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Written By BBC Hindi
Last Updated : रविवार, 10 मार्च 2024 (08:06 IST)

बाहुबली नेता धनंजय सिंह के जेल जाने से कैसे जौनपुर का लोकसभा चुनाव हुआ दिलचस्प?

dhananjay singh
अनंत झणाणें, बीबीसी संवाददाता, लखनऊ से
जौनपुर की एमपी-एमएलए अदालत ने 2020 के अपहरण के एक मामले में कथित बाहुबली नेता और जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह को सात साल की सज़ा सुनाने के बाद जेल भेज दिया है। भाजपा ने 2 मार्च को मुंबई से पूर्व कांग्रेस नेता कृपा शंकर सिंह को जौनपुर लोक सभा सीट से अपना प्रत्याशी घोषित किया।
 
2 मार्च को बाहुबली नेता धनंजय सिंह ने जौनपुर से अपनी उम्मीदवारी का एलान करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, "साथियों तैयार रहिए लक्ष्य बस एक लोकसभा जौनपुर (73)। जीतेगा जौनपुर, जीतेंगे हम! आपका धनंजय।"
 
लेकिन 5 मार्च को धनंजय सिंह को 2020 के एक किडनैपिंग मामले में दोषी क़रार दिया जाता है और 6 मार्च को उन्हें पहली बार किसी आपराधिक मामले में सज़ा सुना कर जेल भेज दिया जाता है।
 
बीबीसी ने यह जानने की कोशिश की कि 41 आपराधिक मामले दर्ज होने के बावजूद, तीन दशक में पहली बार किसी मामले में सज़ा होना धनंजय सिंह के प्रभाव के बारे में क्या बताता है और जेल में रहते हुए क्या वो जौनपुर की लोक सभा सीट के चुनाव को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं या नहीं।
 
छात्र राजनीति से संसद तक का सफर
तो क्या धनंजय सिंह की राजनीति.. सत्ता के साथ और सत्ता के संरक्षण मिलने पर आधारित रही है?
 
जौनपुर की राजनीति और उसमें धनंजय सिंह के इतिहास को जानने और समझने वाले पत्रकार पवन सिंह कहते हैं, "धनंजय मीडिया से बातों में अक्सर बताते हैं कि जब मंडल आयोग और आरक्षण का विरोध हो रहा था तब वो सवर्ण छात्र नेता के रूप में सामने आए।"
 
पवन सिंह बताते हैं कि "धनंजय के पिता कलकत्ता में एक बैंक में नौकरी करते थे और वो चाहते थे कि धनंजय पढ़ लिख कर नौकरी करें और इसीलिए उन्हें लखनऊ पढ़ाई के लिए भेजा गया। लखनऊ में उनकी दोस्ती अभय सिंह से हुई जो अब ख़ुद गोसाईगंज से विधायक हैं और बाहुबली छवि के नेता हैं। दोनों ने साथ मिल कर लखनऊ यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति में अपना दबदबा कायम किया।"
 
पवन सिंह कहते हैं कि इसके बाद धनंजय पर मुक़दमे होने शुरू हुए जिन्हें वो हमेशा फ़र्ज़ी बताते रहे लेकिन वो अभियुक्त बनते रहे। पवन सिंह कहते हैं कि, "मुक़दमे दर्ज होने और उनकी फ़रारी का सिलसिला चलता रहा।"
 
2007 में वो नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड से चुनाव लड़े और दूसरी बार रारी से विधायक बने।
 
पवन सिंह कहते हैं कि, "2009 में मायावती को अपनी राजनीतिक ताक़त का एहसास था और उन्होंने लोक सभा में ज़्यादा से ज़्यादा सांसद जितवाने का लक्ष्य रखा। जिसके लिए उन्होंने कुछ बाहुबलियों को भी अपनी पार्टी के साथ जोड़ना शुरू किया।"
 
"उस रास्ते धनंजय की बसपा में एंट्री हुई और वो पहली बार जौनपुर से सांसद बने। बाद में विधानसभा सीट मलहानी से अपने पिता राज देव सिंह को चुनाव जिता कर विधायक भी बनवा दिया।"
 
हार का सिलसिला
लेकिन उसके बाद 2011 में मायावती ने इन्हें पार्टी से निष्कासित किया और हत्या के एक मामले में गिरफ़्तार करवा कर जेल भिजवाया। 2012 से उनके राजनीतिक हार का सिलसिला शुरू हुआ।
 
2012 में धनंजय ने अपनी दूसरी पत्नी डॉक्टर जागृति को मलहानी विधानसभा सीट से चुनाव लड़वाया लेकिन वो चुनाव हार गईं। इस सीट से धनंजय ने 2017 (निषाद पार्टी से), 2020 (निर्दलीय) और 2022 (जेडीयू से) में चुनाव लड़े लेकिन वो तीनों बार हार गए, लेकिन दूसरे स्थान पर बने रहे।
 
2014 में धनंजय लोक सभा निर्दलीय लड़े और हारने के बाद चौथे नंबर पर रहे। 2019 में धनंजय ने जौनपुर से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा।
 
