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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 29 जुलाई 2023 (08:00 IST)

मोदी सरकार में भारत कैसे बनेगा तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, कितनी बदलेगी आम लोगों की जिंदगी

narendra modi
अनंत प्रकाश, बीबीसी संवाददाता
Indian economy : पीएम मोदी ने बुधवार को दिल्ली के प्रगति मैदान में ‘भारत मंडपम’ का उद्घाटन करते हुए गारंटी दी कि उनकी सरकार के तीसरे कार्यकाल में भारत दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो जाएगा। भारत फिलहाल दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
 
ऐसे में अगर पीएम मोदी साल 2024 में होने जा रहा आम चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनकी सरकार के पास ऐसा करने के लिए साल 2029 तक का वक़्त होगा।
 
कांग्रेस पार्टी ने पीएम मोदी की इस गारंटी पर उन्हें आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि सरकार बेहद चतुराई से उन कीर्तिमानों को बनाने की गारंटी देती है जिनका होना पहले से तय है।
 
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करके कहा है, “अंकगणित के हिसाब से जो उपलब्धियां देश को हासिल होने ही वाली हैं, उनके लिए भी गारंटी देना प्रधानमंत्री मोदी की ओछी राजनीति को दिखाता है। इस दशक में भारत के दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने की भविष्यवाणी काफ़ी समय से की जा रही है, और यह गारंटीड है - अगली सरकार चाहे कोई भी बनाए।”
 
कांग्रेस पार्टी ने जिन भविष्यवाणियों की बात की है, लगभग वैसी ही भविष्यवाणी अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी अब से छह महीने पहले की थी।
 
लाइव मिंट के मुताबिक़, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी पिछले साल अक्टूबर में अनुमान लगाया है कि भारत साल 2027-28 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
 
आईएमएफ़ के साथ ही वैश्विक वित्तीय फर्म मॉर्गन स्टैनली ने भी पिछले साल अनुमान लगाया है कि साल 2027 तक भारत अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इस समय तीसरे स्थान पर जापान की अर्थव्यवस्था है।
 
मोदी काल में अर्थव्यवस्था कहां से कहां तक पहुंची?
पीएम मोदी के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में सफल हुई है। लेकिन इसकी वजह क्या है?
 
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के आकार का मानक उस देश की जीडीपी होती है और बीते नौ सालों में भारत की जीडीपी में तेज उछाल दर्ज किया गया है।
 
हालाँकि, कांग्रेस के कार्यकाल में जीडीपी की अधिकतम विकास दर 2010 में 8.5 प्रतिशत दर्ज की गई थी जबकि कोविड के दौर में दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं की तरह भारत में वृद्धि की जगह गिरावट दर्ज की गई थी।
 
भारत का जीडीपी कैसे बढ़ रहा है?
साल 2014 से 2023 के बीच भारत के जीडीपी में कुल 83 फीसद की बढ़त दर्ज की गई है। नौ साल की वृद्धि दर के मामले में भारत चीन से सिर्फ़ एक फीसदी नीचे रहा है क्योंकि चीन की जीडीपी में 84 फीसद की बढ़त दर्ज की गई है।
 
वहीं, इन नौ सालों में अमेरिकी जीडीपी में बढ़त की दर 54 फीसदी रही लेकिन इन तीन अर्थव्यवस्थाओं को छोड़ दिया जाए तो जीडीपी के लिहाज़ से शीर्ष दस देशों में शामिल कुछ देशों की जीडीपी में बढ़त की दर कम हुई है या बढ़ी नहीं है।
 
इस दौर में भारत पांच देशों को पीछे छोड़कर दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है। इनमें से ब्रिटेन, फ्रांस और रूस की जीडीपी में बढ़त की दर क्रमश: तीन, दो और एक फीसद रही।
 
वहीं, इटली की जीडीपी बढ़त दर में वृद्धि नहीं हुई। ब्राज़ील की जीडीपी में 15 फीसदी का संकुचन देखा गया है।
 
ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था में जो तेज उछाल दिखती है वह इन देशों की तुलना में ही दिखती है, तो इन तमाम विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में बढ़त नहीं होने की वजह क्या रही।
 
इसकी एक वजह साल 2008 – 09 का वैश्विक आर्थिक संकट है क्योंकि जहां एक ओर ये आर्थिक संकट पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए काफ़ी ज़्यादा नुकसान पहुंचाने वाला रहा। वहीं, भारत पर इस संकट का अपेक्षाकृत रूप से कम असर पड़ा।
 
अगर भारतीय जीडीपी मौजूदा औसत छह-सात फीसद की दर से भी आगे बढ़ती रहती है तो भी वह साल 2027 तक जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी, क्योंकि इन देशों के लिए छह-सात प्रतिशत बढ़ोतरी तकरीबन असंभव ही है, क्योंकि जर्मनी और जापान की विकास दर क्रमश: ढाई और डेढ़ प्रतिशत ही है।
 
अर्थव्यवस्था बढ़ने का मतलब क्या है?
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था बढ़ने से आशय उसकी जीडीपी बढ़ने से है। और जीडीपी का मतलब उस देश में एक साल में तैयार किए गए माल और सेवाओं की कुल वैल्यू से है।
 
