रविवार, 22 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. free thinking
Written By
Last Updated : मंगलवार, 1 मई 2018 (10:53 IST)

जब औरतें मां-बहन की गालियां देती हैं

जब औरतें मां-बहन की गालियां देती हैं - free thinking
- सिन्धुवासिनी
 
मैं जॉब करूंगी तो तेरे-लिए रोज राजमा-चावल कौन बनाएगा एनआरआई चू*? कितना भी पढ़ लो, लेकिन बैन** जब तक गले में मंगलसूत्र न पड़े, लाइफ़ कंप्लीट नहीं होती। अच्छा, तो तेरी लेने के लिए भी डिग्री चाहिए?
 
ये आने वाली फ़िल्म 'वीरे दी वेडिंग' के कुछ डायलॉग्स हैं जो फ़िल्म की हीरोइनों से बुलवाए गए हैं। फ़िल्म चार आधुनिक और आज़ाद ख़्याल लड़कियों की कहानी है जो अपनी शर्तों पर जीना पसंद करती हैं।
 
ये लड़कियां शादी की अनिवार्यता पर सवाल उठाती हैं, पार्टी करती हैं, सेक्स और ऑर्गैज़म की बातें करती हैं और शायद हर वो काम करती हैं जो पुरुष करते हैं। यहां तक तो ठीक है, लेकिन ये आधुनिक और आज़ाद ख़्याल लड़कियां मां-बहन की गालियां भी देती हैं।
 
कभी गुस्से में, कभी हल्की-फुल्की बातचीत में और कभी यूं ही मस्ती में। फ़िल्म का ट्रेलर रिलीज़ हुए अभी बमुश्किल तीन दिन हुए हैं और यू ट्यूब पर इसे एक करोड़ 90 लाख व्यूज़ मिल गए हैं। ट्रेलर की तारीफ़ें तो हो रही हैं, लेकिन साथ ही कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। सवाल मां-बहन की गालियों को लेकर है जो फ़िल्म में महिला किरदारों ने दी हैं।
 
गाली देकर कूल दिखने की कोशिश?
औरतों को अपमानित करने वाली गालियां पुरुष तो खूब देते हैं, लेकिन जब औरतें ख़ुद भी यही करती हैं तो थोड़ा आश्चर्य होता है। ऐसा भी नहीं है कि ये सिर्फ़ फ़िल्मों में ही दिखाया जाता है, असल ज़िंदगी में भी बहुत-सी लड़कियां बिना किसी हिचक के मां-बहन की गालियां देती हैं।
 
फ़िल्म बनाने वाले ये कहकर बच जाते हैं कि वो वही दिखा रहे हैं जो समाज में हो रहा है। लेकिन महिलाएं महिलाविरोधी गालियां क्यों देती हैं?
 
इसकी एक वजह ये हो सकती है कि शायद ख़ुद को 'कूल' या मर्दों के बराबर साबित करने के लिए। उन्हें लगता है कि अगर मर्द गाली दे सकते हैं तो हम क्यों नहीं?
 
और अगर मर्दों के गाली देने पर कोई सवाल नहीं उठाता तो उनके गाली देने पर क्यों? मर्दों के शराब-सिगरेट पीने और गाली देने को क्यों आम माना जाता है और अगर महिला ये करे तो उसे नैतिकता के कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है?
 
ये बात ठीक है कि एक ही तरह की ग़लती के लिए पुरुष को कम और महिला को ज़्यादा ज़िम्मेदार ठहराया जाना ग़लत है।
 
यहां बात नैतिकता की भी नहीं है। बात बस इतनी है कि आज की आज़ाद ख़्याल महिलाएं सब जानते-समझते हुए भी उसी गड्ढे में क्यों जा गिरती हैं जिससे निकलने की वो सदियों से कोशिश कर रही हैं?
ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ़ शहरों की पढ़ी-लिखी औरतें ही गालियां देती हैं। गांवों की महिलाएं भी ख़ूब गालियां देती हैं। लेकिन गांव की और कम पढ़ी-लिखी औरतों की समझ शायद इतनी नहीं होती कि वो पितृसत्ता, मर्दों के वर्चस्व और महिलाविरोधी शब्दों का मतलब समझ सकें।
 
