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Last Modified: मंगलवार, 3 जनवरी 2017 (11:13 IST)

कट्टर मुसलमानों का आदर्श गाँव एक 'फ़्लॉप प्रोजेक्ट'

Kerala
- ज़ुबैर अहमद (सलफ़ी विलेज, केरल)
केरल में आज से 10 साल पहले एक ही तरह की सोच और एक ही विचारधारा के मानने वाले दो दर्जन मुस्लिम परिवारों ने फैसला किया कि वो आबादी से कहीं दूर, जंगल के करीब जाकर अपना एक अलग गाँव बसाएँगे। ये कोई रोमानी दुनिया बसाने की कोशिश नहीं थी। उनकी कोशिश थी एक आदर्श इस्लामी समाज बनाने की जहाँ एक मस्जिद हो, एक मदरसा हो और जहाँ शांति से इस्लाम में बताए हुए 'सही'रास्ते पर बिना किसी रुकावट के चला जा सके। ये लोग कट्टरपंथी सुन्नी विचारधारा सलफ़ी इस्लाम के मानने वाले हैं।
ये वही गाँव है जो पिछले कुछ महीनों से सुर्ख़ियों में है क्योंकि यहाँ के निवासी कट्टर इस्लाम को मानने वाले हैं जो समाज की मुख्यधारा से कट कर गाँव में आबाद हो गए हैं। इस गाँव में मीडिया वालों को अंदर आने से रोका जाता है। बाहर वालों से संपर्क नहीं के बराबर है। लेकिन बीबीसी हिंदी की टीम को वहां के एक परिवार ने काफी संकोच के बाद निमंत्रित किया। ये थे गाँव के निवासी यासिर अमानत सलीम। तीन बच्चों के बाप यासिर पेशे से एक सिविल इंजीनियर हैं।
 
उनके अनुसार केरल में आज का मुस्लिम समाज ग़ैर इस्लामी हो गया है। सलफ़ी गाँव को आबाद करने के मक़सद के बारे में वो कहते हैं, "हमारा आइडिया था कि खुद से आबाद किए गए गाँव में हम असली इस्लाम पर अमल कर सकेंगे। हमने कल्पना की थी कि गाँव से गाड़ी से निकलेंगे और गाड़ी से वापस लौटेंगे, रास्ते में किसी से संपर्क नहीं होगा।" उनका इरादा पैग़म्बर मोहम्मद के ज़माने के इस्लामी समाज की स्थापना का था।
 
आदर्श गाँव की स्थापना हुई। एक मस्जिद बनी, मदरसा भी बना। लोगों ने अपने घर बनाए। यासिर ने भी एक घर बनाया और घर के सामने एक ख़ुली ज़मीन के मालिक बने जिस पर वो अपनी दो गाड़ियां पार्क करते हैं। बाद में गाँव को ऊंची दीवार से घेर दिया। कालीकट शहर से 60 किलोमीटर दूर, एक वीरान इलाक़े में, जंगल के निकट आबाद किए गए इस गाँव को अतिक्कड का नाम दिया गया।
 
लेकिन जिस कट्टर विचारधारा ने गाँव में 25 परिवारों को एक साथ जोड़ा था, उसी विचारधारा ने उनमें फूट भी डाल दी। हुआ ये कि मदरसे के मुख्य अध्यापक ने एक बार छोटे बच्चों को अपनी गोद में बैठाया जिस पर गाँव के सलाफियों ने एतराज़ जताया। ये सहमति बनी कि मुख्य अध्यापक को सज़ा मिलनी चाहिए।
लेकिन सज़ा की मुद्दत पर असहमति पैदा हो गई। गाँव दो गुटों में बंट गया। एक गुट ने कहा कि मुख्य अध्यापक को एक साल के लिए निलंबित कर दिया जाए। जबकि दूसरे गुट की मांग थी कि टीचर को हमेशा के लिए निकाल बाहर किया जाए। इस पर झगड़ा इतना बढ़ा कि अधिक सज़ा की बात करने वालों ने अरब देश यमन के सलफ़ी मुसलमानों से संपर्क किया। यमन में भी एक सलफ़ी गाँव है जहाँ अधिक कट्टर सलफ़ी आबाद हैं जिनमे से कुछ केरल के निवासी हैं। उनके अनुसार इस्लाम के लिए जिहाद लाज़मी है।
 
खैर, केरल के सलफ़ी विलेज में फैसला ये हुआ कि मुख्य अध्यापक को एक साल के लिए सस्पेंड किया जाए। इस फ़ैसले के विरोध में अधिक कट्टरवादी गुट ने गाँव छोड़ दिया।
 
