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Written By BBC Hindi
Last Updated : गुरुवार, 21 दिसंबर 2023 (07:57 IST)

राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा: अयोध्या और उसके वासी कितने हैं तैयार

राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा: अयोध्या और उसके वासी कितने हैं तैयार - Ayodhya ram mandir opening : How prepared are Ayodhya and its residents?
नितिन श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता, अयोध्या से लौटकर
अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का काम-काज देखने वाले श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने आगामी 22 जनवरी को होने वाली प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी में न्योते देने शुरू कर दिए हैं।
 
इस बीच मंदिर के गर्भ गृह के निर्माण का काम चौबीसों घंटे चल रहा है, जिससे समय रहते इसे पूरा किया जा सके क्योंकि प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश-विदेश से वीवीआईपी अतिथियों के आने की उम्मीद है।
 
नए मंदिर के लिए पुजारियों का चयन भी जारी है। पहले चरण में आई 300 अर्ज़ियों में से 21 पुजारियों को शॉर्ट लिस्ट किया गया है, जिनकी ट्रेनिंग चल रही है। इन्हीं पुजारियों में से अयोध्या में राम मंदिर के पुजारी चुने जाएंगे।
 
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श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने बीबीसी को बताया, “ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद सनातन धर्म, वेदों और शास्त्रों पर उनके ज्ञान की परीक्षा ली जाएगी। कुछ को ही ये नौकरी मिलेगी जबकि दूसरे युवकों को देश के अलग-अलग मंदिरों में भेजा जाएगा।”
 
राम मंदिर कमेटी ने वाराणसी के दो पुजारियों के नाम की घोषणा भी कर दी है, जो जनवरी में होने वाली प्राण प्रतिष्ठा की अगुवाई करेंगे।
 
चंपत राय ने आगे बताया, “अयोध्या के कर्मकांडी ब्राह्मण भी लक्ष्मीकांत दीक्षित और गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ का नाम सुनकर कहेंगे कि वो हमारे भी गुरु हैं। काशी सदा-सर्वदा से विद्वानों की नगरी रही है, जबकि अयोध्या लंबे समय से उपेक्षित है।”
 
“काशी के विद्वानों के समान हो सकता है कोई एक-आध हों यहां अयोध्या में, हम उसको नकार नहीं रहे हैं। लेकिन अभी जो फ़ैसला हुआ है, वो यही है कि काशी के विद्वान गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ और लक्ष्मीकांत दीक्षित ही प्राण प्रतिष्ठा करवाएंगे।”
 
हालांकि राम मंदिर कमेटी की इस फ़ैसले पर अयोध्या के कुछ स्थानीय महंतों और पुजारियों ने हैरानी जताई है कि 22 जनवरी को होने वाली प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्रमुख पुजारी, हज़ारों मंदिरों वाले शहर अयोध्या से क्यों नहीं चुने गए।
 
अयोध्या की हनुमान गढ़ी के प्रमुख महंत, महंत धरमदास के गुरु बाबा अभिराम दास ने साल 1949 में राम लला की मूर्ति विवादित ढांचे में रखी थी।
 
महंत धरम दास ने कहा, “कोई पुजारी आ रहा है पूजा कराने, तो कैसे कराएगा, ये तो हम लोग देखेंगे ही। अब यहां के लोगों को भी शामिल करना चाहिए। भाई प्रतिष्ठा तो सबको देनी है, आपको-हमको।”
 
“अब नहीं कर रहे हैं, वहीं के लोग आकर कर रहे हैं, इतना तो बड़ा कोई काम रहता नहीं है उसमें। एक रहता है आचार्य, ब्रह्मा का और पुजारी वो बनकर पूजा करते हैं। भगवान की प्रतिष्ठा होती है, इसमें बहुत कुछ नहीं है। और पहले से ही वो प्रतिष्ठित मूर्ति है, जिस मूर्ति के नाम से सुप्रीम कोर्ट ऑर्डर हुआ है। चलिए ये अच्छा है, लेकिन हो जाए।”
 
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद साल 2020 में राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत हुई थी। 67 एकड़ वाले विशाल परिसर की पूरी तरह सफ़ाई कराने के बाद उसमें से दो एकड़ ज़मीन को मंदिर के लिए चुना गया था।
 
हज़ारों करोड़ की लागत से बनने वाले इस नए राम मंदिर के गर्भ गृह का निर्माण अब अपने अंतिम चरण में है।
 
