शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Nitish Kumar, Corona virus and Bihar election
Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 13 अगस्त 2020 (14:35 IST)

बिहार में इस माहौल में नीतीश कुमार क्यों चाहते हैं चुनाव?

बिहार में इस माहौल में नीतीश कुमार क्यों चाहते हैं चुनाव? - Nitish Kumar, Corona virus and Bihar election
नीरज प्रियदर्शी, पटना से, बीबीसी हिंदी के लिए
बिहार में खगड़िया ज़िले के सदर प्रखंड के सरकारी मध्य विद्यालय के हेडमास्टर कैलाश झा किंकर विधानसभा चुनाव के लिए मास्टर ट्रेनर का प्रशिक्षण लेने पटना आए थे। इसी दौरान वो कोरोना पॉज़िटिव हो गए। 13 जुलाई को इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
 
मधुबनी के रहिका प्रखंड स्थित मध्य विद्यालय के शिक्षक मोहम्मद अज़ीम भी मास्टर ट्रेनर बनाए गए थे। निर्वाचन संबंधी कार्यों के दौरान ही वे भी कोविड पॉज़िटिव हो गए। 29 जुलाई को दरभंगा के डीएमसीएच में इलाज के दौरान उनका इंतकाल हो गया।
 
बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ जैसे-जैसे ज़ोर पकड़ रही हैं, चुनावी ड्यूटी में लगे कर्मियों में संक्रमण और मौत की खबरें आनी शुरू हो गईं हैं।
 
सिर्फ़ चुनाव की ड्यूटी में लगे ही नहीं बल्कि चुनावी गतिविधियों में भाग ले रहे नेताओं में भी संक्रमण के ढेरों मामले मिले हैं। भारतीय जनता पार्टी की वर्चुअल रैली में शामिल 100 में 75 नेता कोरोना संक्रमित हो गए थे। इनमें कई वरिष्ठ नेता भी शामिल थे। उसके बाद से कार्यक्रम स्थगित है।
 
बिहार की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को समाप्त हो जाएगा। जाहिर है नई विधानसभा के लिए चुनाव उससे पहले कराना होगा। लेकिन, क्या चुनाव समय पर होगा? यह सवाल इन दिनों यहाँ के राजनीतिक गलियारे में चर्चा के केंद्र में है।
 
कोरोना संकट के बीच कैसे होगा चुनाव?
बिहार में कोरोना संक्रमण के मामलों में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है। संक्रमितों का आँकड़ा एक लाख के क़रीब पहुँच गया है। स्वास्थ्य सेवाओं का हाल तो पहले से बदतर था, अब ज़्यादातर अस्पतालों में जगह नहीं बची है और इलाज करने के लिए डॉक्टर भी नहीं हैं।
 
दूसरी ओर राज्य के 38 में से 16 ज़िलों में बाढ़ से हाहाकार मचा है। क़रीब 80 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है। पानी में घिरे हुए लोगों का जीवन यापन मुश्किल हो गया है।
 
इसके अलावा लॉकडाउन के दौरान बिहार में बाहर ‌से भी 40 लाख से अधिक लोग आए हैं। राज्य में रोज़गार का संकट तो पहले से था ही, उपर ‌से इतनी बड़ी आबादी के और जुड़ जाने ‌से यह संकट और भी गहरा ‌गया है।
 
नवंबर आने में अभी भी दो महीने से अधिक का वक़्त बचा है। हो सकता है तब तक बाढ़ की विभीषिका कम हो जाए। लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक़ आने वाले दो महीने में बिहार में कोराना वायरस के कारण स्थिति विकराल हो सकती है।
 
हालाँकि, चुनाव आयोग ने अभी तक बिहार विधानसभा चुनाव की तारीख़ों को लेकर कोई भी घोषणा की नहीं की है।
 
हालांकि एक निजी चैनल से बात करते हुए भारत के मु्ख्य चुनाव आयुक्त ने कहा था, "बिहार चुनाव की तैयारियाँ समय से चल रही हैं और ये तैयारियाँ कोविड महामारी को ध्यान में रखते हुए की जा रही हैं। चुनाव कब और कैसे कराया जाए, इसे लेकर राज्य के राजनीतिक दलों से सलाह और सुझाव मांगे गए हैं।"
 
कौन सी पार्टी क्या कह रही है?
चुनाव आयोग की ओर से 11 अगस्त तक मांगे गए सलाह और सुझावों को सभी पार्टियों ने सौंप दिया है। अब आगे का फ़ैसला आयोग को करना है, लेकिन मुख्य सत्तारूढ़ दल जनता दल (यूनाइटेड) के नेताओं की तरफ़ से इससे पहले की गई बयानबाज़ी ‌से यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार चुनाव को समय पर ही कराना चाहती है।
 
पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रधान महासचिव केसी‌ त्यागी तो यहाँ कहते हैं, "अगर कोविड के दौर में अमरीका में चुनाव हो सकता है, तो बिहार में क्यों नहीं?" पार्टी के दूसरे नेता और प्रवक्ता भी चुनाव कराने के समर्थन में ही बात करते दिखते हैं।
 
हालाँकि, चुनाव को लेकर सरकार की सहयोगी भाजपा के नेताओं की तरफ़ से अभी तक ऐसा कुछ भी सुनने को नहीं मिला है, सिवाय उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के। मोदी ने शुरुआत में चुनाव समय पर कराने की बात खुलकर कही थी।
 
दूसरी तरफ़ विपक्ष ने बिहार की मौजूदा परिस्थितियों का हवाला देते हुए चुनाव आयोग से चुनाव को कुछ दिनों तक टालने की अपील की है। प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव कहते हैं, "मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लाशों के ढ़ेर पर चुनाव कराना चाहते हैं।"
 
मुख्य विपक्षी दल आरजेडी ने चुनाव आयोग को सौंपे अपने सुझाव पत्र में मुख्य चुनाव आयुक्त से आग्रह किया है कि तेज़ी से बिगड़ते हालात के मद्देनज़र जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों और भागीदारों की राय को ध्यान में रखते हुए फ़ैसला किया जाए। दूसरे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस का रुख़ भी राजद के रुख़ से ही मिलता जुलता है।
 
लोक जनशक्ति पार्टी का स्टैंड सरकार से अलग
सबसे हैरान करने वाली बात है कि एनडीए सरकार की सहयोगी लोजपा का चुनाव को लेकर स्टैंड जदयू और भाजपा से एकदम अलग है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने चुनाव आयोग को तीन पन्ने का पत्र लिखकर चुनाव टालने की मांग की है।
 
चिराग की मांग का समर्थन केंद्रीय खाद्य और आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने भी किया है और उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया है कि छह महीने के लिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए।
 
पासवान का कहना है, "अगर चुनाव होंगे तो लाखों शिक्षकों को ड्यूटी में लगाया जाएगा, हज़ारों सुरक्षा बलों तैनात किए जाएँगे और करोड़ों लोग मतदान केंद्रों पर लाइन में लगकर वोट करने पर मजबूर होंगे। कोरोना वायरस को ध्यान में रखते हुए यह सब करना बहुत ख़तरनाक होगा। बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था कोरोना से लड़ाई में अभी भी बहुत पीछे है।"
 
लोजपा ने अपने पत्र में लिखा है, "आज कोविड और बाढ़ से प्रभावित लोगों को बेहतर जीवन देना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। आज आवश्यकता है कि बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों का पुनर्वास हो और स्वास्थ्य सुविधाएँ बेहतर हो। उपलब्ध संसाधनों का ख़र्च बिहारियों की बेहतरी के लिए होना चाहिए। मौजूदा परिस्थिति के रहते बिहार में चुनाव कराए जाते हैं तो बिहार पर आर्थिक बोझ पड़ेगा। परिस्थिति सुधरने तक अगर चुनाव टाले जाते हैं तो यक़ीनन मौजूदा राशि का उपयोग लोगों की जान बचाने के लिए किया जा सकता है।"
 
सरकार में ही तकरार
चुनाव टालने के लोजपा के स्टैंड पर एनडीए की उसकी सहयोगी जदयू ही नाख़ुश है। दोनों ओर के नेता एक दूसरे के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी करने में लगे हैं। जदयू के वरिष्ठ नेता ललन सिंह ने स्थानीय मीडिया को दिए बयान में कहा, "चिराग पासवान कालीदास हैं। जिस डाल पर बैठते हैं उसी को काटते हैं।"
 
एक ख़ास बात यह भी है कि जदयू और लोजपा के इस तकरार में भाजपा अब तक एकदम ख़ामोश है। चुनाव के समय को लेकर भी भाजपा के नेता जदयू के नेताओं की तरह बयानबाज़ी नहीं कर रहे हैं।
 
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं, "चुनाव आयोग का विषय है कि क्यों, कहाँ, कब और कैसे चुनाव होगा? भाजपा चुनाव आयोग का सम्मान करती है और उसके हर निर्णय का सम्मान करेगी।"
 
उन्होंने कहा, "राजद-कांग्रेस समेत सभी दलों से हमारी अपील है कि चुनाव आयोग पर अन्यथा टिप्पणी न करें और आयोग को राजनीति में न घसीटें। लेकिन अगर उनको अपनी बात कहनी है तो वे लिखित या मौखिक तौर पर अपने सलाह-सुझाव ज़रूर दे सकते हैं।"
 
इन सारे मसलों पर सरकार के सूचना और जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार कहते हैं कि यह चुनाव आयोग की ज़िम्मेदारी है कि वह किस तरह चुनाव कराती है।
 
नीरज कहते हैं, "कोरोना वायरस के दौर में भी बहुत सी चीज़ें हो रही हैं। अगर चुनाव आयोग यह कहता है कि वह कोरोना को ध्यान में रखते हुए तैयारियाँ कर रहा है, तो फिर सवाल उठाने का प्रश्न ही कहाँ रह जाता है?"
 
