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Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 3 अक्टूबर 2021 (08:19 IST)

हवाला क्या है, ये धंधा कहां से शुरू हुआ, कितना बड़ा है इसका कारोबार

हवाला क्या है, ये धंधा कहां से शुरू हुआ, कितना बड़ा है इसका कारोबार - Know every thing about Hawala
डेनियल गोंज़ालेज़ कप्पा, बीबीसी मुंडो
रुपये को दुनिया के एक हिस्से से दूसरी जगह ट्रांसफर करना और वो भी बग़ैर उसे हिलाए हुए। इसके लिए न तो बैंकों की ज़रूरत है न ही करेंसी एक्सचेंज की, न तो कोई फॉर्म भरना है और ना ही फ़ीस देनी है। होगा तो एक वो जो रुपये भेजेगा दूसरा वो जिसके पास रुपये आएंगे और बीच में कम से कम दो मध्यस्थ।
 
ये हवाला कारोबार है जो पारंपरिक बैंकिंग सिस्टम आने से बहुत पहले भी था। और अपने इस्तेमाल करने में आसानी और संलिप्त लोगों को मिलने वाले कई फायदे की वजह से सदियों से चला आ रहा है। इसके ज़रिए दुनिया भर में लाखों डॉलर इधर से उधर किए जा सकते हैं, यह जाने बग़ैर कि राशि कितनी है और इसे नियंत्रित कौन कर रहा है।
 
रुपये को दुनिया की एक जगह से दूसरे पर ग़ैरक़ानूनी रूप से हस्तांतरण का नाम ही हवाला है और इसमें सबसे अहम भूमिका एजेंट या बिचौलिए या जिसे मध्यस्थ कह सकते हैं, उसकी होती है। क्योंकि ये बिचौलिए शायद ही कभी किसी लेन देन का रिकॉर्ड छोड़ते हैं। तो ये वो हैं जो हवाला के ज़रिए रुपया कहां से निकल कर कहां पहुंच रहा है इसे पता लगाने में सबसे बड़ी बाधा होते हैं। और ख़ुद को संभावित मनी लॉन्डरिंग (धन शोधन), नशीले पदर्थों की तस्करी (ड्रग ट्रैफिकिंग) और चरमपंथी संगठनों के वित्तपोषण के लिए भी भाड़े पर दे सकते हैं।
 
मैड्रिड के पॉन्टिफिसिया कोमिला यूनिवर्सिटी में इंटरनैशनल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर अल्बर्टो प्रीगो मोरेनो ने बीबीसी मुंडो को बताते हैं, "हालांकि हवाला ख़ुद इन गतिविधियों ने नहीं जुड़ा है, यह ग़लत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक साधन हो सकता है।" वास्तव में यह फ़ारस की खाड़ी, पूर्वी अफ़्रीका, दक्षिण अफ़्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में फैला हुआ है।
 
इसे ऐसे समझें
इसे एक पारंपरिक और अनौपचारिक तरीके के रूप में परिभाषित किया गया है जो किसी भी अन्य बैंकिंग सिस्टम के समानान्तर चलता है और अपने बिचौलियों की अहमियत और भरोसे पर आधारित है। उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क से कोई व्यक्ति बिना कोई बैंक खाता खोले ही इस्लामाबाद में पैसे भेज सकता है।
 
इसके लिए उसे स्थानीय बिचौलिए से संपर्क करके उसे डॉलर में राशि और वो पासवर्ड देनी होती है जिस पर पैसे भेजने वाला और उसे प्राप्त करने वाला दोनों सहमत होते हैं। यानी यह पासवर्ड अब उन दोनों के अलावा बिचौलिए को भी पता होती है।
 
अब स्थानीय बिचौलिया पाकिस्तान की राजधानी में वहां के बिचौलिए से सम्पर्क करता है और उसे वो राशि और पासवर्ड बताता है। ये दूसरा बिचौलिया उतनी ही राशि का पाकिस्तानी रुपया उस व्यक्ति को देता है जिसे पैसे डिलीवर किए जाने थे। वो यह सुनिश्चित करता है कि पैसा सही व्यक्ति तक पहुंचे, वो उससे पासवर्ड पूछता है। यह पूरी प्रक्रिया महज कुछ घंटों में पूरी हो जाती है और बिचौलिए एक छोटी राशि बतौर कमीशन अपने पास रखता है।
 
हवाला आया कहां से?
हवाला की शुरुआत कब हुई यह स्पष्ट नहीं है लेकिन कुछ लोग इसे 8वीं शताब्दी से सिल्क रूट के तहत भारत से जोड़ते हैं।
 
