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Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 26 मार्च 2024 (07:51 IST)

दवा टेस्ट में फेल वो फार्मा कंपनियां, जिन्होंने खरीदे करोड़ों के इलेक्टोरल बॉन्ड

electoral bond
राघवेंद्र राव और शादाब नज़्मी, बीबीसी संवाददाता
भारत में दवा, इलाज और मेडिकल सुविधाओं की बढ़ती कीमतें कोई छुपी हुई बात नहीं है। इस स्थिति में अगर ये पता चले कि हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मलेरिया, कोविड या दिल की बीमारियों का इलाज करने वाली कई प्रचलित दवाओं के ड्रग टेस्ट फेल होते रहे हैं तो आम लोगों के लिए ये एक चिंता का विषय है।
 
लेकिन अगर साथ-साथ ये भी नजर आए कि जिन कंपनियों की दवाओं के ड्रग टेस्ट फेल हुए उन्होंने सैकड़ों करोड़ रुपयों के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के तौर पर दिए तो बात और भी गंभीर हो जाती है।
 
ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े उस डेटा के विश्लेषण से जिसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग को उपलब्ध करवाया और जिसे चुनाव आयोग ने सार्वजनिक किया।
 
डेटा को खंगालने पर ये सामने आया है कि 23 फ़ार्मा कंपनियों और एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ने इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये क़रीब 762 करोड़ रुपए का चंदा राजनीतिक दलों को दिया।
 
आइए पहले नज़र डालते हैं उन फ़ार्मा कंपनियों पर जिनके ड्रग टेस्ट फ़ेल हुए और जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदकर राजनीतिक दलों को दिए।
 
1. टोरेंट फ़ार्मास्यूटिकल लिमिटेड
  • इस कंपनी का रजिस्टर्ड दफ़्तर गुजरात के अहमदाबाद में है।
  • साल 2018 से 2023 के बीच इस कंपनी की बनाई तीन दवाओं के ड्रग टेस्ट फ़ेल हुए।
  • ये दवाएं थीं डेप्लेट ए 150, निकोरन आईवी 2 और लोपामाइड।
  • डेप्लेट ए 150 दिल का दौरा पड़ने से बचाती है और निकोरन आईवी 2 दिल के कार्यभार को कम करती है। लोपामाइड का इस्तेमाल अल्पकालिक या दीर्घकालिक दस्त के इलाज के लिए किया जाता है
  • इस कंपनी ने 7 मई 2019 और 10 जनवरी 2024 के बीच 77.5 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे।
  • इन 77.5 करोड़ रुपए में से 61 करोड़ भारतीय जनता पार्टी को दिए गए।
  • सिक्किम क्रान्तिकारी मोर्चा को इस कंपनी ने 7 करोड़ रुपए और कांग्रेस को 5 करोड़ रुपए दिए।
2. सिप्ला लिमिटेड
  • सिप्ला लिमिटेड का रजिस्टर्ड दफ़्तर मुंबई में है।
  • साल 2018 से 2023 के बीच इस कंपनी की बनाई दवाओं के सात बार ड्रग टेस्ट फ़ेल हुए।
  • ड्रग टेस्ट फ़ेल करने वाली दवाओं में आरसी कफ़ सिरप, लिपवास टैबलेट, ओन्डेनसेट्रॉन और सिपरेमी इंजेक्शन शामिल थी।
  • सिपरेमी इंजेक्शन में रेमडेसिविर दवा होती है जिसका इस्तेमाल कोविड के इलाज में किया जाता है।
  • लिपवास का इस्तेमाल कोलेस्ट्रॉल कम करने और हृदय रोगों के ख़तरे को कम करने के लिए किया जाता है।
  • ओन्डेनसेट्रॉन का इस्तेमाल कैंसर कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी और सर्जरी के कारण होने वाली मतली और उल्टी को रोकने के लिए किया जाता है
  • इस कंपनी ने 10 जुलाई 2019 और 10 नवम्बर 2022 के बीच 39.2 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे।
  • इनमें से 37 करोड़ के बॉन्ड बीजेपी को दिए गए और 2.2 करोड़ के कांग्रेस को।

3. सन फ़ार्मा लेबोरेटरीज़ लिमिटेड
  • सन फ़ार्मा लेबोरेटरीज़ का मुख्यालय मुंबई में है।
  • साल 2020 और 2023 के बीच छह बार इस कंपनी की बनाई गई दवाओं के ड्रग टेस्ट फ़ेल हुए।
  • टेस्ट में फ़ेल होने वाली दवाओं में कार्डीवास, लैटोप्रोस्ट आई ड्रॉप्स, और फ़्लेक्सुरा डी शामिल थीं।
  • कार्डिवास का इस्तेमाल उच्च रक्तचाप, हृदय से संबंधित सीने में दर्द (एनजाइना) और हार्ट फेलियर इलाज के लिए किया जाता है।
  • 15 अप्रैल 2019 और 8 मई 2019 को इस कंपनी ने कुल 31.5 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
  • ये सारे बॉन्ड कंपनी ने बीजेपी को दिए।
 