उदाहरण के लिए, अगर आप साल भर खेती करते हैं जिसका बाज़ार में मूल्य दस लाख रुपये है तो आपकी वार्षिक जीडीपी दस लाख रुपये हुई। ऐसे में अगर आपकी वार्षिक जीडीपी दस फीसद की दर से बढ़त होती है तो आपकी जीडीपी बढ़त दर दस फीसद कही जाएगी।
 
जीडीपी में बढ़ोतरी की वजह से कंपनियां अपना व्यापार बढ़ाने पर तरजीह देंगी। विदेशी कंपनियां भी उस देश में निवेश करेंगी जहाँ बढ़ोतरी हो रही है।
 
इससे नौकरियों के नए अवसर पैदा होंगे। इससे धीरे-धीरे समाज के आर्थिक रूप से शीर्ष वर्ग से मध्यम और निचले वर्ग तक लाभ पहुँचेगा।
 
प्रति व्यक्ति आय के बिना जीडीपी अधूरी जानकारी
अब ये समझने की कोशिश करते हैं कि किसी देश की अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने से आम लोगों पर क्या असर पड़ता है।
 
देश की अर्थव्यवस्था का बढ़ना एक सकारात्मक बात है लेकिन जीडीपी देश के आम नागरिकों की समृद्धि का पैमाना नहीं है, जिस पैमाने से देश के आम लोगों की समृद्धि मापी जाती है उसे प्रति व्यक्ति आय कहते हैं।
 
प्रति व्यक्ति आय का मतलब है--देश की कुल आबादी से जीडीपी को भाग देने पर जो रकम मिलती है वह देश के एक व्यक्ति की एक साल की औसत आय है।
 
इसमें दिहाड़ी मज़दूर, कामकाजी आदमी-औरत से लेकर अंबानी अडानी की कमाई सब शामिल है, जिसका यह औसत है, बहुत सारे लोग इस औसत से अधिक कमाते हैं और बहुत सारे लोग बहुत कम, इस तरह ये आम आदमी की आर्थिक हालत का मोटा-मोटा संकेत है।
 
भारत जीडीपी के मामले में दुनिया में आज 5वे नंबर पर है लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत का स्थान दुनिया के पहले 100 देशों में भी नहीं है। इसकी दो अहम वजहें हैं- पहला बड़ी आबादी और दूसरा धन का असमान वितरण। आबादी तो आप जानते ही हैं।
 
भारत में धन का वितरण कितना असमान है, इसके बारे में प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था ऑक्सफ़ैम के मुताबिक़, भारत के एक प्रतिशत लोगों के पास देश की चालीस प्रतिशत संपत्ति है।
 
लोगों की समृद्धि कैसे पता चलती है?
पिछले कुछ सालों में जब भारत ने ब्रिटेन, इटली, फ्रांस और ब्राज़ील जैसी अर्थव्यवस्थाओं को पछाड़ा है तो क्या इस दौर में भारत में रहने वाले लोगों की स्थिति बेहतर हुई है।
 
आर्थिक मामलों के जानकार आलोक पुराणिक बताते हैं, “जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय दो अलग-अलग कॉन्सेप्ट हैं। जीडीपी जहां उस देश में पैदा किए उत्पादों और सेवाओं की कुल वैल्यू होती है। वहीं, प्रति व्यक्ति आय से आशय उस देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की औसत आय होती है। अब जिन देशों की आबादी ज़्यादा होती है, उन देशों में प्रति व्यक्ति आय कम होती है।"
 
वहीं जिन देशों की आबादी कम होती है, उन देशों की प्रति व्यक्ति आय ज़्यादा होती है। कुछ ऐसे मुल्क हैं जो दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में नहीं गिने जाते हैं लेकिन वहां लोगों की प्रति व्यक्ति आय अमेरिका जैसे शीर्ष अर्थव्यवस्था वाले देशों से ज़्यादा होती है।
 
स्विट्ज़रलैंड और लग्ज़मबर्ग जैसे देश इसी श्रेणी में आते हैं, स्विट्ज़रलैंड की प्रति व्यक्ति आय 80 हज़ार अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा है। और लग्ज़मबर्ग की प्रति व्यक्ति आय एक लाख रुपये से ज़्यादा है। लेकिन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की सूची में स्विट्ज़रलैंड 20वें स्थान और लग्ज़मबर्ग इस सूची में 72वें स्थान पर है।
 
अब भारत ने पिछले नौ सालों में ब्राज़ील, कनाडा, फ्रांस, इटली और ब्रिटेन को पछाड़ा है लेकिन इनमें से हर देश की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय भारत में मुकाबले कई गुना ज़्यादा है।
 
भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 2।6 हज़ार अमेरिकी डॉलर है तो अमेरिका में ये आंकड़ा 80 हज़ार डॉलर से ज़्यादा है। वहीं, इस समय दसवें पायदान पर मौजूद ब्राज़ील की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 9।67 हज़ार अमेरिकी डॉलर है। यानी जो देश दसवें नंबर पर है वहाँ भी प्रति व्यक्ति आय भारत से तकरीबन चार गुना अधिक है।
 
आलोक पुराणिक मानते हैं, “जहां एक ओर भारत दुनिया की तीसरी शीर्ष अर्थव्यवस्था बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है। वहीं, इससे आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी होगी जिसका लोगों को फायदा मिलेगा। लेकिन इससे आम लोगों की ज़िंदगी और उनकी आर्थिक समृद्धि में नाटकीय बदलाव होने की संभावना कम है।”
 
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