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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 27 नवंबर 2019 (09:03 IST)

महाराष्ट्र: सत्ता का चक्र कैसे घूमा, बनते बिगड़ते समीकरणों की अब तक की कहानी

महाराष्ट्र: सत्ता का चक्र कैसे घूमा, बनते बिगड़ते समीकरणों की अब तक की कहानी - Maharashtra Political Drama
कमलेश, बीबीसी संवाददाता
महाराष्ट्र में किसकी बनेगी सरकार? चुनाव नतीजों के एक महीने बाद भारी सियासी ड्रामे के बीच इस सवाल का जवाब अब मिल चुका है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे 28 नवंबर शाम साढ़े छह बजे शिवाजी पार्क में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।
 
मंगलवार शाम उद्धव ठाकरे को शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के विधायक दल का नेता चुना गया। बीजेपी विधायक कालिदास कोलंबकर प्रोटेम स्पीकर बनाए गए हैं। लेकिन यहाँ तक पहुँचने का रास्ता काफ़ी ऊहापोह वाला रहा।
 
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देवेंद्र फडणवीस से बुधवार को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहा था। कोर्ट के इस फ़ैसले के कुछ देर बाद ही शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
 
अजित के इस्तीफ़े के बाद मंगलवार दोपहर देवेंद्र फडणवीस भी मीडिया के सामने आए और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़े का ऐलान किया। फडणवीस ने कहा, ''अजित दादा पवार के इस्तीफ़े के बाद हमारे पास बहुमत साबित करने के लिए ज़रूरी विधायक नहीं हैं।''
 
देवेंद्र फडणवीस की नई सरकार भले ही क़रीब 80 घंटे ही चल पाई हो लेकिन महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा क़रीब 16 दिन से तेज़ गति से बदलता रहा है। इसमें बीजेपी से शिवसेना का अलग होना भी शामिल है और शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का अटकलों के साथ क़रीब आना और सरकार बनाते-बनाते बीजेपी से पिछड़ जाना भी शामिल है।
 
आइए आपको बताते हैं कि महाराष्ट्र में कैसे सत्ता का चक्र घूमा और बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच कब-कब क्या-क्या हुआ?
 
जब बीजेपी बोली- सरकार नहीं बना पाएंगे
बीजेपी ने जब 10 नवंबर को कहा कि पर्याप्त संख्या न होने की वजह से वो सरकार नहीं बना सकती, तब शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के सत्ता में आने की संभावनाएं बहुत मज़बूत हो गईं थीं।
 
देखते ही देखते तीनों दलों के बीच ताबड़तोड़ बैठकें और चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। किसका मुख्यमंत्री, किसका मंत्री, समान मुद्दे, विचारधारा और एजेंडा ये सभी शब्द ख़बरों में रहे।
 
फिर शिवसेना को सरकार बनाने के लिए बुलाया गया लेकिन उन्होंने पर्याप्त संख्या बल हासिल करने के लिए राज्यपाल से और समय मांगा। लेकिन राज्यपाल ने उन्हें अधिक समय नहीं दिया और फिर इसके बाद 11 नवंबर को एनसीपी को राज्यपाल से सरकार बनाने का न्योता मिला लेकिन वो भी सफल नहीं हो सकी।
 
आख़िरकार 12 नवंबर को महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। इसके बाद भी शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की अटकलों पर विराम नहीं लगा। एनसीपी प्रमुख कभी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिले, तो कभी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से।
 
बार-बार समर्थन की चिट्ठी चर्चा में आती लेकिन वो किसी भी दल को एक-दूसरे से मिल नहीं पाती।
 
लंबी चली 'विचारों की लड़ाई'
फिर कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का ज़िक्र आया जिसमें तीन दल उन मामलों पर सहमत होते हैं, जिन पर तीनों की वैचारिक सहमति बनती है। लेकिन, वैचारिक टकराव के बावजूद भी कांग्रेस और शिवसेना कैसे साथ आएंगे, ये सवाल भी उठते रहे।
 
किसी तरह कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर सहमति बनती दिखती। अब मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर चर्चा का दौर चला। मीडिया में बैठकों से छन-छन कर कई फॉर्मूले और नेताओं के नाम सामने आए।
 
लेकिन, तब तक तारीख़ 10 नवंबर से 22 नवंबर हो चुकी थी। 22 नवंबर की शाम शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की संयुक्त बैठक में इस बात पर सहमति बन गई कि उद्धव ठाकरे तीनों दल के नेता होंगे यानी महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री वही होंगे।
 
और फिर 22 नवंबर की रात से लेकर 23 नवंबर की सुबह तक महाराष्ट्र में ऐसा कुछ हुआ जिसने शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस से सत्ता तक पहुँचने की सीढ़ी ही खींच ली।
 