4. ज़ाइडस हेल्थकेयर लिमिटेड
  • ज़ाइडस हेल्थकेयर लिमिटेड का मुख्यालय मुंबई में है।
  • साल 2021 में बिहार के ड्रग रेगुलेटर ने इस कंपनी की बनाई गई रेमडेसिविर दवाओं के एक बैच में गुणवत्ता की कमी की बात कही थी।
  • रेमडेसिविर का इस्तेमाल कोविड के इलाज में किया जाता है
  • 10 अक्टूबर 2022 और 10 जुलाई 2023 के बीच इस कंपनी ने 29 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
  • इसमें से 18 करोड़ रुपए बीजेपी को, 8 करोड़ रुपए सिक्किम क्रान्तिकारी मोर्चा और 3 करोड़ रुपए कांग्रेस को दिए गए।
5. हेटेरो ड्रग्स लिमिटेड और हेटेरो लैब्स लिमिटेड
  • इन कंपनियों का मुख्यालय तेलंगाना के हैदराबाद में है।
  • साल 2018 और 2021 के बीच इस कंपनी की बनाई गई दवाओं के सात ड्रग टेस्ट फ़ेल हुए।
  • ड्रग टेस्ट में फ़ेल हुई दवाओं में रेमडेसिविर इंजेक्शन, मेटफॉरमिन और कोविफोर शामिल थीं।
  • रेमडेसिविर और कोविफोर का इस्तेमाल कोविड के इलाज में किया जाता है जबकि मेटफॉरमिन का इस्तेमाल डायबिटीज या मधुमेह के लिए होता है।
  • हेटेरो ड्रग्स लिमिटेड ने 7 अप्रैल 2022 और 11 जुलाई 2023 को 30 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे।
  • ये सारे बॉन्ड तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) पार्टी को दिए गए।
  • हेटेरो लैब्स लिमिटेड ने 7 अप्रैल 2022 और 12 अक्टूबर 2023 को 25 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
  • इसमें से 20 करोड़ रुपए के बॉन्ड बीआरएस को और 5 करोड़ के बॉन्ड बीजेपी को दिए गए।
 
6. इंटास फ़ार्मास्युटिकल्स लिमिटेड
  • इंटास फ़ार्मास्युटिकल्स का मुख्यालय गुजरात के अहमदाबाद में है।
  • जुलाई 2020 में इस कंपनी की बनाई गई दवा एनाप्रिल का ड्रग टेस्ट फ़ेल हुआ।
  • एनाप्रिल का इस्तेमाल उच्च रक्तचाप और हार्ट फ़ेलियर के इलाज के लिए किया जाता है। इस दवा को दिल का दौरा पड़ने के बाद भी दिया जाता है।
  • इस कंपनी ने 10 अक्टूबर 2022 को 20 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे।
  • ये सारे बॉन्ड भारतीय जनता पार्टी को दिए गए।
7. आईपीसीए लैबोरेट्रीज़ लिमिटेड
  • आईपीसीए लैबोरेट्रीज़ लिमिटेड का मुख्यालय मुंबई में है।
  • अक्टूबर 2018 में इस कंपनी की बनाई गई दवा लारियागो टेबलेट का ड्रग टेस्ट फ़ेल हुआ।
  • लारियागो का उपयोग मलेरिया की रोकथाम और उपचार के लिए किया जाता है।
  • 10 नवम्बर 2022 और 5 अक्टूबर 2023 के बीच इस कंपनी ने 13.5 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
इसमें से 10 करोड़ रुपए के बॉन्ड बीजेपी को दिए गए और 3.5 करोड़ के बॉन्ड सिक्किम क्रान्तिकारी मोर्चा पार्टी को दिए गए।
 
