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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 17 जून 2023 (07:55 IST)

मणिपुर में हिंसा क्यों नहीं रोक पा रही है मोदी सरकार?

मणिपुर में हिंसा क्यों नहीं रोक पा रही है मोदी सरकार? - modi government and manipur violence
प्रभात पांडेय, बीबीसी संवाददाता
Manipur Violence : 100 से ज्यादा लोगों की मौत, 50 हजार से ज्यादा विस्थापित, लोगों के घर जलाए गए, दुकानें जलाई गईं, चर्च जलाए गए। गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर का दौरा किया। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को मैतेई और कुकी समुदाय के बीच खाई पाटने की ज़िम्मेदारी दी गई, लेकिन मणिपुर में हिंसा लगातार जारी है।
 
ताजा घटनाक्रम में गुरुवार की रात इंफाल के कोंगबा में स्थित केंद्रीय मंत्री आरके रंजन सिंह के घर को आग लगा दी गई। उसके पहले बुधवार को एक गांव में संदिग्ध चरमपंथी हमले में कम से कम नौ मैतेई लोगों की मौत हो गई।
 
केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार, राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार.. लेकिन फिर भी हिंसा जारी है। क्या वजह है कि केंद्र और राज्य सरकार एक महीने से भी ज़्यादा समय से जारी तनाव और हिंसा को क़ाबू में नहीं कर पा रही हैं। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह मणिपुर के मोर्चे पर विफल साबित हो रहे हैं?
 
सरकार के क़दम नाकाफ़ी?
गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर दौरे के समय सभी पक्षों से बात कर 15 दिनों के भीतर शांति बहाल करने की अपील की थी। लेकिन हालात और खराब ही होते जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि हालात को ठीक करने के लिए जिस तरह के कदम उठाए जाने की ज़रूरत थी वो कदम ना केंद्र सरकार ने उठाए ना ही राज्य सरकार ने।
 
नांबोल के सनोई कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर निन्गोमबाम श्रीमा बीबीसी से बात करते हुए कहती हैं, “सरकार ने लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। कुकी और मैतेई दोनों ही समुदाय के लोगों को लग रहा है कि उन्हें अपनी सुरक्षा ख़ुद करनी पड़ेगी क्योंकि सरकार उनके लिए कुछ कर ही नहीं रही है। और इसी वजह से हालात बिगड़ते चले गए क्योंकि लोग हिंसा से निपटने के लिए ख़ुद हिंसा का ही सहारा ले रहे हैं।”
 
'भरोसा टूटा'
विशेषज्ञ बताते हैं कि दोनों समुदायों के बीच लंबे समय से मतभेद होने के बावजूद राज्य में कुकी और मैतेई समुदाय शांतिपूर्वक रहते चले आए हैं। यहां तक कि दोनों के बीच व्यापारिक संबंध भी रहे हैं। लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि उनका एक दूसरे से भरोसा ही उठ गया है।
 
मणिपुर में अब कुकी बहुल इलाके में कोई मैतेई क़दम रखने की हिम्मत भी नहीं कर सकता। वहीं दूसरी ओर मैतेई लोगों के इलाक़े में जाने का जोख़िम कोई कुकी नहीं लेना चाहेगा।
 
निन्गोमबाम श्रीमा कहती हैं कि जब तक केंद्र सरकार बहुत मज़बूती से दख़ल नहीं देती है और राज्य सरकार आम लोगों की सुरक्षा का बंदोबस्त नहीं करती है, तब तक हिंसा का ये दौर नहीं थमेगा।
 
राज्य में काम कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता के। ओनील कहते हैं कि राज्य में जारी हिंसा से निपटने में जो गंभीरता केंद्र सरकार को दिखानी चाहिए थी वो उसने दिखाई नहीं। गृहमंत्री अमित शाह का मणिपुर दौरा भी महज़ खानापूर्ति था। उन्होंने किन्हीं ठोस उपायों की बात की ही नहीं।
 
शांति समिति
मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके की अध्यक्षता में केंद्र सरकार ने 51 लोगों की जो शांति कमेटी बनाई है उसको लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
 
एक तरफ कुकी जनजाति की सर्वोच्च संस्था कुकी इंपी ने शांति समिति के गठन को खारिज किया है। वहीं, मैतेई समुदाय का नेतृत्व कर रही कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी ने इस शांति कमेटी में शामिल नहीं होने की घोषणा की है।
 
के. ओनील कहते हैं, “हालात सुधारने के मक़सद से सरकार ने जिस शांति समिति का गठन किया उसमें उन्होंने अपनी मर्ज़ी से लोगों को शामिल किया। इस समिति में एक भी ऐसा शख़्स नहीं है जो राज्य के, इस इलाक़े के हालात का विशेषज्ञ हो। ऐसे लोग जो राज्य को ठीक से समझते हों उन्हें समिति में होना चाहिए था। तो इसी बात से सरकार के इरादे समझ में आ जाते हैं।”
 
