नीरज प्रियदर्शी, बिहार से बीबीसी हिन्दी के लिए
बिहार के समस्तीपुर ज़िले के सिंधिया प्रखंड के ग्राम पंचायत बारी में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पिछले 20 सालों से ना तो कोई चिकित्सक है और ना ही कोई कर्मचारी।
पंचायत के लोग बताते हैं कि साल 2000 तक वहां चिकित्सक भी थे और कर्मचारी भी। लेकिन उसके बाद फिर कभी कोई नहीं आया।
कोरोना वायरस से फैली महामारी की स्थिति में पंचायत के लोगों ने स्थानीय अधिकारियों से कई बार इसकी शिकायत की। हर बार जवाब मिलता है कि यहां कोई पदस्थापना ही नहीं है।
बारी पंचायत के शुभम झा और शशिभूषण झा ने स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टरों की ड्यूटी लगाने की माँग करते हुए समस्तीपुर के डीएम को आवेदन भी दिया। मगर अब तक वहां डॉक्टरों की तैनाती नहीं हो सकी है।
पूरे बिहार का यही हाल
डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ़ नहीं होने की यह समस्या केवल समस्तीपुर के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की नहीं है। स्टेट हेल्थ सोसाइटी, बिहार के आँकडों की मानें तो राज्य के 534 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से एक भी चालू हालत में नहीं है।
रेफ़रल अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 466 है, मगर कार्यरत सिर्फ़ 67 हैं। ऐसा ही हाल अनुमंडल अस्पतालों और सदर अथवा ज़िला अस्पतालों का भी है। राज्य के 13 मेडिकल कॉलेजों में से भी केवल 10 ही फंक्शनल हैं।
2011 की जनगणना के हिसाब से देखें तो स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों की ज़रूरत लगभग दोगुनी ज़्यादा हैं। लेकिन यहां ज़रूरतों की बात करना भी बेमानी लगता है! जो केंद्र और अस्पताल पहले से हैं वे भी नहीं चल पा रहे हैं क्योंकि डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ़ की 60 फ़ीसद से भी अधिक कमी है।
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने इसी साल मार्च में विधानसभा के अंदर राजद के विधायक शिवचंद्र राम की तरफ़ से उठाए गए प्रश्न का जवाब देते हुए कहा था, "राज्य में चिकित्सा पदाधिकारी के कुल स्वीकृत पद 10609 हैं। जिसमें से 6437 पद रिक्त हैं।" यानी 61 प्रतिशत जगहें ख़ाली हैं।
केवल डॉक्टर ही नहीं राज्य में मेडिकल स्टाफ़ और नर्सों की भी भारी कमी है। यहां स्टाफ़ नर्स ग्रेड के कुल स्वीकृत पद 14198 हैं, लेकिन कार्यरत बल महज़ 5068 है। एनएनएम नर्स के भी 10 हज़ार से अधिक पोस्ट ख़ाली हैं।
28 हज़ार 391 लोगों पर सिर्फ़ एक डॉक्टर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के मुताबिक़ प्रति एक हज़ार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए। इंडियन मेडिकल काउंसिल भी कहता है कि 1681 लोगों के लिए एक डॉक्टर की आवश्यकता है। इस लिहाज़ से 2011 की जनगणना के मुताबिक़ बिहार में एक लाख से अधिक डॉक्टर होने चाहिए।
लेकिन नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल के आँकड़ों के अनुसार बिहार में 28 हज़ार 391 लोगों पर सिर्फ़ एक डॉक्टर हैं।
राज्य के सबसे बड़े कोरोना अस्पताल एनएमसीएच की रिपोर्टिंग के दौरान अस्पताल के सुपरिटेंडेंट ने बताया था कि एनेस्थेशिया विभाग में कोई भी एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर नहीं है जबकि पद सृजित 25 हैं। पटना मेडिकल कॉलेज में भी 40 फ़ीसद डॉक्टरों की कमी है। दरभंगा मेडिकल कॉलेज में भी 50 फ़ीसदी डॉक्टरों की कमी है।
राज्य में डॉक्टरों के जो स्वीकृत पद हैं वे राज्य के अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के आधार पर बनाए गए हैं। ग़ौरतलब है कि अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों की संख्या आधी से भी कम है।
विधानसभा में मार्च में ही स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा था, "रिक्त कुल 6437 चिकित्सकों अर्थात 2425 विशेषज्ञ चिकित्सकों और 4012 सामान्य चिकित्सकों की नियुक्ति हेतु अधियाचना बिहार तकनीकी सेवा आयोग को भेजा जा चुका है।"
30 जुलाई को मंगल पांडेय ने ट्वीट करके यह जानकारी दी कि 13 विभागों में 929 विशेषज्ञ चिकित्सकों की प्रथम नियुक्ति कर पदस्थापना का आदेश जारी कर दिया गया है।
पांडेय के इस ट्वीट पर कई लोगों ने प्रतिक्रिया देते हुए यह लिखा कि बाक़ी बचे पदों पर नियुक्ति कब होगी? एक महीने में या एक साल में!
