- ज़ुबैर अहमद (पुणे)
अगस्त महीने से जारी मराठा आंदोलन के बारे में दावा किया जाता है कि इसका कोई नेतृत्व नहीं करता और ये एक ख़ामोश आंदोलन है। ये अब तक सच भी है। लेकिन इसका एक लीडर है और वो है सोशल मीडिया। दो हज़ार मराठा वालंटियर्स (स्वयंसेवी) मोर्चे से संबंधित सन्देश न केवल पहुंचाने का काम करते हैं बल्कि मराठा समुदाय को मोर्चों में शामिल होने के लिए प्रेरित भी करते हैं।
व्हाट्स ऐप, फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे माध्यम से मराठा आंदोलन को ज़बरदस्त फायदा हुआ है।
15 अक्टूबर को कोल्हापुर में मराठा रैली के बीच बजते पारम्परिक बिगुल को वहां मौजूद लाखों लोगों ने सुना। लेकिन जो मोर्चे में ना आ सके उन्हें भी इसकी गूंज सुनाई दी वो भी अपने मोबाइल पर। ये काम आंदोलन का सोशल मीडिया सेल कर रहा है। अब तक 25 से अधिक मोर्चे निकाले जा चुके हैं।
इन मोर्चों की कवरेज रियल टाइम यानी वास्तविक समय में सोशल मीडिया सेल करती है। ये काम महाराष्ट्र के कई शहरों में छोटे-छोटे कमरों से किया जाता है। जिसे ये वॉर रूम कहते हैं। आंदोलन के सोशल मीडिया सेल को शुरू करने के पीछे एक कहानी है।
भैया पाटिल एक सक्रिय वालंटियर हैं। वो बताते हैं कि मराठा आंदोलन ने सोशल मीडिया का सहारा क्यों लिया। वो कहते हैं, "पारम्परिक मीडिया ने शुरू के कुछ मोर्चों को नज़रअंदाज़ किया। मीडिया वाले इसे कवर नहीं करते थे। हम लोगों ने सोशल मीडिया शुरू करके आंदोलन को आगे बढ़ाना शुरू किया।"
आज सोशल मीडिया सेल काफी सक्रिय है। इसका एक अलग वेबसाइट है। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम के अलग पन्ने हैं। एक एक ट्वीट हज़ारों बार रिट्वीट हो रहे हैं।
हर मोर्चे से पहले लोगों को ट्विटर फ़ेसफुक और व्हाट्स ऐप के माध्यम से ज़रूरी सूचना दी जाती है। ये टीम रैली के दौरान ड्रोन से ली गयी तस्वीरें और रिकॉर्ड किए गए गाने रियल टाइम में सोशल मीडिया पर अपलोड करती हैं। सोशल मीडिया के इन माध्यमों को मराठा क्रांति मोर्चा के नाम से चलाया जाता है।
पुणे शहर में तीन लोगों की एक छोटी टीम है लेकिन इनका काम बड़ा है। पुणे जैसे इन छोटे कमरों से वो मोर्चों को एक तरह से कंट्रोल करते हैं।
जुलाई में एक मराठा लड़की के बलात्कार और हत्या के बाद शुरू हुए इस आंदोलन में शामिल मराठा समुदाय की कई मांगें हैं जिनमें बलात्कार के आरोपियों को सज़ा-ए-मौत देना और मराठियों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण देना ख़ास हैं। अब तक जितने मोर्चे निकाले जा चुके हैं उन में लाखों लोग शरीक़ हो चुके हैं।
भैया पाटिल कहते हैं कि सोशल मीडिया का इस में एक बड़ा हाथ है। अनिल माने कॉलेज के छात्र हैं लेकिन सोशल मीडिया सेल को काफी समय देते हैं। "अपने मराठा समाज के लिए कुछ तो करना चाहिए। ऐसा मेरे मन में आया। सोशल मीडिया के माध्यम से अपने समाज तक मैसेज पहुँचाने की मन में सोच जागी तो मराठा क्रांति मोर्चे में शामिल हो गया।''
कहते हैं ये आंदोलन लीडरलेस यानी बिना किसी नेता का है। इसकी बागडोर कुछ मराठा संस्थाओं के हाथ में है। जिन्हें सोशल मीडिया के महत्त्व का बख़ूबी अंदाज़ा है।
ऋषिकेश भी एक युवा हैं और अपना समय सोशल मीडिया में ख़ुशी से देते हैं। वो किसी भी क्रांति में संचार के महत्त्व को समझते हैं। वो ये भी जानते हैं कि सोशल मीडिया लोगों तक पहुँचने का सबसे तेज़ माध्यम है। "देश की पहली स्वतंत्रता की लड़ाई (सन 1857) में रोटियों पर और पक्षियों के पैरों पर पैग़ाम लिख कर भेजा जाता था। पैग़ाम पहुँचने में कुछ दिन लग जाते थे। अब तो एक सेकंड में मैसेज पूरी दुनिया तक चला जाता है
इन वालंटियर्स के अनुसार सोशल मीडिया की कामयाबी को देखते हुए अब तक जो मीडिया वाले उन्हें नज़रअंदाज़ करते थे अब वो उनके मोर्चों को अच्छी तरह से कवर करते हैं। लेकिन वो कहते हैं कि सोशल मीडिया के होते हुए उन्हें अब पारम्परिक मीडिया की ज़रूरत नहीं है।