हिमंत बिस्वा सरमा को लेकर असंतोष?
राज्य में मैतेई समुदाय और कुकी जनजाति के बीच जो जातीय विभाजन हुआ है उसे पाटने की ज़िम्मेदारी अब हिमंत बिस्वा सरमा को सौंपी गई है। लेकिन मणिपुर में ही कई लोग इससे ख़ुश नहीं हैं।
 
मैतेई समुदाय के कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व को यह समझना चाहिए कि हिमंत बिस्वा सरमा उत्तर पूर्वी राज्यों की आवाज़ के प्रतिनिधि नहीं हैं।
 
के ओनील कहते हैं, “हिमंत बिस्वा सरमा भला यहां क्या कर लेंगे। वो यहां के मुद्दे नहीं समझते। कोई उन पर भरोसा ही नहीं करता।” हलांकि निन्गोमबाम श्रीमा कहती हैं कि हिमंत बिस्वा सरमा ने शांति समिति से बात की है। वो अपनी तरफ़ से प्रयास कर रहे हैं लेकिन असल क़दम राज्य और केंद्र सरकार को उठाना है।
 
क्या कहती है बीजेपी?
वहीं बीजेपी का कहना है कि हिमंत बिस्वा सरमा पूर्वोत्तर के बड़े नेता हैं और वे इस क्षेत्र की समस्याओं को समझते हैं।
 
बीबीसी के सहयोगी पत्रकार दिलीप कुमार शर्मा से बात करते हुए मणिपुर में वरिष्ठ बीजेपी विधायक के इबोम्चा कहते हैं, "कुछ लोग हिमंत को लेकर गलत बात कर सकते हैं लेकिन वे नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के संयोजक हैं और पूर्वोत्तर के नेता उनकी बात सुनते हैं।"
 
राज्य में हिंसा की वजह से आम लोगों को सुरक्षा संबंधी दिक़्क़तों के साथ महंगाई से भी जूझना पड़ रहा है। खाने-पीने की चीज़ों की क़ीमत में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हो गया है। लोगों को दवाइयां मिलने में परेशानी हो रही है। चावल कई जगहों पर दो सौ रुपए किलो तक मिल रहा है।
 
प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी
एक महीने से जारी हिंसा के बावजूद अब तक सार्वजनिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर कुछ भी नहीं कहा है। कुकी जनजाति के सर्वोच्च छात्र निकाय कुकी छात्र संगठन ने इस पर नाराज़गी जताई है कि पीएम चुप हैं।
 
के ओनील कहते हैं कि “मैतेई और कुकी दोनों ही समुदाय के लोग इस बात से आहत हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर अब तक एक शब्द भी नहीं कहा है।”
 
निन्गोमबाम श्रीमा कहती हैं, “हां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी से निराशा तो है लेकिन लोगों में ज़्यादा ग़ुस्सा राज्य सरकार को लेकर है।"
 
निन्गोमबाम श्रीमा ने आगे कहा, "लोग मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से बहुत ख़फ़ा हैं। उन्होंने लोगों की सुरक्षा के लिए कुछ किया ही नहीं। मैतेई लोगों को इस बात का ग़ुस्सा है कि राज्य विधानसभा में 60 में से 40 विधायक मैतेई समुदाय के हैं लेकिन इन विधायकों ने प्रधानमंत्री तक ठीक से बात नहीं पहुंचाई।”
 
 
Manipur violence
कैसे शुरू हुई हिंसा?
तीन मई को ये हिंसा तब शुरू हुई जब मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के ख़िलाफ़ राज्य के कुकी समेत दूसरे जनजातीय समुदाय ने रैली निकाली जो बाद में हिंसक हो गई।
 
उन्होंने मैतेई समुदाय पर हमले किए। जवाब में मैतेई समुदाय ने भी अपनी बदले की कार्रवाई शुरू कर दी और मैतेई बहुल इलाक़ों में रह रहे कुकी समुदाय के लोगों के घर जला दिए गए और उन पर हमले किए गए। इन हमलों के बाद मैतेई बहुल इलाकों में रहने वाले कुकी और कुकी बहुल इलाकों में रहने वाले मैतेई अपने-अपने घर छोड़कर जाने लगे।
 
विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य के पहाड़ी इलाकों से कुकी चरमपंथी मैतेई इलाकों में गोलीबारी कर रहे हैं जिससे बड़ी संख्या में मैतेई लोग मारे जा रहे हैं।
 
हाल ही में मणिपुर से लौटे बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव ने बताया कि मणिपुर में हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। नितिन ने बताया, “राजधानी इंफाल तक में बेहद तनाव है। सीआरपीएफ़ के जवानों ने हमें सख्त हिदायत दी कि हम गाड़ी से बाहर ना निकलें। हिंसा का स्केल देखते हुए लगता है कि यहां कुकी और मैतेई समुदायों की आपसी रंजिश तो है ही साथ ही लगता है कि बाहर से भी आए चरमपंथी हिंसा में शामिल हैं। उनके पास अत्याधुनिक हथियार भी हो सकते हैं।”
 