पवन सिंह कहते हैं, "आप इनके चुनावी नतीजों को देखेंगे तो आपको अंदाज़ा लग जाएगा कि इनके ख़ुद का 60 से 70 हज़ार का वोट बैंक है। वही विधानसभा और लोकसभा में घूम फिर कर मिलता रहता है। यह कोई बड़े मास लीडर नहीं हैं। यह कोशिश उत्तर प्रदेश के सभी बड़े राजनीतिक दलों के साथ जुड़ने की करते हैं लेकिन इन्हें कोई अपने साथ जोड़ता नहीं है।"
 
धनंजय के 'एनकाउंटर' का मामला
धनंजय सिंह से जुड़ी एक दिलचस्प घटना उनके पुलिस एनकाउंटर के दावे की है। अक्टूबर 1998 में उत्तर प्रदेश पुलिस को "50 हज़ार के इनामी" धनंजय सिंह की तलाश थी।
 
पुलिस ने दावा किया कि उसने एक नदी के पास धनंजय सिंह को मार गिराया। लेकिन लखनऊ में रहने वाले फूल चंद यादव ने इसे ग़लत बताया और दावा किया कि एनकाउंटर में पुलिस ने धनंजय सिंह को नहीं बल्कि उनके भतीजे ओम प्रकाश यादव को मार कर फ़र्ज़ी एनकाउंटर किया।
 
बीबीसी हिंदी से फूल चंद यादव दावा करते हैं, "दो लोग मेरे भतीजे ओम प्रकाश यादव को पुलिस वालों के पास लेकर आए और दूर से दिखा कर बोले कि यही धनंजय सिंह है। पुलिस वालों ने मान लिया और मेरे भतीजे को एक पेट्रोल पंप पर ले गए और उसे धनंजय सिंह दिखा कर उसका एनकाउंटर कर दिया।"
 
एनकाउंटर के तीन महीने बाद फ़रवरी 1999 धनंजय सिंह ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया।
 
फूल चंद यादव बताते हैं कि एनकाउंटर करने वाले 30 से अधिक पुलिस वालों को इनाम भी मिला था। उनके मुताबिक़ सीआईडी जांच में पाया गया की पुलिस वालों ने धनंजय के बदले ओम प्रकाश यादव का एनकाउंटर किया जिसके ख़िलाफ़ एक भी एफ़आईआर नहीं हुई थी। इस प्रकरण में सभी अभियुक्त पुलिस वाले जेल गए थे।
 
तीन दशक पुराना आपराधिक इतिहास
जब 25 हज़ार का इनामी अभियुक्त होने के बावजूद धनंजय सिंह का खुलेआम क्रिकेट खेलते एक वीडियो वायरल हुआ तो समाजवादी पार्टी ने योगी सरकार को निशाना बनाते हुए एक्स पर पोस्ट किया कि, "फ़र्क़ साफ़ है। मुख्यमंत्री से जुड़े माफ़िया ‘खेल’ रहे क्रिकेट।
 
25,000 के इनामी माफ़िया धनंजय सिंह सत्ता के संरक्षण में पुलिस की नाक के नीचे ले रहे खुले आसमान के नीचे खेल का मज़ा। "डबल इंजन" सरकार के बुलडोज़र को नहीं मालूम इनका पता। जनता सब देख रही।"
 
धनंजय सिंह को 2020 के अपहरण के मामले में सात साल की सज़ा हुई उसमें सरकारी वकील सतीश कुमार पांडेय ने बीबीसी को बताया की लगभग चार साल से चले आ रहे मुक़दमे में उन्होंने कैसे धनंजय को दोषी साबित किया और सज़ा दिलवाई।
 
सतीश कुमार पांडेय कहते हैं कि धनंजय सिंह के खिलाफ कुल 41 आपराधिक मुक़दमे दर्ज हुए हैं। जिसमें उन पर हत्या, फिरौती, हत्या के प्रयास जैसे गंभीर आरोप हैं।
 
जिस मुक़दमे में उन्होंने धनंजय को सज़ा करा कर जेल भिजवाया उसके बारे में सतीश कुमार पांडेय कहते हैं, "नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल जिनका अपहरण धनंजय और उनके लोगों ने किया था, पीड़ित ने बयान में कहा था कि उन्हें अपने घर से उठा कर ले जाया गया और यही जानकारी उन्होंने ज़िले के एसपी और डीएम को भी दी और सुरक्षा माँगी।"
 
लेकिन लोक सभा लड़ने की तैयारी कर रहे धनंजय सिंह जैसे नेता को 33 साल में पहली बार सज़ा होना उत्तर प्रदेश की राजनीति के बारे में क्या बताता है?
 