बीजेपी ने शरद पवार के भतीजे और उस समय एनसीपी के नेता अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। सुबह 5:47 बजे महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हट गया और सुबह आठ बजे देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
 
इसके बाद शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस में जैसे भूचाल आ गया और प्रेस कांफ्रेंस, विधायकों के समर्थन के दावे हुए और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया गया।
 
लेकिन, ऐसा कैसे हुआ कि 10-11 दिनों तक जिन दलों के गठबंधन की चर्चा ज़ोरों पर थी वो अचानक किनारे हो गए और जो पटल पर ही नहीं थे, वो सरकार में आ गए।
 
'फ़ैसले में देरी या राज्यपाल का ग़लत फ़ैसला'
कुछ लोग कहते हैं कि कांग्रेस और एनसीपी ने फ़ैसला लेने में बहुत देर कर दी जिसके कारण बीजेपी ने इसका फ़ायदा उठा लिया। लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि इसमें कोई देरी नहीं हुई, राज्यपाल ने केंद्र के इशारे पर फडणवीस को शपथ दिला दी थी।
 
वरिष्ठ पत्रकार अपर्णा द्विवेदी मानती हैं कि गठबंधन में देरी की सबसे बड़ी वजह बना कांग्रेस और शिवसेना में वैचारिक मतभेद और फ़ैसला लेने में देरी।
 
अपर्णा द्विवेदी कहती हैं, ''कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या ये थी कि वो फ़ैसला ही नहीं कर पा रही थी कि उन्हें किस पार्टी के साथ जाना है। शिवसेना के साथ उनके बहुत ज़्यादा वैचारिक मतभेद थे और चुनाव के दौरान शिवसेना कांग्रेस के बड़े नेताओं के बारे में ग़लत-बयानी भी करती रही थी।''
 
''ऐसे में कांग्रेस के लिए बड़ी ऊहापोह की स्थिति थी कि शिवसेना के साथ जान सही रहेगा या नहीं। उन्हें अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि की भी चिंता थी। इसी पर फ़ैसला लेने में उन्होंने काफ़ी समय बिताया।''
 
अपर्णा द्विवेदी ये भी मानती हैं कि कांग्रेस नेताओं में आपसी मतभेद और केंद्र से राज्य, राज्य से केंद्र, जो बॉल उछलती रही उसमें बहुत समय ख़राब हुआ।
 
वो आगे कहती हैं, ''इसके बाद उन्होंने शिवसेना से बात की। बीच में ये भी बयान आया कि जब उद्धव ठाकरे ने हमसे समर्थन मांगा ही नहीं तो उन्हें कैसे दे दें। इस बीच कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने विद्रोह का झंडा अलग कायम किया हुआ था। कांग्रेस में जो बहुत उलझन रही उसी में उन्होंने अपना बहुमूल्य समय खो दिया। एक तरह से ये पूरा खेल कांग्रेस के लिए घातक रहा। ''
 
लेकिन, महाराष्ट्र की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार समर खड़स इस मामले पर अलग राय रखते हैं।
 
वो कहते हैं कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीनों दल ऐसे थे जिनमें कई तरह के मतभेद थे। ऐसे में उनके साथ आने में समय लगना सामान्य बात थी।
 
समर खड़स कहते हैं, ''इसमें चूक कहीं पर नहीं हुई है। पूरे देश में लोग देख रहे हैं कि जो राज्यपाल बीजेपी की केंद्र सरकार में नियुक्त किए गए हैं वो किस तरह से पक्षपाती हैं। इसमें चूक का सवाल नहीं है। तीन पार्टियां और वो भी जिनमें एक शिवसेना जैसी अलग विचारधारा की पार्टी हो, वो तीनों अगर साथ आना चाहती हैं तो वक़्त लगना स्वाभाविक है। ऐसे मामलों में कई बिंदुओं पर चर्चा करनी पड़ती है, कई मतभेदों को मिटाना पड़ता है, कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर भी सहमति बनानी थी। इस सबमें वक़्त लगता है।''
 
''बीजेपी जो जोड़-तोड़ की राजनीति का दौर लेकर आई है उसी के तहत वो अब भी सरकार बनाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन, अगर उनके पास संख्या होती तो वो बहुमत साबित कर देते। इसलिए वो सुप्रीम कोर्ट में भी बहुत मशक्क़त कर रहे थे कि उन्हें बहुमत साबित करने के लिए कुछ वक़्त और मिले।''
 
लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने ज़्यादा वक़्त देने से मना कर दिया और बुधवार तक फ़्लोर टेस्ट कराने का आदेश दे दिया तो बीजेपी का खेल ख़त्म हो गया। पहले उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने अपना इस्तीफ़ा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भेजा फिर कुछ ही घंटों बाद फडणवीस ने भी अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया।
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