सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली
1999 में पूर्वी भारत के ओडिशा राज्य में 260 किलोमीटर प्रति घंटा से चलनी वाली हवाओं ने जमकर तबाही मचाई थी। ये 'सुपर सायक्लोन' था जिसके लिए ओडिशा तैयार नहीं था। इस तूफान ने दस हजार से ज्यादा लोगों की जान ली। कई गांवों का नामोनिशान तक मिट गया और एक ही रात में लाखों लोग बेघर हो गए।
वैसे तो बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा ओडिशा हर साल तूफानों से दो-दो हाथ करता रहता है। मगर 1999 के 'सुपर सायक्लोन' ने राज्य की कमर तोड़ कर रख दी थी। अकेले जगतसिंहपुर ज़िले में ही आठ हजार मौतें हुईं थीं।
मगर बीते बीस सालों के भीतर ओडिशा ने तूफानों से टकराना सीख लिया है। इसका पहला उदाहरण था पाइलिन तूफान। 12 अक्टूबर 2013 को, 260 किलोमीटर प्रति घंटे की तेजी से पाइलिन तूफान ओडिशा के गोपालपुर तट से टकराया था। उस वक्त मैं उस तूफान के संबंधित खबरें करने के लिए वहां पहले से ही तैनात था।
बिजली गुल हो चुकी थी और संपर्क के और साधन जैसे सैटेलाइट फ़ोन भी काम नहीं कर रहे थे। अंधेरे में घरों की खिड़कियों के टूटने और गिरने की आवाजें चारों तरफ़ से आ रही थी।
मुझे याद है मैंने कहा था, 'ऐसा तूफान मैंने अपनी ज़िन्दगी में कभी नहीं देखा है, ये आवाज दिलो-दिमाग पर कई सालों तक बरकरार रहेगी।'
'तितली' से निपटने में कामयाब ओडिशा
इस बार ओडिशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल 'तितली' नामक तूफ़ान का सामना कर रहे हैं जिसे बहुत ही ज़्यादा तीव्र तूफान के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।
'तितली' की तीव्रता पाइलिन से काफी कम है। पाइलिन में भी जानोमाल का कुछ नुकसान हुआ था। लेकिन उतनी जानें नहीं गई थीं क्योंकि प्रशासन ने लाखों लोगों को पहले ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था।
ओडिशा के आपदा प्रबंधन विभाग में मौसम वैज्ञानिक शोभन दस्तीदार के अनुसार 'तितली' तूफान के आने की जानकारी पहले ही मिल चुकी थी और तूफ़ान के तट से टकराने से बहुत पहले ही लोगों को असुरक्षित स्थानों से हटाने का काम शुरू कर दिया गया।
पिछले बीस सालों में ओडिशा के आपदा प्रबंधन और राहत विभाग ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए वृहद् योजना बनाई जिसमें उन्होंने विश्व बैंक की मदद भी ली। इस दौरान आईआईटी-खड़गपुर की सहायता से नौ सौ के आस-पास तूफ़ान राहत शिविरों का निर्माण किया गया है।
राज्य के आपदा प्रबंधन और राहत विभाग के विशेष आयुक्त बिष्णुपद सेठी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, 'ओडिशा ने 1999 के सुपर सायक्लोन से सबक़ लेते हुए ये फैसला किया कि आने वाली हर प्राकृतिक आपदा से मुक़ाबला किया जाए और ये सुनिश्चित भी किया जाए कि इसमें जान और माल की कम से कम क्षति हो।'
क्या क्या हुआ?
- आईआईटी- खड़गपुर की सहायता से 879 तूफ़ान और बाढ़ राहत केंद्र बनाए गए।
- एक लाख लोगों को ज़्यादा तीव्रता वाले तूफानों के आने पर शरण देने के 17,000 विशेष केंद्र बनाए गए'
- समुद्री इलाकों के पास वाले इलाकों में 122 सायरन टावर और समय समय पर तूफान के आने से काफी पहले चेतावनी दी जाने की व्यवस्था।
- 17 ज़िलों में 'लोकेशन बेस्ड अलर्ट सिस्टम' जो लोगों को अपने इलाके के बारे में बताने के साथ-साथ बचाव के उपाय भी बताता है।
- तटवर्तीय इलाकों में बने मकानों को मजबूत बनाने का काम ताकि उनकी दीवारें और छत तेज हवाओं का सामना कर सकें।
- मछुआरों के लिए मौसम की चेतावनी की विशेष व्यवस्था।
- सोशल मीडिया के सहारे मौसम के बारे में समय-समय पर अलर्ट जारी करने की व्यवस्था।
'तितली' तूफान के आने की चेतावनी से काफी पहले ही ओड़िशा और आंध्र प्रदेश में 'नेशनल डिजास्टर रेस्पोंस फोर्स' यानी एनडीआरएफ की 20 टीमों को तैनात कर दिया गया। इसके अलावा राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग की फ़ोर्स के साथ-साथ अग्निशमन विभाग के दलों को भी संवेदनशील इलाकों में तैनात किया गया।
फिलहाल गोपालपुर में समंदर की लहरें एक मीटर से भी ज़्यादा ऊंची बताई जा रही हैं। समंदर में तूफ़ान के दौरान एक नाव पर 27 मछुआरों के फंसे होने की खबर के बाद एनडीआरएफ के दल ने सभी को सुरक्षित निकाल लिया।
सेठी कहते हैं, 'चूंकि ओडिशा ने हमेशा मौसम की मार झेली है इसलिए इसका सामना करने की योजना बड़े पैमाने पर बनाई गई. बंगाल की खाड़ी से लगे होने की वजह से ओडिशा का सामना तूफानों से होता रहा है।'
'तूफान के बाद बाढ़ का खतरा बन जाता है। हम उसके लिए भी तैयार हैं। तटवर्तीय इलाकों में सरकारी स्कूलों के भवनों को भी इस तरह पुनर्निर्मित किया गया है ताकि वो वक़्त पड़ने पर राहत शिविर के रूप में इस्तेमाल किए जा सकें।'
तितली तूफान के टकराने के बाद आंध्र प्रदेश के सिरकाकुलम जिले से दो मौतों की खबर है जबकि ओडिशा से अब तक किसी की मौत होने की कोई सूचना नहीं मिली है।
तूफान की तीव्रता के बढ़ने के बाद इसके कमजोर होने की भविष्यवाणी की गई है। मगर फिलहाल पूरे इलाके में तेज बारिश ने बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिए हैं।