सिल्क रूट को प्राचीन चीनी सभ्यता के व्यापारिक मार्ग के रूप में जाना जाता है। दो सौ साल ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी के बीच हन राजवंश के शासन काल में रेशम का व्यापार बढ़ा। पहले रेशम के कारवाँ चीनी साम्राज्य के उत्तरी छोर से पश्चिम की ओर जाते थे। लेकिन फिर मध्य एशिया के क़बीलों से संपर्क हुआ और धीरे-धीरे यह मार्ग चीन, मध्य एशिया, उत्तर भारत, आज के ईरान, इराक़ और सीरिया से होता हुआ रोम तक पहुंच गया। ग़ौरतलब है कि इस मार्ग पर केवल रेशम का व्यापार नहीं होता था बल्कि इससे जुड़े सभी लोग अपने-अपने उत्पादों का व्यापार करते थे।
 
लेकिन सिल्क रूट पर अक्सर चोरी और लूट होती थी इसलिए भारतीय, अरब और मुस्लिम व्यापारियों ने अपने मुनाफे की रक्षा के लिए अलग अलग तरीके अपनाए। हवाला का अर्थ है 'के एवज़ में' या 'के बदले में'।
 
व्यापारी एक पासवर्ड का इस्तेमाल करते थे जो कि कोई वस्तु, शब्द या कोई इशारा होता था और ठीक उसी तरह की पूरक वस्तु, शब्द या पासवर्ड उसे प्राप्त करने वाले को बताना होता था। इस तरह, वो सुनिश्चित किया करते थे कि पैसे या सामानों की लेन देन सही हाथों तक पहुंच जाए।
 
यह व्यवस्था कितनी पुरानी थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में पहला बैंक 'बैंक ऑफ़ हिंदुस्तान' था जिसकी स्थापना 18वीं शताब्दी में कोलकाता में हुई थी।
 
आज तकनीक के मामले में दुनिया जिस तेज़ी से आगे बढ़ रही है उसी आसानी से हवाला के काम को करना भी आसान हुआ है। आज इंस्टैंट मैसेजिंग एप्लिकेशन के ज़रिए पासवर्ड की जगह कोड भेजे जाते हैं। लिहाजा बिचौलिए भी अपनी व्यावसायिक गतिविधियों के समानांतर इसे भी बेहद आसानी से अंजाम दे सकते हैं।
 
लेकिन ये लेनदेन गुप्त तरीक़े से क्यों किए जाते हैं
प्रोफ़ेसर अल्बर्टो प्रीगो मोरेनो कहते हैं कि, "ऐसा इसलिए होता है, कई बार ये घोषित पैसे नहीं होते हैं यानी पूरी तरह से वैध नहीं होते। कई बार (यूज़र) टैक्स देने से बचता है। वहीं जब वो बतौर रिमिटेंस यह पैसे दूसरे देश में भेजता है तो वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि बतौर कमीशन बिचौलिया कम से कम पैसे रखे।"
 
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अगर कोई व्यक्ति अमेरिका से दूसरे देश में स्थित अपने परिवार को पारंपरिक तरीक़े से पैसे भेजना चाहता है तो इसके लिए उसे कई मांगों को पूरा करना पड़ता है।
 
अगर आप बैंकिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं तो आपके पास एक निश्चित राशि होनी चाहिए। आप खाता खोल सकें इसके लिए आपके पास आपकी पहचान, वहां आपकी क़ानूनी स्थिति आदि जैसे कुछ दस्तावेज़ चाहिए होते हैं।
 
अन्य मनी ट्रांसफर सेवाएं अंतरराष्ट्रीय लेन देन के लिए आपसे 20 फ़ीसद तक कमीशन ले सकती हैं। चाहे मामला कोई भी हो, यूज़र को कई नियंत्रणों से गुज़रना पड़ता है ताकि मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों से बचा जा सके। लेकिन हवाला में ऐसा कुछ नहीं करना पड़ता है।
 
प्रीगो मोरेनो कहते हैं, "यह इतना अधिक प्रभावी है क्योंकि इसमें प्राप्तकर्ता तक पैसे अपेक्षाकृत जल्दी पहुंच जाते हैं और बतौर कमीशन भी कम देना पड़ता है।"
 
"बिचौलिए के लिए उसका नेटवर्क अच्छा होना बेहद ज़रूरी है। जितना अधिक आपके पास कॉन्टैक्ट होगा उतना ही अच्छा आपका बिजनेस चलेगा। लिहाजा आप बहुत कम चार्ज करें और ज़्यादा से ज़्यादा फायदा दें।"
 
"बिचौलिए को भरोसेमंद होने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए। पहले सूदखोरी और ब्याज़ का प्रचलन कम था और बिचौलिए के लिए बहुत सारा पैसा बनाना मुश्किल था। यही कारण था कि पश्चिमी देशों की तुलना में यह व्यवस्था मध्यपूर्व और एशिया में ज़्यादा फैला जहां बैंकिंग लेनदेन पर सख्त निगरानी और नियंत्रण है।"
 