क्या कहता है बिहार निर्वाचन आयोग?
मुख्य चुनाव आयुक्त के बयान के बाद से बिहार में चुनाव के समय को लेकर अलग-अलग तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
 
हमने बिहार की अपर मुख्य निर्वाचन अधिकारी रंजीता से पूछा कि क्या सच में चुनाव आयोग की तैयारी समय से चुनाव कराने की है?
 
इसके जवाब में उन्होंने कहा, "समय को लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि केंद्रीय आयोग से हमारे पास कोई निर्देश नहीं आया है।"
 
तैयारियों को लेकर वे कहती हैं, "चुनाव आयोग का एक अपना प्लानर होता है। वो उसी आधार पर काम करता है। हमें अपने प्लानर के हिसाब से तैयार रहना होता है चाहे चुनाव जब भी हो।"
 
राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी एचआर श्रीनिवास ने सभी जिलाधिकारियों सह जिला निर्वाचन पदाधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में ये निर्देश दिया है कि हर 10 पोलिंग बूथ पर एक क्लस्टर बनाया जाए।
 
उन्होंने यह भी कहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में ड्यूटी किए कर्मचारियों को ट्रेनिंग के लिए बुला लिया जाए। सभी ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की जाँच कर ली जाए।
 
चुनाव की चाहत क्यों?
कोरोना महामारी और बाढ़ ‌से जूझ रही बिहार की सरकार आख़िर क्यों चाहती है कि बिहार में चुनाव समय पर हो जाएँ?
 
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं, "देखा जाए तो केवल जदयू ही यह चाहती है कि चुनाव समय पर हों। बाक़ी अभी की स्थिति को देखते हुए कोई यह नहीं चाहता। यहाँ तक कि सरकार में शामिल बीजेपी भी मन ही मन चाहती है कि चुनाव टल जाएँ और राष्ट्रपति शासन लग जाए।''
 
वो मानते हैं, "अगर चुनाव टाल दिया जाता है तो केंद्र में बीजेपी की सरकार के होने के कारण इसका फ़ायदा वह उठाने की कोशिश करेगी। यहाँ के सिस्टम को अपना बनाने की कोशिश करेगी। दूसरी तरफ़, जदयू यह बिल्कुल नहीं चाहती कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगे और उसका सिस्टम से कंट्रोल हट जाए।"
 
क्या समय पर होने चाहिए चुनाव?
चुनाव आयुक्त के बयान और चुनाव आयोग की तैयारियों पर ग़ौर करें तो लगता है कि चुनाव समय‌ पर कराने की पूरी योजना है। लेकिन ये सवाल फिर भी है कि क्या समय पर चुनाव कराना सही होगा, जबकि अभी का समय बहुत ख़राब चल रहा है और आने वाले समय को लेकर कई आशंकाएँ हैं।
 
इस बारे में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झा कहते हैं, "कोरोना और बाढ़ से जो स्थिति बनी हुई है, अगर उसमें भी कोई चुनाव कराने की बात करता है कि समझ लीजिए कि उसके अंदर से संवेदना ख़त्म हो गई है।"
 
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "अभी के समय में चुनाव कराना जनविरोधी काम होगा। चुनाव करा लेने से सरकार तो बन जाएगी और बिगड़ जाएगी, लेकिन जिनकी जानें जाएँगी उनका हिसाब कौन देगा?"
 
फ़िलहाल ऐसा लगता है कि नीतीश सरकार का ध्यान अधिक से अधिक सरकारी योजनाओं का उद्घाटन और ‌शिलान्यास करने पर बना हुआ है क्योंकि चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद अचार संहिता लागू हो जाएगी।
 
शायद इसी वजह से मुख्यमंत्री ने पिछले एक हफ़्ते के अंदर 30 हज़ार करोड़ रुपए ‌से अधिक की 300 से अधिक की योजनाओं का उद्घाटन या शिलान्यास किया है।
ये भी पढ़ें
टिंडर पर डेटिंग करने वाली पाकिस्तानी महिलाएं