गीता पांडेय (बीबीसी न्यूज़ संवाददाता)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कोविड-19 के संभावित इलाज के तौर पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा की मांग करने के बाद भारत सरकार ने इस दवा के निर्यात का फ़ैसला किया है। लेकिन, भारत सरकार के इस फ़ैसले ने ऐसे कई लोगों के मन में चिंता पैदा कर दी है।
एचसीक्यू मलेरिया रोकने की दवा है। इसे रूमेटॉयड आर्थराइटिस और ल्यूपस जैसी ऑटो-इम्यून बीमारियों के इलाज में भी इस्तेमाल किया जाता है। इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) कोविड-19 के इलाज में कारगर है। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने कोरोना वायरस से जंग में इसे गेमचेंजर बताया है।
जॉन हॉपकिंस ल्यूपस सेंटर ने इसे ल्यूपस लाइफ़ इंश्योरेंस के तौर पर परिभाषित किया है। भारत में हर रोज़ हजारों लोग इस दवा को लेते हैं। लेकिन अब यह दवा काफ़ी सुर्ख़ियां बटोर रही है। भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने कहा है कि देश के भीतर इस्तेमाल के लिए ये दवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। लेकिन भारत में मरीज़ पिछले एक पखवाड़े से इस दवा को लेकर परेशान हो रहे हैं। केमिस्ट शॉप्स से यह दवा ग़ायब हो रही है।
केमिस्ट शॉप्स से ग़ायब हो रही दवा
कोलकाता की रहने वाली बरनाली मित्रा ल्यूपस पीड़ित हैं और पिछले 17 साल से रोज़ इस दवा की 200 एमजी ले रही हैं। वह इस दवा को लाइफ़सेविंग ड्रग बताती हैं। उन्होंने फ़ोन पर बताया, 'इसकी वजह से ही मेरे हाथ-पांव चल पाते हैं।'
हाल तक मित्रा को दवा काउंटरों पर यह मिल रही थी, लेकिन पिछले हफ़्ते से अधिकारियों ने कह दिया कि बिना डॉक्टर के पर्चे के बिना हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की बिक्री नहीं की जा सकेगी। यहां तक कि कोई भी शख्स पर्चे पर भी इस दवा का केवल 1 पत्ता (10 टैबलेट्स वाला) ही ले सकेगा।
आसपास के कई स्टोर्स खंगालने और ऑनलाइन ऑर्डर करने के बाद मित्रा 20 टैबलेट्स हासिल कर पाने में सफल रहीं। लेकिन इसके बाद क्या होगा यह सोचकर वह चिंतित हैं।
वह कहती हैं, 'मैं इतनी बेचैन हूं कि मेरे पूरे चेहरे पर चकत्ते हो गए हैं। मेरे डॉक्टर ने मुझे शांत रहने की सलाह दी है। लेकिन दवा की तलाश में एक स्टोर से दूसरे स्टोर के चक्कर लगाने के बारे में सोचकर मेरा दिल कांप जाता है।'
भारत एचसीक्यू का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरर
भारत हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का दुनिया में सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरर है। हाल में ही भारत ने इस दवा का निर्यात रोक दिया था। सरकार ने कहा था कि देशवासियों को इसकी पहले जरूरत है। लेकिन मंगलवार को सरकार ने इसके निर्यात पर लगा बैन हटा दिया और कहा कि वह कोरोना वायरस से बुरी तरह से प्रभावित देशों को इसकी सप्लाई करेगा।
