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Last Modified: सोमवार, 17 अक्टूबर 2016 (14:29 IST)

भारत-पाक: 'कलाकारों का काम है पुल बनाते रहें'

भारत-पाक: 'कलाकारों का काम है पुल बनाते रहें' - Kiran Rao on India Pak artist
- रूना आशीष (मुंबई से)
 
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव और यहां पाकिस्तानी फिल्मकारों और फिल्मों के विरोध के बीच फिल्मकार किरण राव ने कहा है कि कला के लोगों का काम है कि पुल बनाते रहें और लोगों को अपने काम के जरिए करीब लाते रहें।
किरण राव मुंबई एकेडमी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल यानी 'मामी' की चेयरपर्सन हैं। 'मामी' में पाकिस्तानी फिल्म 'जागो हुआ सवेरा' की प्रस्तावित स्क्रीनिंग का विरोध हो रहा है लेकिन किरण राव को उम्मीद है कि समस्या का समाधान हो जाएगा।
 
किरण राव का कहना है, 'ये टकराव का समय है। सभी इमोशनली चार्ज्ड हैं, जिसे लेकर एक चिंता का माहौल तो है। कोई भी देश हो कला का काम है लोगों को जोड़ना, लोगों के बीच पुल बनाना। बतौर कलाकार हमारा काम सामंजस्य बनाना है।'
 
बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा- "सीमा पर हमारे देश के जवान मारे जा रहे हैं। हम बिल्कुल इसके ख़िलाफ़ हैं। लेकिन क्रिएटिव और आर्टिस्टिक कम्युनिटी के सदस्य होने के नाते यह हमारा काम है कि हम पुल बनाते रहें और लोगों को अपने काम के ज़रिए करीब लाते रहें।"
 
मुंबई में 20 अक्टूबर से हो रहे 'मामी' इस साल 54 देशों की 180 फ़िल्में दिखाई जाएंगी।
 
आयोजन को लेकर किरण कहती हैं, "पिछले साल हमारे पास पैसे नहीं थे और टीम भी बहुत छोटी थी। हम लोग काफ़ी तनाव में भी थे। लेकिन इस साल ऐसी समस्या नहीं है। इस साल हमारे पास काफ़ी बड़ी टीम है। मुझे आशा है कि यह फेस्टिवल बहुत कामयाब होगा। इस साल इस फेस्टिवल में महिलाओं की भागीदारी भी ज्यादा नजर आएगी।'
 
उनके मुताबिक इस बार मामी में महिलाओँ को लेकर, खासकर महिला निर्देशकों को लेकर, नई राहें खुली हैं। वो कहती हैं, 'फिल्म इंडस्ट्री में आज भी महिला निर्देशकों की कमी है। हां, इस बार हम मामी में कुछ नए अवॉर्ड दे रहे हैं, ऑक्सफेम इंडिया अवॉर्ड फॉर बेस्ट फिल्म ऑन जेंडर इक्वैलिटी। इसमें 10 लाख का रुपए का अवॉर्ड दिया जाएगा और दूसरा मास्टरकार्ड बेस्ट इंडियन फीमेल फिल्म-मेकर अवॉर्ड 2016 है जो सिर्फ भारतीय निर्देशक के लिए होगा। इसमें 15 लाख रुपए कैश दिए जाएंगे।'
 
किरण राव ने कहा- 'मैं भी मानती हूं कि फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं की, और महिला निर्देशकों की कमी है। ऐसा पूरी दुनिया में है। यह निश्चित है कि महिलाएं एक दिन जरूर आगे आएंगी।'
 
अंतरराष्ट्रीय फिल्मों के बीच कई बार भारतीय फिल्में पीछे छूट जाती हैं। इस बारे में किरण का कहती हैं, 'आज पूरे देश में देखें तो आपको कई तरह की फिल्में देखने को मिलेंगी। कई बार बड़े स्टार्स की फिल्में भी बनती हैं। इंटरनेट पर कितनी बेहतरीन फिल्में या शॉर्ट फिल्म बनती हैं। उनके कैमरा ऐंगल्स देखिए। फिर अलग-अलग आर्ट हाउज भी हैं। बाहर की फिल्में देखें तो वहां कई आर्ट हाउज हैं। हमारी परिस्थितियां उनसे अलग हैं। इसलिए ये तुलना जायज़ नहीं है।'
 
उन्होंने उदाहरण के तौर पर कहा कि भारत में भी 'किला' और 'कोर्ट' जैसी फिल्में बनती हैं।
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