लाखों श्रद्धालु यहां पिछले कई महीनों से आ रहे हैं और न सिर्फ़ रुपए का, बल्कि सोने-चांदी का चढ़ावा भी चढ़ा रहे हैं, जिसके लिए मंदिर परिसर के निकट बैंककर्मियों की तैनाती हो चुकी है।
 
धन्नीपुर में बनने वाली मस्जिद का हाल
निर्माणाधीन राम मंदिर स्थान से क़रीब 22 किलोमीटर दूर, धन्नीपुर गाँव में, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जिस मस्जिद का निर्माण होना है अभी उसके लिए फंड जुटाए जा रहे हैं और जल्द ही काम शुरू होने की उम्मीद है।
 
वैसे राम मंदिर निर्माण के साथ ही अयोध्या- जो पहले फ़ैज़ाबाद ज़िले में आता था- में बदलाव की आंधी सी आ गई दिखती है।
 
सरयू नदी के घाटों को दोबारा बनाया गया है, नई सड़कें और नई जल निकासी व्यवस्था (सीवरेज) भी बिछाई गई है और नए एयरपोर्ट पर भी काम जारी है। इस पूरी मुहिम में मुआवज़ा देने के बाद क़रीब ढाई हज़ार घरों को भी तोड़ा गया।
 
नए राम मंदिर के जिस मुख्य द्वार का निर्माण जारी है उसके सामने वाली सड़क पर पहले चाय-नाश्ते की दुकानें थीं जिनको निर्माण कार्य के चलते तोड़ा गया था।
 
39 वर्षीय दुर्गा प्रसाद गुप्ता की भी ऐसे ही एक दुकान थी जिसका उन्हें मुआवज़ा भी दिया गया। अब वे उसी जगह के बग़ल में चाय-पकौड़ी का ठेला चलाते हैं।
 
उन्होंने बताया- “पहले और अब में फ़र्क़ ये है कि यहां विकास हो रहा है, सड़क किनारे पटरियां बन रही हैं, साहब। अब यहां आने वाले समय में बहुत भीड़-भाड़ होगी लेकिन बहुत समस्या भी हो जाएगी। इसलिए हमारी दुकान चौड़ीकरण में चली गई। अब यहां ठेला लगाकर अपना गुज़ारा कर रहे हैं किसी तरह, परिवार है, उसको पालना-पोसना भी पड़ता है जो ठेले से नहीं पूरा होता।”
 
विकास योजनाओं के नाम पर क्या हो रहा है
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह चुके हैं कि केंद्र और राज्य सरकार मिलकर अयोध्या में 30,000 करोड़ से भी ज़्यादा के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट शुरू कर चुके हैं।
 
अब शहर में चमचमाते होटल और हाइवे तो दिखते हैं लेकिन प्राचीन अयोध्या में सालों से रहने वालों की उम्मीद कुछ और भी है।
 
राम घाट के पास मौजूद 150 साल पुराने पटना मंदिर के पुजारी आशीष कृष्ण शास्त्री ने कहा, “सरकार से अनुरोध करना चाहेंगे कि ये जो जगह-जगह होटल बनवा रहे हैं, जो इमारतें बनवा रहे हैं, सड़क इधर-उधर तोड़कर करके जो मेन रोड बना रहे हैं वो तो चलिए ठीक हो रहा है। लेकिन यदि अयोध्या के पुराने मंदिरों, जो हमारा इतिहास है, यदि उसको मज़बूत कर दिया जाए, तो बहुत-बहुत धन्यवाद होगा सरकार को हमारी तरफ़ से।”
 
अयोध्या जितनी बाहर से दिखती है, उससे कहीं ज़्यादा गहरी भीतर से हैं। दर्जनों गलियों में बसे प्राचीन मंदिर और धर्मशालाएं आज भी दीन-दुनिया से परे, राम-नाम में लीन हैं।
 
सीता कुंड के पास बने राम-बिहारी मंदिर के भीतर डेढ़ घंटे तक कीर्तन करके मिलने आए पुजारी गोस्वामी जी से हमने पूछा, “क्या आपके यहां भी आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी है?”
 
पुजारी गोस्वामी का जवाब था, “आप ही पहली बार ये सब बात पूछ रहे हैं, और कोई ये सब नहीं पूछता था। क्या स्थिति है, क्या रहा, क्या हुआ? परिवर्तन है, फ़लाना है? सब अपना-अपना दुम सीधा करके चलते हैं। पहले तो कुछ साधुओं को पेंशन मिलती थी, अब सब साधु लोगों की पेंशन बंद हो गई है। पेंशन के लिए अप्लाई करते हैं तो सुनते हैं अब साधु को नहीं मिलेगी। तो बुढ़ापे का क्या सहारा?”
 