सरकार ने यह भी कहा कि इस महामारी से जूझ रहे पड़ोसी देशों को भी यह दवा मुहैया कराई जाएगी। सरकार के इस फै़सले ने मित्रा जैसे तमाम दूसरे मरीज़ों के माथे पर चिंता की लकीरें पैदा कर दी हैं। उन्हें लग रहा है कि पहले से मुश्किल से मिल पा रही इस दवा को हासिल करना उनके लिए और मुश्किलभरा न हो जाए।
हालांकि इंडियन फ़ार्मास्युटिकल एसोसिएशन (आईपीए) ने कहा है कि भारतीयों को इस दवा की कमी को लेकर परेशान नहीं होना चाहिए। आईपीए के प्रेसिडेंट प्रोफ़ेसर टीवी नारायण ने बीबीसी को बताया, 'इस तरह की खबरों के आने के बाद कि यह दवा कोविड-19 के इलाज में काम आती है, लोगों ने इसकी ख़रीदारी और स्टॉक करना शुरू कर दिया। इस वजह से यह दुकानों से ग़ायब हो गई।'
उन्होंने कहा, 'यह शॉर्टेज अस्थायी है, क्योंकि सरकार लोगों को हड़बड़ाहट में इसकी ख़रीदारी करने से रोक रही है। बिना डॉक्टर के प्रेस्क्रिप्शन के इसे लेना ख़तरनाक हो सकता है।'
इप्का और ज़ायडस कैडिला बड़े मैन्युफैक्चरर
टीवी नारायण ने कहा, 'भारत में इप्का लैब्स और ज़ायडस कैडिला इस दवा के मुख्य मैन्युफैक्चरर हैं। ये दोनों कंपनियां हर दिन इसकी 15 लाख टैबलेट्स बना सकती हैं। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के लिए कच्चा माल देश में ही मिल जाता है और हमारे पास पर्याप्त स्टॉक भी है। इप्का लैब्स के पास ही 5 करोड़ टैबलेट्स का स्टॉक है। ज्यादातर राज्यों के पास भी 10-20 लाख टैबलेट्स का स्टॉक है। ऐसे में शॉर्टेज का कोई सवाल नहीं है।'
प्रोफ़ेसर नारायण ने कहा कि अमेरिका ने 3 करोड़ टैबलेट्स की मांग की है। इस अनुरोध को आसानी से पूरा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जिन भारतीयों को डॉक्टरों ने एचसीक्यू लेने की सलाह दी है, उन्हें इसकी रोज़ाना की डोज़ हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं होगी, हालांकि कुछ दिनों के लिए थोड़ी मुश्किल हो सकती है।
बेंगलुरु में रहने वाली वरिष्ठ पत्रकार कल्पना शाह कहती हैं कि वह दर्द से बचने के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन पर निर्भर हैं। शाह के मुताबिक, 'अगर मैं दिन में दवा न ले पाऊं तो मेरे जोड़ों में दर्द होने लगता है और मेरी उंगलियों में झुनझुनी होने लगती है जिससे मुझे चीजें पकड़ने में मुश्किल होती है।'
शाह पिछले 4 साल से यह दवा ले रही हैं। वह रूमेटॉयड अर्थराइटिस की मरीज़ हैं। वह भी डरी हुईं हैं, क्योंकि उनके शहर में भी यह दवा अब मिल नहीं रही है। वह कहती हैं, 'मेरे पास 20 दिन की दवा है। इसके बाद क्या होगा? मेरे पड़ोस के केमिस्ट का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि यह दवा कब आएगी?'
शाह कहती हैं कि उन्होंने अब 1 दिन छोड़कर यह दवा लेना शुरू कर दिया है ताकि दवाई ज्यादा दिनों तक चल सके। शाह कहती हैं कि इस तरह के कोई प्रामाणिक अध्ययन नहीं हैं जिनमें कहा गया हो कि एचसीक्यू कोविड-19 के इलाज में कारगर है।
वह कहती हैं, 'अगर मुझे पता होता कि यह कोरोना के इलाज में प्रभावी है तो लोगों के हित में मैंने इसका इस्तेमाल छोड़ दिया होता। इस दवा को न लेने से मैं मर नहीं जाऊंगी, लेकिन यह मेरी लाइफ़ की क्वालिटी पर बुरा असर डालेगा।'