पत्रकार ओमर रशीद कहते हैं, "इस राज्य की राजनीति में शायद यह जगज़ाहिर है कि इतने सारे मुक़दमे होने के बावजूद अगर आप दोषी करार नहीं दिए गए तो फिर शायद आपके सिर पर किसी का हाथ है। अगर किसी पुराने में मामले में अचानक से किसी को सज़ा हो जाती है तो हम उसकी टाईमिंग को शक की निगाह से ज़रूर देख सकते हैं और सवाल पूछ सकते हैं कि यह किसी के चुनाव लड़ने की घोषणा करने के ठीक पांच दिन बाद क्यों हो रहा है।"
 
भाजपा ने कृपा शंकर सिंह पर चला दांव
जौनपुर से भाजपा के लोक सभा प्रत्याशी कृपा शंकर सिंह की ज़्यादा राजनीति मुंबई और महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ हुई है।
 
पत्रकार ओमर रशीद कहते हैं, "उनकी ज़िन्दगी की कहानी रंक से राजा के सामान रही है। और उन्होंने मुंबई में रहने वाले उत्तर भारत के लोगों को कांग्रेस से जोड़ने का काम किया था। लेकिन भाजपा के पास पहले से ही जौनपुर में कृष्ण प्रताप सिंह जैसे मज़बूत ठाकुर बिरादरी के नेता हैं तो उस लिहाज़ से कृपा शंकर को टिकट मिलना थोड़ा आश्चर्यजनक भी लगा।"
 
कृपा शंकर सिंह के जौनपुर से पुराने रिश्ते को समझते हुए वरिष्ठ पत्रकार पवन सिंह कहते हैं कि, "एक अनुमान है कि जौनपुर से बड़ी संख्या में लोग मुंबई रोज़गार की तलाश में जाते हैं। कृपा शंकर सिंह जौनपुर के इन लोगों को नौकरी दिलाने, घर दिलाने, गैस दिलाने और अन्य सुविधाएं दिलाने में मदद करते आए हैं। तो ऐसे वो जौनपुर में अपनी जड़ों से जुड़े रहे हैं। और उनके बारे में कहा जाता है कि वो सभी बिरादरियों के लोगों की मदद करते हैं। उनके जौनपुर में कॉलेज भी हैं। और यहाँ के सामाजिक कार्यक्रमों में अक्सर शिरकत करते हैं।"
 
क्या धनंजय की पत्नी लड़ेंगी चुनाव?
भले ही धनंजय जौनपुर से लोकसभा का चुनाव न लड़ पाएं लेकिन वो वहां से सबसे चर्चित चेहरा रहेंगे।
 
सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर धनंजय की पत्नी और जौनपुर के ज़िला पंचायत की अध्यक्ष श्रीकला धनंजय सिंह ने अपील करते लिखा, "हम आपकी भावनाओं की कद्र करते हैं लेकिन फ़ैसला न्यायपालिका ने दिया है जिसका हमें सम्मान करना‌ चाहिए व साथ ही साथ अपने नेता श्री धनंजय जी का अनुसरण करते हुए किसी भी नेता अथवा दल के बारे में आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे आपके नेता के व्यक्तित्व पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।"
 
श्रीकला धनंजय सिंह के समर्थकों से संयम बनाए रखने को कहती हैं और कहती हैं कि उनके पति को सहानुभूति की ज़रूरत है। तो क्या धनंजय की पत्नी श्रीकला सिंह जौनपुर से चुनाव लड़ कर जीत सकती हैं?
 
इस बारे में पत्रकार पवन सिंह कहते हैं, "अगर धनंजय लड़ते तो वो मुक़ाबले में होते। लेकिन श्रीकला स्थानीय लोगों को कम जानती हैं और वो दक्षिण भारत से हैं। वो भोजपुरी भाषा के माध्यम से लोगों से शायद जुड़ नहीं पाएंगी।"
 
श्रीकला जौनपुर की ज़िला पंचायत अध्यक्ष भी हैं तो क्या उनका ख़ुद का कोई राजनीतिक कद नहीं है?
 
पत्रकार पवन सिंह इस पर कहते हैं, "ज़िला पंचायत अध्यक्ष वो तब तक हैं जब तक सरकार चाह रही है। ज़िला पंचायत अध्यक्ष को तो ज़िला पंचायत सदस्य चुनते हैं। उसे अविश्वास प्रस्ताव लाकर बदला जा सकता है। और वो बात यह लोग जानते हैं।"
 
ठाकुर बिरादरी के बड़े नेताओं का राजनीतिक आकलन
क्या धनंजय सिंह की गिरफ़्तारी का उनके राजनीतिक भविष्य पर पड़ रहे असर से हम उत्तर प्रदेश के बाहुबली ठाकुर बिरादरी के नेताओं के बारे में भी कोई आकलन कर सकते हैं?
 
इस पर पत्रकार ओमर रशीद कहते हैं, "उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा कोई इकलौता ठाकुर क्षत्रिय और राजपूत नेता नहीं है जिसका प्रभाव अपने क्षेत्र से बाहर देखने को मिलता है।”
 
वो कहते हैं, “उनकी इज़्ज़त ज़रूर होगी, उन्हें बिरादरी में सम्मान मिलेगा, लेकिन वो वोट में तब्दील होते नज़र नहीं आता है। उदाहरण के तौर पर कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया हैं। इनका प्रभाव अपने ज़िले प्रतापगढ़ की सभी विधानसभा की सीटों पर भी नहीं दिखता है। इसी तरह कैसरगंज से भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह का प्रभाव भी अपने क्षेत्र तक ही सीमित है।"
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