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Last Updated : गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015 (12:14 IST)

अगर मोदी इंद्रप्रस्थ का युद्ध हार गए तो!

अगर मोदी इंद्रप्रस्थ का युद्ध हार गए तो! - Delhi assembly elections 2015
- सिद्धार्थ वरदराजन वरिष्ठ पत्रकार

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए जैसे-जैसे अरविंद केजरीवाल का चुनाव अभियान आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे भारतीय जनता पार्टी और उसके राष्ट्रीय नेतृत्व की बेचैनी जाहिर हो रही है। भाजपा के स्थानीय नेताओं में से कई लोग किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने के हाईकमान के तरीके से नाराज हैं।

और उनमें से कई पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह को इस चुनाव में लगे दांव का एहसास है। पढ़ें विस्तार से...

वे आम आदमी पार्टी को चुनाव जीतने से रोकने की हर कोशिश कर रहे हैं। अभी तक मोदी के नाम, पैसे की ताकत और कीचड़ उछालने के खेल का सहारा लिया गया, लेकिन इससे मन मुताबिक नतीजे नहीं निकल पाए हैं।

विज्ञापनों की बमबारी के बाद प्रधानमंत्री के चुनाव अभियान में आम आदमी पार्टी के खिलाफ 'आधी रात में हवाला' का आरोप लगाया गया, लेकिन इसके बावजूद 'आप' सभी चुनाव सर्वेक्षणों में आगे है। लेकिन सवाल उठता है कि भाजपा की विजयकथा में आखिर गलती कैसे हो गई? आखिरकार दिसंबर 2013 में दिल्ली चुनावों में उसने सबसे अधिक संख्या में सीटें जीती थीं।

चुनाव प्रचार : लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को सभी सात सीटों पर जीत मिली थी। मोदी की लोकप्रियता और प्रतिष्ठा के मद्देनजर ये चुनाव पार्टी के लिए बहुत आसान होना चाहिए था। खासकर तब 'आप' को गलत सलाह पर मुख्यमंत्री पद से अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे का खामियाजा भुगतना पड़ा था।

49 दिनों के बाद अरविंद ने जब सरकार छोड़ी, पार्टी और शासन करने की उसकी काबिलियत के बारे में लोगों की एक राय बनी। और अब जब भाजपा को चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में ये लड़ाई मुश्किल लग रही है तो इसके लिए वो खुद जिम्मेदार है।

एलजी पर रसूख!
मोदी और अमित शाह ने जो सबसे बड़ी गलती की वो ये कि उन्होंने विधानसभा का चुनाव कराने में देर की। और वो भी तब जब ये साफ था कि 'आप' और कांग्रेस को तोड़े बगैर कोई सरकार नहीं बन सकती थी। लेकिन भाजपा ने लेफ्टीनेंट गवर्नर पर अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए मामले को लम्बा खींचा।

इससे भाजपा को किस फायदे की उम्मीद थी, ये साफ नहीं है, लेकिन इतना तय है कि 'आप' को एक लड़ाका ताकत के रूप में खुद को फिर से स्थापित करने में मदद मिल गई।

'मोदी लहर' : हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में मिली चुनावी जीत के उत्साह से लबरेज भाजपा ने तब दूसरी गलती की। उसने मुख्यमंत्री पद का कोई सशक्त उम्मीदवार पेश करने के बदले 'मोदी लहर' पर भरोसा किया। हालांकि महाराष्ट्र में यह रणनीति बहुत कारगर नहीं रही।

यहां पार्टी बहुमत से फासले पर रह गई या झारखंड में उसे ऑल-झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन से गठबंधन करना पड़ा। लेकिन हरियाणा के नतीजे ने दिल्ली पर कब्जा करने के पार्टी के इरादे को हिम्मत दे दी।

चेहराविहीन अभियान!
दिल्ली में भाजपा के पास पहले से ही मुख्यमंत्री पद के लिए एक मजबूत और भरोसेमंद उम्मीदवार हर्षवर्धन थे। लेकिन इस बार पार्टी ने चेहराविहीन अभियान का सहारा लिया और 'मोदी सरकार' के करिश्मे पर भरोसा किया।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार में मोदी की पहली रैली पर उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली तो पार्टी को लगा कि यह रणनीति असफल होने वाली है। और फिर पार्टी ने रास्ता बदला और केजरीवाल की अपील का जवाब देने के लिए एक स्थानीय भरोसेमंद चेहरे को लाने का फैसला किया।

मास्टर स्ट्रोक!
किरण बेदी को आगे लाने का फैसला पहली नजर में तो 'मास्टर स्ट्रोक' कहा गया। लेकिन इस पूर्व पुलिस अधिकारी के चुनावी अभियान में कदम रखते ही ये साफ हो गया कि उनका आकर्षण पार्टी के पारंपरिक मध्यवर्गीय वोट बैंक तक ही सीमित है।


और फिर उनकी कुछ हास्यास्पद बातों ने पार्टी के मध्यवर्ग के समर्थकों को भी दूर कर दिया और उनके शाही रवैए के कारण पार्टी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं को भी कठिनाई होने लगी। भाजपा ने तीसरी गलती को दुरुस्त करने के लिए चौथी गलती कर दी।

हवाला का आरोप : मोदी और पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं ने केजरीवाल पर निजी हमले शुरू कर दिए और 'आप' पर पैसे की अवैध लेन देन और हवाला का आरोप लगाया। इन आरोपों में सच्चाई हो सकती थी, अगर भाजपा ने खुद अपने घोषित चंदे के साठ फीसदी से भी अधिक रकम के स्रोतों का ब्यौरा दिया होता।

प्रवर्तन निदेशालय, इनकम टैक्स विभाग और रेवेन्यू इंटेलीजेंस निदेशालय की ओर से किसी कार्रवाई के बगैर दिल्ली में कई ऐसे लोग हैं जो इन आरोपों को बदनाम करने के अभियान के तौर पर देखेंगे। पिछले अप्रैल में 'आप' को दो करोड़ रुपए का चंदा देने वाली कथित फर्ज़ी कंपनियों की जांच की जिम्मेदारी इन्हीं सरकारी एजेंसियों पर थी।

सत्ता विरोधी रुझान : मुमकिन है कि मोदी कार्ड के उल्टे परिणाम भी जाएं क्योंकि हर चौराहे पर, हर अखबार में प्रधानमंत्री का चेहरा और रेडियो पर उनकी आवाज सुनकर मतदाता थक रहे हैं। दिल्ली के चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां एक विशुद्ध राजनीतिक मुकाबला हो रहा है।

भाजपा के सामने एक ऐसी राजनीतिक पार्टी है जो मजबूत है और जिसे भ्रष्टाचार के आरोपों में खारिज भी नहीं किया जा सकता है और जिसे सत्ता विरोधी रुझान का भी सामना नहीं करना पड़ रहा है। अगर आम आदमी पार्टी जीतती है तो ये एक राजनीतिक मॉडल स्थापित हो जाएगा और जो देश के किसी और हिस्से में भी उभर सकता है।

मोदी अभी तक अपराजित रहे हैं, 2002 के बाद हर चुनाव जीत रहे हैं। लेकिन अगर मोदी इंद्रप्रस्थ का युद्ध हार गए तो उनकी अपराजेय वाली छवि धूमिल हो जाएगी, जो उन्होंने पिछले 12 सालों से बना रखी है।