिखा सा दिखने वाला शख्स विरार जाने वाली लोकल ट्रेन में चढ़ता है और अचानक लोगों से पैसे मांगने शुरू कर देता है। लोग हैरान रह जाते हैं क्योंकि उसके कपड़ों से, उसके बोलने के ढंग से उन्हें यकीन ही नहीं आता कि ये शख्स भी ऐसा काम कर सकता है।

लेकिन बिना झिझके ये शख्स अपने काम में पूरी तन्मयता से जुट जाता है। इनका नाम है प्रोफेसर संदीप देसाई। ये पहले एसपी जैन मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में पढ़ाते थे। ट्रेन में मैं भी उनके साथ सवार थी। और उनके प्रति लोगों की प्रतिक्रिया देखना वाकई बड़ा दिलचस्प था।

लेकिन संदीप ऐसा करते क्यों हैं? एक पढ़ा लिखा व्यक्ति भला ऐसा क्यों करता है?

संदीप ने बताया, 'मैं बचपन से ही समाज के गरीब तबके के लिए कुछ करना चाहता था। मैं चैरिटी के जरिए बच्चों की शिक्षा में योगदान देना चाहता था। तो मैंने ठान लिया कि खुद घूम-घूमकर पैसे इकट्ठा करूंगा और गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनवाऊंगा।'

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चार साल से 'मिशन' जारी : संदीप देसाई पिछले चार साल से लोकल ट्रेन में लोगों से धन इकट्ठा कर रहे हैं और कई लोग उनके इस काम को भीख मांगने की संज्ञा भी देते हैं। कभी चर्चगेट से विरार जाने वाली लोकल ट्रेन तो कभी कल्याण से छत्रपति शिवाजी टर्मिनल जाने वाली लोकल ट्रेन के डब्बों में घूम घूमकर संदीप देसाई पैसे इकट्ठे कर रहे हैं।

वह हर यात्री से उसी की जबान में बात करके इस काम को अंजाम देते हैं। हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी भाषा में बात करके अपने मिशन में जुटे हैं। संदीप 'विद्या दान, महादान' का संदेश लोगों को देकर उनसे पैसे इकट्ठा करते हैं। इस काम की शुरुआत कैसे हुई और क्या उन्हें किसी तरह की दिक्कत पेश आई?

दिक्कत : संदीप कहते हैं, 'जब मैंने शुरुआत की, तो लोगों को मुझ पर जरा भी यकीन नहीं आता था। वो मुंबईया भाषा में कहते हैं ना कि यहां पर दूसरों को टोपी पहनाने वालों की कमी नहीं है। तो लोगों के दिमाग में यही चलता रहता था कि मैं गरीबों की मदद की बात कहकर उन्हें लूट रहा हूं और मैं ज्यादा पैसे इकट्ठे नहीं कर पाता था।'

इसका उपाय संदीप देसाई ने कैसे निकाला? अगले पन्ने पर...



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इसका उपाय संदीप देसाई ने कैसे निकाला?
इसके जवाब में उन्होंने बताया, 'मैंने 2010 में अपने चार लाख विजिटिंग कार्ड छपवाए। मैंने लोगों से ये भी कहा कि आप मेरी जानकारी यू-ट्यूब और गूगल पर भी देख सकते हैं। उसके बाद भी कई बार लोगों को विश्वास नहीं होता था और कई बार तो मैं पैसे मांगता तो लोग मारने दौड़ते।'

संदीप देसाई बताते हैं कि इन सब समस्याओं के बावजूद उन्होंने अपना संयम बनाए रखा और धीरे-धीरे वह लोगों को अपने उद्देश्य के बारे में समझाने में कामयाब रहे।

सलमान खान ने की मदद : वह कहते हैं, 'मेरी मदद में मीडिया का भी बड़ा योगदान रहा। टीवी, रेडियो और अखबारों में मेरे काम की चर्चा हुई। लोगों को मेरे बारे में पता चला तो उनका नजरिया भी बदला। आज मुझे लोकल ट्रेन में लोग पहचानने लगे हैं। लोग मेरे चेहरे से वाकिफ हैं और मुझे बड़ा सम्मान देकर पैसे देते हैं।'

संदीप दावा करते हैं कि वह अब तक लोकल ट्रेन में घूम-घूमकर एक करोड़ रुपए जमा कर चुके हैं।

सलमान खान : उनका कहना था, 'मेरे काम की चर्चा होने पर कई लोग हमारी मदद को आगे आए। अभिनेता सलमान खान ने कहा कि वह मेरे इस मिशन में मेरे साथ हैं। उन्होंने अपनी तरफ से हमें तकरीबन 80 लाख रुपए दिए। उनकी ये मदद हमें इस साल से मिलनी शुरू हो गई है।'

तो अब तक इस इकट्ठा किए पैसे से उन्होंने क्या किया? संदीप के मुताबिक वह राजस्थान के उदयपुर जिले स्थित सलारा तहसील में दो और सलोंबर में एक स्कूल खोल चुके हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र के यवतमाल और सिंधुदुर्ग जिले में भी एक-एक स्कूल खोल चुके हैं।

अकाल प्रभावित क्षेत्र से 200 बच्चे हर स्कूल में पढ़ते हैं। कुल मिलाकर लगभग छह सौ से ज्यादा बच्चे इनके स्कूलों में मुफ्त में अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा हासिल कर रहे हैं।

परिवार नाराज : खुद संदीप के परिवार वाले उनके इस काम को पसंद नहीं करते। वह बताते हैं, 'मेरी मां के अलावा परिवार का कोई सदस्य मुझे पसंद नहीं करता। वे मेरे इस तरह पैसा इकट्ठा करने की मुहिम को बिल्कुल सपोर्ट नहीं करते। लेकिन मेरी मां ने हमेशा मेरा साथ दिया। अपने इस काम की वजह से ही मैंने आज तक शादी नहीं की।'

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भारत में भीख मांगना अपराध है और प्रोफेसर संदीप देसाई का जो पैसे इकट्ठा करने का तरीका है उसे कई लोगों ने भीख भी कहा। इसलिए एक बार संदीप के जेल जाने की नौबत तक आ गई।

लेकिन जब अदालत को पूरी बात पता चली तो उन्हें छोड़ दिया गया। बाद में रेलवे विभाग ने भी अपने कर्मचारियों को हिदायत दी कि उन्हें तंग ना किया जाए।

यात्रियों की प्रतिक्रिया : संदीप देसाई के साथ बात करते-करते बोरीवली स्टेशन आने वाला था, जहां मुझे उतरना था। मैंने सोचा कि एक बार यात्रियों से भी प्रोफेसर साहब के बारे में राय जान ली जाय।

संदीप देसाई के दान-पात्र में सौ का नोट डालने वाले एक यात्री ने बताया, 'इनके बारे में मैंने इंटरनेट पर काफी पढ़ा है। ये बहुत अच्छे हैं। जब ये इतना बढ़िया काम कर रहे हैं तो हमें भी इनकी मदद करनी चाहिए।'

एक दूसरे यात्री ने कहा, 'मैं इन्हें कई साल से देख रहा हूं। हालांकि जो ये दावा करते हैं, मैं उस पर तब तक यकीन नहीं करूंगा जब तक कि अपनी आंखों से न देख लूं। लेकिन चूंकि ये शिक्षा के लिए पैसे मांग रहे हैं तो दस-बीस रुपए दे देता हूं।'

तब तक बोरीवली स्टेशन आ गया। मैं ट्रेन से उतर गई। लेकिन संदीप देसाई अपने आगे के सफर के लिए ट्रेन में ही सवार रहे।