भारत के कई राज्यों में म्यूकरमाइकोसिस या ब्लैक फ़ंगस के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली एक एंटी फ़ंगल दवा की कमी पड़ गई है। एम्फ़ोटेरिसिन बी नाम की ये दवा भारत की कई कंपनियां बनाती हैं, लेकिन अब ये दवा ब्लैक मार्केट में मिल रही है। कोरोना संक्रमण के बीच म्यूकरमाइकोसिस के मामले बढ़ रहे हैं और सोशल मीडिया में इस दवा के लिए इमरजेंसी अपील की जा रही है।
डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना के गंभीर मरीज़ों में स्टेरॉयड्स के बढ़ते इस्तेमाल के कारण ये संक्रमण होता है।
म्यूकरमाइकोसिस एक बेहद दुर्लभ संक्रमण है। ये म्यूकर फफूंद के कारण होता है जो आमतौर पर मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्ज़ियों में पनपता है।
ये साइनस, मस्तिष्क और फेफड़ों को प्रभावित करता है और ये डायबिटीज़ वाले लोगों या जिनकी इम्युनिटी कम है जैसे कैंसर या एचआईवी/एड्स से प्रभावित लोग, उनके लिए ये काफ़ी ख़तरनाक हो सकता है।
कई प्रभावित लोग इलाज के लिए देर से आ रहे हैं और उनकी आंखों की रोशनी जाने लगी है। ऐसी स्थिति में डॉक्टरों को सर्जरी करके आंख निकालनी पड़ रही है ताकि संक्रमण मस्तिष्क तक न पहुंचे।
पिछले सप्ताह महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा था कि राज्य में म्यूकरमाइकोसिस के 1500 मामले हैं। महाराष्ट्र कोरोना की दूसरी लहर में भारत के सबसे प्रभावित राज्यों में से एक था।
राज्य के एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया था कि पिछले साल से अब तक राज्य में म्यूकरमाइकोसिस के कारण 52 लोगों की जान गई है।
मांग में तेज़ी
इस इंजेक्शन की कमी के कारण लोग ट्विटर पर आकर अपील कर रहे हैं। ऐसी अपील बड़ी संख्या में लोग कर रहे हैं।
कौन सी हैं दवाएं
डॉक्टरों का कहना है कि म्यूकरमाइकोसिस से पीड़ित मरीज़ों को एम्फ़ोटेरिसिन बी या एम्फ़ो बी इंजेक्शन आठ सप्ताह तक हर दिन देना होता है।
ये दवा दो रूपों में उपलब्ध है- स्टैंडर्स एम्फ़ोटेरिसन बी डीऑक्सीकोलेट और लिपोसोमल एम्फ़ोटेरिसिन।
मुंबई स्थित आंखों के सर्जन डॉक्टर अक्षय नायर ने बीबीसी को बताया, 'हम लिपोसोमल को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि ये सुरक्षित है, ज़्यादा प्रभावी है और इसके साइड इफ़ेक्ट्स भी कम हैं। लेकिन इसका एक पक्ष ये भी है कि ये ज़्यादा महंगी है।'
म्यूकरमाइकोसिस को लेकर बढ़ती चिंता के कारण कुछ परिवारों पर अतिरिक्त वित्तीय दवाब भी बढ़ रहा है। एक तो इलाज के लिए लोगों को लाखों रुपए ख़र्च करने पड़ रहे हैं। इस दवा के ब्लैक मार्केट में मिलने का मतलब है- इसके लिए भी ज़्यादा पैसे देना।