अब इस गाँव में केवल 10 परिवार रह गए हैं। यासिर अमानत सलीम का परिवार उनमें से एक है। वो खेद के साथ कहते हैं कि आदर्श गाँव बनाने का उनका प्रयोग नाकाम हो गया है, "ये प्रोजेक्ट फ़्लॉप है। हमें अलग-थलग समाज नहीं बनाना चाहिए था। ये हमारी ग़लती थी।"
 
"मुस्लिम समाज में फूट और ग़ैर इस्लामी रीति-रिवाज देख हम ने अपना एक अलग समाज बनाया था। लेकिन हमारी ग़लती ये थी कि हमने बाहर की दुनिया से ख़ुद को अलग रखा।"
वो कहते हैं कि वो अब केवल बच्चों की ख़ातिर इस गाँव में रह रहे हैं। उनके तीनों बच्चे इसी गाँव में पैदा हुए हैं। यासिर के अनुसार अलग-थलग रहने के कारण गाँव के प्रति लोगों को ग़लतफ़हमियाँ होने लगीं। उन्होंने आगे कहा, "पहले हमारे गाँव को पाकिस्तान कॉलोनी कहा जाने लगा। इसके बाद कहा गया कि यहाँ तो चरमपंथी रहते हैं।"
 
उनकी कट्टर विचारधारा के कारण आज भी उन्हें चरमपंथी समझ जाता है। मीडिया में ''सलफ़ी विलेज'' के नाम से प्रचलित होने वाला ये गाँव जुलाई में उन 20 मुस्लिम युवाओं के ग़ायब होने के बाद से सुर्ख़ियों में है जिनके बारे में पुलिस को शक है कि वो सीरिया में तथाकथित इस्लामिक स्टेट से जुड़ गए हैं।
 
ग़ायब होने वाले युवा भी कट्टरपंथी सुन्नी विचारधारा सलफ़ी इस्लाम के मानने वाले थे। पुलिस ने गाँव वालों के बैकग्राउंड की जांच की। पुलिस टीम में शामिल एक अफ़सर ने अपना नाम ज़ाहिर किये बग़ैर बताया कि सलफ़ी विचारधारा के तीन चरण होते हैं। पहले चरण में शुद्ध इस्लाम को माना जाता है, दूसरे चरण में कट्टरता बढ़ती है और तीसरे चरण में सलफ़ी मुस्लिम कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
पुलिस अधिकारी आगे कहते हैं, "इस गाँव के लोग अभी पहले चरण में हैं। हमारी निगाह सभी पर है। वो क़ानून नहीं तोड़ रहे हैं।"
 
गाँव वाले कहते हैं कि ग़ायब होने वाले युवाओं से उनका कोई संबंध नहीं। हाँ, यासिर के अनुसार एक साल पहले दो-तीन ऐसे परिवार बाहर से आकर किराए पर रहने लगे जो कट्टर इस्लाम की शिक्षा दे रहे थे और ''हमारे युवाओं को भड़काने की कोशिश कर रहे थे।" यासिर के अनुसार उन्होंने पुलिस को उनकी गतिविधियों की ख़बर जब से दी है वो गाँव में नज़र नहीं आते।
 
क्या वो वही युवा तो नहीं थे जो राज्य से ग़ायब हो गए हैं और जिनके बारे में पुलिस को शक है कि वो सीरिया में तथाकथित इस्लामिक स्टेट से जा मिले हैं? यासिर कहते हैं उन्हें इसका अंदाज़ा नहीं। लेकिन पुलिस को शक है कि उनमें से कुछ लोग इस्लामिक स्टेट से जा मिलने वाले गुट के हो सकते हैं।
 
यासिर अब इस गाँव के अलग होने से ऊब चुके हैं। उनका विचार अब बदल चुका है। वो चाहते हैं कि उनके गाँव में हिन्दू भी आकर बसें और ईसाई भी। नास्तिक भी आबाद हों और धार्मिक लोग भी। यासिर भारत में मज़हबी आज़ादी के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। उनका विश्वास है कि देश में हर मज़हब के लोग मिल जुल कर रहें। लेकिन सलफ़ी विलेज में यासिर की तरह वहां आबाद दूसरे सलाफ़ियों की विचारधारा नहीं बदली है। लंबी दाढ़ी वाले दो अलग-अलग शख्सों ने हमें न केवल इंटरव्यू देने से इंकार कर दिया बल्कि उनकी तस्वीर लेने से भी रोक दिया।
 
यासिर कहते हैं कि गाँव के अंदर रह रहे सलफ़ी मुस्लिम फिर भी ठीक हैं। वो इस बात से चिंतित हैं कि यमनी सलफ़ी इस्लाम के मानने वाले गांव के बाहर राज्य भर में जगह-जगह आबाद हैं। उन्हें समाज में वापस लाना ज़रूरी है।
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