रामलला के दर्शन के लिए लोगों की भीड़
इसी अयोध्या की एक हक़ीक़त ये भी है कि जब से राम मंदिर के निर्माण का कार्य शुरू हुआ है और एक अस्थाई स्थान पर राम लला की मूर्ति रखी गई है, तब से दर्शन करने वालों का तांता लगा हुआ है।
 
दिल्ली से दर्शन करने पहुँची निर्मला कुमारी से निर्माणाधीन मंदिर परिसर के बाहर मुलाक़ात हुई।
 
उन्होंने कहा, “बहुत अच्छा लग रहा है, एक अच्छी सी फ़ीलिंग हो रही है अंदर से। बच्चे साथ नहीं आ पाए, तो बड़ा दुःख हुआ इस चीज़ का। लेकिन हमने बच्चों को वीडियो कॉल करके जगह-जगह दिखाया है सब कुछ। हमने यहां की मिट्टी ली है, बल्कि उसका टीका भी लगाया है, थोड़ा सा वहां दिल्ली भी लेकर जाएंगे... ये रही मिट्टी।”
 
बहस इस बात पर भी जारी है कि क्या जनवरी 2024 में राम मंदिर में होने वाली प्राण प्रतिष्ठा के लिए भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश के प्रधानमंत्री का इसमें भाग लेना सही है।
 
कई राष्ट्रीय विपक्षी पार्टियों ने इसे आम चुनाव के साल से जोड़कर भी देखा है। समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश महासचिव और पूर्व राज्य मंत्री जयशंकर पांडे को लगता है, “सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी राम के नाम पर वोट की राजनीति कर रही है।”
 
उन्होंने कहा, “आज नहीं तो कल जनता समझेगी और जनता समझ रही है। सनातन धर्म सबका है, मर्यादा पुरुषोत्तम राम सबके हैं। महात्मा गांधी ने राम राज्य की कल्पना ही की थी। लेकिन समाज में भाजपा ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि राम मंदिर का निर्माण वही करवा रही है। जबकि लाखों हिंदुओं ने बिना किसी राजनीति से प्रेरित होकर नए मंदिर के लिए दान किया है।”
 
लेकिन भारतीय राजनीति के इतिहास पर गौर करने से पता चलता है कि 1947 में ब्रितानी हुकूमत से आज़ादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के बीच इसी तरह के एक मामले पर अलग-अलग राय थी।
 
सरदार पटेल की अगुवाई में गुजरात के सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण जब पूरा हुआ तो पटेल की मृत्यु हो चुकी थी। लेकिन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, पंडित नेहरू की राय न मानते हुए उस कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
 
अयोध्या से भाजपा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता इन “आरोपों का खंडन” करते हुए कहते हैं, “प्रधानमंत्री क्यों आ रहे हैं ये तो प्रश्न ही नहीं है। प्रश्न ये है कि अयोध्या को विश्वस्तरीय नगरी बनाने के काम के साथ पूरे पूर्वांचल का भी विकास हो रहा है।”
 
“इसका उदाहरण काशी में भी सबने देखा है। वहां का व्यापारी प्रसन्न है, शहर में स्वच्छता है, गलियां साफ़ हैं। तो यदि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री आ रहे हैं, तो निश्चित रूप से उसका लाभ वहां के स्थानीय लोगों को पता है। और विरोध की जो राजनीति है वो हर चीज़ को, पॉज़िटिव बात को भी नेगेटिव में बदलने का काम करते हैं।”
 
अयोध्या बदलती जा रही है, तेज़ी से। निवेश आ रहा है, भक्त आ रहे हैं। नए राम मंदिर बनने में अभी समय और लगेगा। समय इतिहास को ये दर्ज करने में भी लगेगा कि इस कदम ने यहां के लोगों के लिए क्या बदला?
 
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त, 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी थी।
 
दरअसल, साल 1992 में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था, जिसके बाद हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के बीच पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में एक लंबी क़ानूनी लड़ाई चली।
 
आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2019 में एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि अयोध्या में विवादित भूमि पर मंदिर बनाया जाएगा।
 
साथ ही अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि नई मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को पाँच एकड़ की वैकल्पिक ज़मीन मुहैया कराई जाए।
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