नयी पीढ़ी की औरतें और 'वीरे दी वेडिंग' के किरदारों जैसी लड़कियां ये सारे शब्द और इनके मायने अच्छी तरह समझती हैं। इसलिए उनके ऐसा करने पर आश्चर्य भी होता है और सवाल भी उठते हैं। हालांकि ये ज़रूरी नहीं कि लड़कियां हमेशा 'कूल' या अलग दिखने के लिए ही गालियां देती हैं।
 
आदत में ढली हैं गालियां
जेएनयू में रिसर्च कर रही ऋषिजा सिंह ये स्वीकार करती हैं कि उन्होंने जाने-अनजाने में कई ऐसी आदतें डाल ली हैं जो पितृसत्ता की साज़िश का हिस्सा हैं और गालियां देना भी उनमें से एक है।
 
वो कहती हैं कि औरतें भी उसी महौल में जीती हैं जिसमें पुरुष। उन्होंने कहा, "पितृसत्ता कोई बायोलॉजिकल चीज़ नहीं है जो सिर्फ मर्दों में ही होती है। इससे एक औरत भी उतनी ही प्रभावित हो सकती है जितना एक मर्द।"
 
हरियाणा की रहने वाली पत्रकार ज्योति पूछती हैं, "मर्द गाली देंगे तो हम क्यों नहीं, ये कैसा तर्क है? मर्द युद्ध का समर्थन करेंगे तो आप भी करेंगी?"
 
हालांकि ये सवाल कहीं ज़्यादा बड़ा है। सवाल ये है कि क्यों सभी गालियां कहीं न कहीं औरतें को ही नीचा दिखाती हैं, क्यों उनके ही चरित्र पर सवाल उठाती हैं और क्यों उनके साथ हिंसा को जायज़ ठहराती हैं?
 
मनीषा पूछती हैं कि गाली शब्द का ज़िक्र होते ही क्यों मां, बहन और बेटियों का ही ख़्याल आता है क्योंकि पुरुषों के लिए तो कोई गाली बनी ही नहीं! तन्वी जैन इन गालियों को औरतों के ख़िलाफ़ 'शाब्दिक हिंसा' मानती हैं।
 
उत्तर भारत में शादी-ब्याह के मौकों पर 'गाली गीत' गाने वाली गायिका विभा रानी कहती हैं, "हम हमेशा अपने से कमज़ोर को गाली देते हैं। मर्द औरत को ख़ुद से कमज़ोर समझता है, इसलिए उसे निशाना बनाकर गालियां देता है।''
 
उन्होंने कहा, ''ये इतने लंबे वक़्त से चला आ रहा है कि आज 'साला' जैसी गंदी गाली आम बोलचाल में इस तरह घुल-मिल गई है कि इसे गाली समझा ही नहीं जाता।"
 
अक्सर लोग गाली देने को गुस्सा ज़ाहिर करने का एक तरीका बताते हैं। लेकिन क्या बिना गालियां दिए ग़ुस्सा ज़ाहिर नहीं किया जा सकता?
 
इसका जवाब आरती के पास है। वो कहती हैं, "किसी भी तरह की अभिव्यक्ति के लिए शब्दों की कमी नहीं है। गाली देना वैसे ही है जैसे हम बात करने की जगह पीटना शुरू कर दें।"
 
क्या गालियों को महज कुछ शब्द मानकर दरकिनार किया जा सकता है?
 
हां।
 
साइकॉलजिस्ट डॉ. नीतू राणा के मुताबिक गालियों का इंसानी दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। उन्होंने कहा, "अगर असर नहीं पड़ता तो हम गाली सुनकर इतना तिलमिला क्यों जाते हैं?''
 
डॉ. नीतू बताती हैं कि इंसान शब्दों को लंबे वक़्त तक याद रखता है। ख़ासकर उन शब्दों को जो उसे नीचा दिखाने के लिए कहे जाते हैं। जैसे कि गालियां।"
ये भी पढ़ें
BBC SPECIAL: आसाराम को सज़ा दिलाने वाले परिवार ने झेला है ये सब