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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 6 नवंबर 2019 (10:29 IST)

पुलिस-वकील विवाद : 1988 की वो घटना जिससे दिल्ली के पुलिस वालों को याद आईं किरण बेदी

पुलिस-वकील विवाद : 1988 की वो घटना जिससे दिल्ली के पुलिस वालों को याद आईं किरण बेदी - Delhi police lawyer dispute
दिल्ली के तीस हज़ारी कोर्ट के बाहर वकीलों और पुलिसकर्मी की झड़प की घटना ने मंगलवार को देखते-देखते तूल पकड़ लिया। नाराज़ पुलिसकर्मी दिल्ली में अपने ही मुख्यालय के सामने धरने पर बैठ गए। वरिष्ठ अधिकारियों ने पुलिसकर्मियों को समझाने की कोशिश भी की, मगर वे 'वी वॉन्ट जस्टिस' के नारे लगाते रहे।
 
बांह में काली पट्टियां बांधकर आए पुलिसकर्मी अपने वरिष्ठ अधिकारियों से नाराज़ दिखे और जब कमिश्नर अमूल्य पटनायक वहां आए तो 'दिल्ली पुलिस कमिश्नर कैसा हो, किरण बेदी जैसा हो' के नारे भी सुनाई दिए। अभी पुडुचेरी की लेफ़्टिनेंट गवर्नर किरण बेदी 1972 में देश की पहली महिला पुलिस अधिकारी बनी थीं और उनकी पहली पोस्टिंग दिल्ली में ही हुई थी।
दिल्ली पुलिस में रहते हुए ट्रैफ़िक से लेकर जेल समेत कई ज़िम्मेदारियां संभालने के बाद किरण बेदी ने 2007 में डायरेक्टर जनरल (ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट) के पद से इस्तीफ़ा देकर पुलिस सेवा से स्वैच्छिक निवृत्ति ले ली थी।
 
किरण बेदी दिल्ली की कमिश्नर नहीं रहीं, फिर सवाल उठता है कि आख़िर क्यों कुछ पुलिसकर्मी 'दिल्ली का पुलिस कमिश्नर' किरण बेदी जैसा चाहने के नारे लगा रहे थे? दरअसल, पुलिसकर्मियों के इस नारे का संबंध आज से 32 साल पहले की एक घटना से है, जब किरण बेदी नॉर्थ डिस्ट्रिक्ट की डीसीपी थीं। उस समय भी पुलिस और वकीलों के बीच बड़े स्तर पर संघर्ष हुआ था।
 
यही कारण है कि 2015 में दिल्ली के विधानसभा चुनावों के दौरान जब भारतीय जनता पार्टी ने किरण बेदी को सीएम कैंडिडेट बनाया था, तब भी वकीलों ने 1988 के घटनाक्रम का हवाला देते हुए उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था।
1988 की घटना को लेकर जनवरी 2015 में किरण बेदी के विरोध में उनका पुतला फूंकते दिल्ली के वकील
1988 में जब किरण बेदी उत्तरी दिल्ली की डिप्टी कमिश्नर थीं, तब पुलिस ने उनके दफ़्तर के बाहर इकट्ठा दिल्ली बार एसोसिएशन के सदस्यों पर लाठीचार्ज कर दिया था।
 
ये वकील अपने एक साथी को चोरी के आरोप में पुलिस द्वारा हथकड़ी पहनाए जाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। लाठीचार्ज में कुछ वकील ज़ख्मी भी हुए थे। लेकिन यह पहली बड़ी घटना थी और इसके कुछ हफ़्तों बाद मामले ने नया मोड़ ले लिया था।
क्या हुआ था 1988 में, इस बारे में और जानकारी के लिए बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर ने बात की वरिष्ठ पत्रकार अजय सूरी से जिन्होंने उस समय 'द स्टेट्समन' अख़बार के लिए इस पूरे घटनाक्रम को रिपोर्ट किया था।
 
आगे पढ़ें, वरिष्ठ पत्रकार अजय सूरी की ओर से बताया गया ब्योरा, उन्हीं के शब्दों में-
 
1988 वाली घटना 2 भागों में है। पहले किरण बेदी डीसीपी ट्रैफ़िक थीं, मगर बाद में डीसीपी नॉर्थ डिस्ट्रिक्ट बन गई थीं। पहले तो यह हुआ कि जनवरी में वकीलों का एक समूह किरण बेदी के दफ़्तर के बाहर इकट्ठा होकर प्रदर्शन कर रहा था। पुलिस ने इनके ऊपर लाठीचार्ज कर दिया।
 
बाद में किरण बेदी ने बयान दिया था कि ये लोग बेहद आक्रामक थे और हमला भी कर सकते थे इसलिए पुलिस को यह कार्रवाई करनी पड़ी। पहले वकीलों के ऊपर पुलिस के लाठीचार्ज की यह घटना हुई और फिर उसके कुछ हफ़्तों के बाद तीस हज़ारी कोर्ट परिसर में क़रीब 3 से 4 हज़ार लोगों की भीड़ ने वकीलों पर हमला कर दिया।
 
बाद में वकीलों ने आरोप लगाया कि ये पुलिस के लोग थे, मगर पुलिस ने इसे खंडन किया था। बाद में वकीलों की ओर से कहा गया कि हमला करने वाले ये लोग पुलिस की शह पर वहां आए थे।
 
सुर्ख़ियों में रहा था मामला
 
उस समय इस मामले ने भी अच्छा-ख़ासा तूल पकड़ा था। काफ़ी समय तक कोर्ट में काम नहीं हो पाया था। मामला बढ़ता देख केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पड़ताल के लिए जस्टिस एनएन गोस्वामी और जस्टिस डीपी वाधवा कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी की सुनवाइयों को मीडिया ने भी काफ़ी कवर किया था।
 
उस समय दोनों पक्षों की ओर काफ़ी दिग्गज वकीलों ने सुनवाइयों में हिस्सा लिया था जिनमें भारत के वर्तमान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल भी शामिल थे। क़रीब 1 साल से अधिक समय तक सुनवाई हुई, मगर इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला।
 
इस बार की घटना अलग
 
1988 में पहली बार ऐसा हुआ था, जब वकीलों और पुलिस के बीच दरार इस तरह से उभरकर आई थी। अब हुई ये घटना भी उसी तरह की है, फिर भी दोनों की तुलना नहीं की जा सकती। इसका कारण यह है कि 1988 में जो हुआ था, वह भीड़ द्वारा किया गया एक पूर्व नियोजित हमला था। लेकिन इस बार पार्किंग को लेकर हुई एक मामूली घटना ने बाद में बड़ा रूप ले लिया।
 
अब बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने भी बयान जारी किया है और कहा है कि हमला करने वाले वकीलों की पहचान करनी चाहिए ताकि उनकी वजह से पूरे बार की छवि ख़राब न हो। साथ ही पहली बार शायद ऐसा हुआ है, जब सैकड़ों की तादाद में पुलिसकर्मियों ने इंडिया गेट और पुलिस मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन किया है। वे कह रहे हैं कि किरण बेदी जैसा पुलिस कमिश्नर होना चाहिए। पुलिस के अंदर ऐसा माहौल पैदा हो जाना, इस मामले का सबसे गंभीर पहलू है।
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