8. ग्लेनमार्क फ़ार्मास्युटिकल्स लिमिटेड
  • ग्लेनमार्क फ़ार्मास्युटिकल्स लिमिटेड का मुख्यालय मुंबई में है।
  • साल 2022 और 2023 के बीच इस कंपनी की बनाई गई दवाओं के छह ड्रग टेस्ट फ़ेल हुए।
  • जिन दवाओं के ड्रग टेस्ट फ़ेल हुए उनमें टेल्मा एएम, टेल्मा एच और ज़िटेन टेबलेट शामिल थी।
  • टेल्मा एएम और टेल्मा एच का इस्तेमाल उच्च रक्तचाप के इलाज में किया जाता है। ज़िटेन टेबलेट का इस्तेमाल डायबिटीज के इलाज के लिए किया जाता है।
  • इस कंपनी ने 11 नवम्बर 2022 को 9.75 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
  • ये सभी बॉन्ड बीजेपी को दिए गए।
electoral bonds of pharma companies
'फ़ार्मा कंपनियों की गुणवत्ता से जुड़े मुद्दे'
के. सुजाता राव भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की सचिव के तौर पर काम कर चुकी हैं।
एक सिविल सेवक के रूप में अपने 36 साल के करियर में उन्होंने विभिन्न क्षमताओं में स्वास्थ्य क्षेत्र में 20 साल बिताए हैं।
 
वे कहती हैं, "बदले में कुछ हासिल करने की उम्मीद (क्विड प्रो क्वो) के बिना कोई किसी राजनीतिक दल को पैसा क्यों देगा? फ़ार्मा कंपनियों को कौन नियंत्रित करता है? नियंत्रण सरकार का होता है। अगर किसी कंपनी ने सत्ता में किसी पार्टी को पैसा दिया है तो इसका मतलब है कि ये स्पष्ट रूप से उनसे फ़ायदा लेने के लिए किया गया है। ये एक अलग मुद्दा है कि क्या सरकार ने चंदा देने वाली कंपनी को कोई फ़ायदा पहुँचाया या नहीं।"
 
सुजाता राव कहती हैं कि भारत में फ़ार्मा कंपनियों के साथ कोई न कोई समस्या रहती ही है। उनके मुताबिक़ इन कंपनियों में गुणवत्ता संबंधी मुद्दे और समस्याएं होती हैं।
 
वे कहती हैं, "यह देखने की ज़रूरत है कि क्या सरकार ने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चंदा देने के बाद इनमें से किसी भी कंपनी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करना बंद कर दिया। अगर ऐसा कोई संबंध नहीं है तो यह कहना मुश्किल है कि इसमें से कितना हिस्सा सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए निजी क्षेत्र का निवेश है। फ़ार्मा कंपनियां निश्चित रूप से असुरक्षित हैं।"
 
विशेषज्ञों का कहना है कि इस बात की जांच होनी चाहिए कि इन फ़ार्मा कंपनियों की दवाओं का परीक्षण में फ़ेल होने के बाद क्या हुआ। क्या उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई शुरू की गई?
 
क्या उन पर आरोपपत्र दायर किया गया था? अगर हाँ, तो क्या बॉन्ड के माध्यम से पैसा चुकाने के बाद उन कार्यों को रोक दिया गया था?
 
विशेषज्ञ ये भी कहते हैं कि चूंकि सरकार फ़ार्मा कंपनियों की रेगुलेटर या नियामक है इसलिए वह गुणवत्ता जांच और मंज़ूरी देने के मामले में उनके व्यवसायों पर बहुत ज़्यादा प्रभाव डालती है।
 
किसी चीज़ के लिए अनुमति देने में ज़रा सी भी देरी भी इन कंपनियों को महंगी पड़ सकती है। और ये माना जा रहा है कि शायद इसी सबसे बचने के लिए भी ये कंपनियां राजनीतिक दलों को पैसा देती हैं।
 
छापेमारी के बाद फ़ार्मा कंपनियों ने किस पार्टी को पैसा दिया?
कुछ ही दिन पहले एक अन्य रिपोर्ट में हमने आपको बताया था कि एसबीआई ने जो डेटा पहली खेप में चुनाव आयोग को दिया था उसका विश्लेषण करने पर कुछ ऐसे उदाहरण दिखे जहां किसी साल किसी प्राइवेट कंपनी पर एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) या आयकर विभाग की छापेमारी हुई और उसके कुछ ही दिन बाद उस कंपनी ने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे।
 
ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें किसी कंपनी ने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे और कुछ दिन बाद उस पर छापेमारी हुई और उसके बाद कंपनी ने फिर इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे।
 
इन कंपनियों में भी कुछ फ़ार्मा कंपनियां और एक अस्पताल शामिल हैं। आइये नज़र डालते हैं उन कंपनियों पर जिन पर एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) या आयकर विभाग की छापेमारी हुई और उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीद कर किन राजनीतिक पार्टियों को दिए।
 
यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल
  • यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का मुख्यालय तेलंगाना में है।
  • इस कंपनी ने 4 अक्टूबर 2021 और 11 अक्टूबर 2023 के बीच 162 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे।
  • कंपनी पर 22 दिसंबर 2020 को आयकर विभाग की रेड हुई।
  • 4 अक्टूबर 2021 से इस कंपनी ने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदने शुरू किए।
इस कंपनी ने 94 करोड़ रुपए के बॉन्ड भारत राष्ट्र समिति पार्टी को दिए। साथ ही कंपनी ने 64 करोड़ के बॉन्ड कांग्रेस को और 2 करोड़ के बॉन्ड बीजेपी को दिए।
 
डॉ रेड्डी'ज़ लैब
  • डॉ रेड्डी'ज़ लैब का मुख्यालय तेलंगाना के हैदराबाद में है।
  • 8 मई 2019 और 4 जनवरी 2024 के बीच 84 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे।
  • 12 नवंबर 2023 को आयकर विभाग ने इस कंपनी से जुड़े लोगों और उनके सहयोगियों पर अवैध नकद लेनदेन के मामले में छापेमारी की।
  • 17 नवम्बर 2023 को इस कंपनी ने 21 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
  • 4 जनवरी 2024 को कंपनी ने 10 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
इस कंपनी ने 32 करोड़ रुपए के बॉन्ड भारत राष्ट्र समिति पार्टी को दिए। साथ ही 25 करोड़ रुपए के बॉन्ड बीजेपी, 14 करोड़ रुपए के बॉन्ड कांग्रेस और 13 करोड़ रुपए के बॉन्ड तेलुगु देसम पार्टी को दिए।
 
ऑरबिन्दो फ़ार्मा
  • ऑरबिन्दो फार्मा का मुख्यालय तेलंगाना के हैदराबाद में है।
  • इस कंपनी ने 3 अप्रैल 2021 और 8 नवंबर 2023 के बीच 52 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
  • 10 नवंबर 2022 को कंपनी के डायरेक्टर पी सरथ चंद्र रेड्डी को ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले गिरफ़्तार कर लिया।
  • 15 नवंबर 2022 को कंपनी ने 5 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे। ये सभी बॉन्ड भारतीय जनता पार्टी को दिए गए।
और किन फ़ार्मा कंपनियों ने दिया चुनावी चंदा?
अब तक हमने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीद कर राजनीतिक दलों को करोड़ों रुपए देने वाली जिन कंपनियों की बात की वो या तो वो थीं जिनकी बनाई दवाओं के ड्रग टेस्ट फ़ेल हुए या वो जिनके ऊपर ईडी या इनकम टैक्स विभाग की छापेमारी हुई।
 
लेकिन इन कंपनियों के अलावा और भी कुछ कंपनियां हैं जिन्होंने कई राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए करोड़ों रुपयों का चंदा दिया।
 
नैटको फ़ार्मा
  • नैटको फ़ार्मा का मुख्यालय हैदराबाद में है।
  • इस कंपनी ने 5 अक्टूबर 2019 और 10 जनवरी 2024 के बीच 69.25 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
  • इसमें से 20 करोड़ रुपए बीआरएस पार्टी को, 15 करोड़ रुपए बीजेपी को और 12.25 करोड़ कांग्रेस पार्टी को दिए गए।
एमएसएन फ़ार्माकेम लिमिटेड
  • एमएसएन फ़ार्माकेम लिमिटेड का मुख्यालय हैदराबाद में है।
  • इस कंपनी ने 8 अप्रैल 2022 और 16 नवंबर 2023 को कुल 26 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बांड ख़रीदे।
  • इसमें से 20 करोड़ रुपए बीआरएस पार्टी और 6 करोड़ रुपए बीजेपी को दिए गए।
यूजिया फ़ार्मा स्पेशलिटीज़
  • यूजिया फ़ार्मा स्पेशलिटीज़ का मुख्यालय हैदराबाद में है।
  • इस कंपनी ने 8 नवम्बर 2023 को 15 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
  • ये सभी बॉन्ड बीजेपी को दिए गए।
अलेम्बिक फ़ार्मास्युटिकल्स
  • अलेम्बिक फ़ार्मास्युटिकल्स का मुख्यालय गुजरात के वडोदरा में है।
  • इस कंपनी ने 14 नवंबर 2022 और 5 जुलाई 2023 के बीच 10.2 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
  • ये सभी बॉन्ड बीजेपी को दिए गए।
एपीएल हेल्थकेयर लिमिटेड
  • एपीएल हेल्थकेयर लिमिटेड का मुख्यालय हैदराबाद में है।
  • इस कंपनी ने 8 नवंबर 2023 को 10 करोड़ रुपए के बॉन्ड ख़रीदे।
  • ये सभी बॉन्ड बीजेपी को दिए गए।
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