मोरेनो कहते हैं, "कुछ जगहों पर इन बिचौलियों पर लोग बैंक से ज़्यादा भरोसा करते हैं क्योंकि बिचौलियों का यह पारिवारिक और पुश्तैनी धंधा होता है जिसे वो बैंकों की तुलना में अधिक विश्वसनीय मानते हैं।"
 
जर्मनी के फ्रैंकफर्ट स्थित मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में दक्षिण एशिया के क़ानूनी इतिहास विभाग की संयोजक मारिना मार्टिन कहती हैं, "पहले के जमाने में हवाला और उसके जैसी ही हुंडी बेहद लोकप्रिय अवधारणा थे और आज की तारीख़ में इसकी समझ बदल गई है क्योंकि वो आधुनिक बैंकिंग से अलग काम करते हैं।"
 
कितना बड़ा है हवाला का व्यापार
पारंपरिक हवाला व्यवस्था का सबसे बड़ा फायदा ये है कि पैसों की लेनदेन कौन कर रहा है यह सरकार या अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की पकड़ से बाहर रहता है।
 
यह तथ्य कि लेन देन के बहुत कम या बिल्कुल ही कोई रिकॉर्ड का न होना इन पैसों की हेरफेर को पकड़ने में एक बाधा है।
 
माना जाता है कि न्यूयॉर्क में हुए 9/11 के हमले में आतंकवादियों का वित्तपोषण भी इन्हीं ग़ैर-पारंपरिक तरीक़ों से किया गया था।
 
न केवल अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया में नए और सख़्त नियमों के आने से कुछ हज़ार डॉलर की अंतरराष्ट्रीय लेन देन और भी जटिल हो गई है।
 
मार्टिन कहती हैं, "9/11 के हमलों के बाद अमेरिका हवाला को आतंकवादियों को वित्तपोषण का एक संभव ज़रिया मानता आया है।"
 
वे कहती हैं, "हवाला (और अन्य ग़ैरपारंपरिक तरीक़ों) को कुछ वर्षों से मनी लॉन्डरिंग और राजनीतिक भ्रष्टाचार से लेकर मानव अंगों की तस्करी जैसी कई आपराधिक गतिविधियों से जोड़ा जाता रहा है।"
 
2018 में संगठित अपराध और करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट की एक जांच में कहा गया था कि दुबई में हवाला जैसे ग़ैरपारंपरिक व्यवस्था का इस्तेमाल कर बड़ी संख्या में लाखों विदेशी कामगार भारत, फिलिपींस जैसे देशों में अपने परिवार को पैसे भेजते रहे हैं। इसमें बताया गया था कि ये रक़म 240 करोड़ रुपये से भी अधिक है।
 
फ़रवरी 2016 में अमेरिकी ड्रग इन्फोर्समेंट ऑफ़िस (डीईए) ने कोलंबिया और हिज़बुल्लाह संगठन के बीच यूरोप के ज़रिए मनी लॉन्ड्रिंग और नशीले पदार्थों की तस्करी का संबंध को उजागर करते हुए बताया था कि लाखों यूरो और ड्रग्स की लेनदेन की गई है।
 
डीईए के दस्तावेज़ों के मुताबिक लेबनान के रास्ते लाखों के ड्रग्स मध्यपूर्व पहुंचाए गए और इसके बदले में हवाला के ज़रिए यूरो कोलंबिया भेजे गए थे। पूर्वी अफ़्रीका, ख़ास कर सोमालिया में हथियारों के तस्कर हवाला का इस्तेमाल कर लाखों डॉलर इधर से उधर करते हैं।
 
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, विकासशील देशों में रेमिटेंस के ज़रिए अपने परिवारों की मदद के लिए पैसे भेजने वाले प्रवासी कामगारों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है।
 
कोविड-19 महामारी के प्रभाव के बावजूद आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक निम्न और मध्य आय वाले देशों में भेजी जाने वाली रेमिटेंस 2020 में लगभग 400 खरब रुपये थी। यह राशि 2019 के मुक़ाबले महज 1।6 फ़ीसद कम है। 2019 में यह आंकड़ा 406।31 खरब रुपये था।
 
हालांकि वर्ल्ड बैंक यह भी स्पष्ट करता है कि "रेमिटेंस का वास्तविक आकार, जो पारंपरिक और ग़ैर पारंपरिक दोनों ज़रिए से पहुंचाया जाता है, आधिकारिक आंकड़े से कहीं बड़ा है।"
 
अर्थव्यवस्था में संभावित वैश्विक सुधार के साथ ही उम्मीद जताई जा रही है कि पारंपरिक और ग़ैर पारंपरिक माध्यमों जैसे कि हवाला से निम्न और मध्य आय वाले देशों को भेजे जाने वाली रेमिटेंस की राशि 2021 और 2022 में और भी बड़ी हो जाएगी।
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