फ़िलहाल राज्य में 40 हज़ार सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। इससे समझा जा सकता है कि हालात कितने ख़राब हैं।
 
कुकी और मैतेई में विवाद
मणिपुर में मुख्य तौर पर तीन समुदाय के लोग रहते हैं। मैतेई और जनजातीय समूह कुकी और नगा। पहाड़ी इलाक़ों में कुकी, नगा समेत दूसरी जनजाति के लोग रहते हैं। जबकि इंफ़ाल घाटी में बहुसंख्यक मैतेई लोग रहते हैं। मैतेई समुदाय के ज़्यादातर लोग हिंदू हैं। जबकि नगा और कुकी समुदाय के लोग मुख्य तौर पर ईसाई धर्म के हैं।
 
जनसंख्या में ज़्यादा होने के बावजूद मैतेई मणिपुर के 10 प्रतिशत भूभाग में रहते हैं जबकि बाक़ी के 90 प्रतिशत हिस्से पर नगा, कुकी और दूसरी जनजातियां रहती हैं। मणिपुर के मौजूदा जनजाति समूहों का कहना है कि मैतेई का जनसांख्यिकी और सियासी दबदबा है। इसके अलावा ये पढ़ने-लिखने के साथ अन्य मामलों में भी आगे हैं।
 
मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं। बाकी 20 नगा और कुकी जनजाति से आते हैं। अब तक हुए 12 मुख्यमंत्रियों में से दो ही जनजाति से थे। ऐसे में यहाँ के जनजाति समूहों को लगता है कि राज्य में मैतेई लोगों का दबदबा है। और अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल गया तो उनके लिए नौकरियों के अवसर कम हो जाएंगे और वे पहाड़ों पर भी ज़मीन ख़रीदना शुरू कर देंगे। ऐसे में वे और हाशिए पर चले जाएंगे।
 
पूर्वोत्तर को लेकर दावे और हक़ीक़त
उत्तर पूर्व के राज्यों में से त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, असम और मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। जबकि बाक़ी राज्यों में भारतीय जनता पार्टी सत्ताधारी गठबंधन में शामिल है।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जबसे सत्ता में आए हैं तब से वो दावा करते आए हैं कि पूर्वोत्तर भारत के साथ होते आ रहे भेदभाव को दूर करेंगे। उन्होंने दावा किया कि कभी हिंसा और अशांति के लिए जाने जाने वाले पूर्वोत्तर में अब चारों तरफ़ विकास हो रहा है।

लेकिन असल हालात कुछ और ही हैं। मणिपुर के अलावा भी असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिज़ोरम में हिंसा लगातार होती रही है।
 
अगस्त, 2021 में असम-मिज़ोरम सीमा पर हुई हिंसा में असम पुलिस के पांच जवान मारे गए थे। अक्टूबर-नवंबर 2021 में त्रिपुरा में हिंदू-मुसलमान हिंसा भड़क गई थी। नवंबर 2022 में असम-मेघालय सीमा पर हिंसा भड़क उठी थी जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी।
 
तमाम दावों के बावजूद क्या मोदी सरकार पूर्वोत्तर में पूरी तरह से शांति स्थापित करने में विफल रही है। ये पूछे जाने पर के ओनील कहते हैं, “पूर्वोत्तर में जो अलग अलग जातीय और जनजातीय समूह रहते हैं उनकी भावनाओं को भारतीय जनता पार्टी नहीं समझती। यहां पर उसका हिंदुत्व का एजेंडा नहीं चलेगा।"
 
वो यहां पर भी गुजरात और यूपी मॉडल चलाना चाहती है। वो यहां काम नहीं करेगा। ओनील के मुताबिक़, पूर्वोत्तर का हिंदू समुदाय भी बाक़ी हिंदी भाषी प्रदेशों के हिंदू समुदाय की तरह नहीं सोचता।
 
इसी साल मेघालय के गवर्नर फागू चौहान ने बजट सत्र के दौरान जब हिंदी में भाषण शुरू किया तो विपक्षी वॉइस ऑफ़ पीपुल्स पार्टी के चार विधायकों ने सदन से बायकॉट कर दिया। विपक्षी पार्टी का आरोप था कि राज्य में मुख्य तौर से खासी, गारो, जयंतिया और अंग्रेज़ी बोली जाती है और ज़्यादातर लोग हिंदी नहीं समझते।

के ओनील इसी घटना का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि, “पूर्वोत्तर के लोगों की इच्छा का सम्मान ना करते हुए अगर आप अपना एजेंडा यूं ही थोपते रहेंगे तो कैसे यहां की समस्याएं सुलझाएंगे।”
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