डॉक्टरों की नियुक्ति के संबंध में जानने के लिए हमने मंगल पांडेय से कई बार बात करने की कोशिश की। लेकिन हर बार उनके पर्सनल सेक्रेटरी से यही जवाब मिलता कि "साहब अभी मीटिंग में हैं।"
हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोविड टेस्ट संख्या बढ़ाने और कोविड अस्पतालों में बेहतर सुविधाओं के लिए कई फ़रमान जारी किए हैं लेकिन ज़मीन पर स्थिति उन फ़रमानों से अलग दिखती है।
बिहार में सबसे ज़्यादा डाक्टरों की मौत
कोरोना वायरस के ऐसे विकट समय में एक तो पहले से राज्य के अंदर डॉक्टरों की भारी कमी है। ऊपर से बिहार में डाक्टरों में संक्रमण के मामले सबसे ज़्यादा आ रहे हैं।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रदेश सचिव डॉ सुनील कुमार ने बीबीसी को बताया कि यहां कोरोना वायरस के कारण डॉक्टरों की मौत का प्रतिशत भी देश के बाक़ी राज्यों की तुलना में अधिक है। अब तक 250 से अधिक डॉक्टर कोरोना संक्रमित हो चुके हैं।
डॉ सुनील कहते हैं, "बिहार में कोरोना वायरस की चपेट में आकर डॉक्टरों की मौत का प्रतिशत 4.42 है। जबकि राष्ट्रीय औसत 0.5 फ़ीसद है। सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में डॉक्टरों की मौत का प्रतिशत 0.15 है। दिल्ली में 0.3 फ़ीसद है। कर्नाटक में 0.6 फ़ीसद, आंध्र प्रदेश में 0.7 फ़ीसद और तामिलनाडु में 0.1 फ़ीसद है।"
डॉक्टरों में संक्रमण के लिए सरकार ज़िम्मेदार?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने बिहार में डॉक्टरों में संक्रमण के मामले सबसे ज़्यादा मिलने का ज़िम्मेदार बिहार सरकार को ठहराया है। एसोसिएशन का आरोप है कि जो मंत्री और नेता अस्पतालों में विजिट करने आते हैं उनके लिए डॉक्टरों से ज़्यादा बेहतर गुणवत्ता वाले सुरक्षा उपकरणों (पीपीई किट वगैरह) का इंतज़ाम रहता है।
राज्य सचिव सुनील कुमार कहते हैं, "हमारी बात को राज्य के हेल्थ सेक्रेटरी प्रत्यय अमृत ने भी स्वीकार किया जब वे एनएमसीएच का दौरा करने गए थे। वहां की हालत देखकर उन्होंने साफ़ कहा था कि डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ़ के पास बेहतर क्वालिटी के सुरक्षा उपकरण नहीं हैं। जबकि एनएमसीएच राज्य का सबसे बड़ा और सबसे पहला कोरोना डेडिकेटेड अस्पताल है। बाक़ी अस्पतालों के डॉक्टरों की हालत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है"
सुनील कुमार एक बात और भी कहते हैं, "जो डॉक्टर अभी कार्यरत हैं उनमें से आधे से अधिक डॉक्टरों की उम्र 50 साल को पार कर गई है। विभाग से कई बार यह कहा गया कि 60 साल से अधिक आयु वाले डॉक्टरों को कोविड की ड्यूटी नहीं दी जाए। मगर बावजूद इसके वे डॉक्टर पिछले कई महीनों से बिना छुट्टी के काम कर रहे हैं। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि सरकार को डॉक्टरों की चिंता नहीं है।
क्या निजी अस्पतालों में भी डॉक्टरों की कमी है?
बिहार में पंजीकृत डॉक्टरों की कुल संख्या 20 हज़ार के क़रीब है। इनमें से लगभग चार हज़ार डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में कार्यरत हैं। बाक़ी या तो निजी अस्पतालों में काम कर रहे हैं या फिर संविदा पर हैं।
आईएमए के स्टेट सेक्रेटरी सुनील कुमार कहते हैं, " यहां प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर हैं लेकिन वहां इलाज महंगा है। यह सरकार की विफलता है कि वह डॉक्टरों के रहते हुए भी उनकी कमी से जूझ रही है। अगर आपके पास डॉक्टरों के इतने पद ख़ाली हैं तो वक़्त की ज़रूरत को देखते हुए ख़ाली पड़े सभी सात हज़ार पदों के लिए प्राइवेट डॉक्टरों में से ही काउंसेलिंग के ज़रिए क्यों नहीं ज़रूरत पूरी हो सकती।"
वैसे निजी अस्पतालों में डॉक्टर भले हों मगर इस कोरोना काल में प्राय: अस्पतालों ने मरीज़ों के लिए अपने द्वार बंद कर लिए हैं। बिहार सरकार की तरफ़ से कुछ अस्पतालों को चिन्हित करके वहां कोविड 19 के इलाज की व्यवस्था ज़रूर शुरू कराई गई है मगर उन अस्पतालों के बिस्तर भर चुके हैं। ऐसे में जब अस्पताल मरीज़ को एडमिट ही नहीं करेंगे तो डॉक्टर इलाज कैसे करेगा?