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Last Modified: बुधवार, 1 मार्च 2017 (14:29 IST)

गुजरात का वाडियाः जहां सजती है देह की मंडी

गुजरात का वाडियाः जहां सजती है देह की मंडी - गुजरात का वाडियाः जहां सजती है देह की मंडी
- अंकुर जैन (अहमदाबाद से)
बीते 80 सालों से भी ज़्यादा अरसे से ये रिवाज गुजरात के इस गांव में बदस्तूर जारी है। इस गांव में पैदा होने वाली लड़कियां वेश्यावृत्ति के धंधे को अपनाने के लिए एक तरह से अभिशप्त हैं। 
तक़रीबन 600 लोगों की आबादी वाले इस गांव की लड़कियों के लिए देह व्यापार के पेशे में उतरना एक अलिखित नियम सा बन गया है। यह गुजरात के बांसकांठा ज़िले का वाडिया गांव है। इसे यौनकर्मियों के गांव के तौर पर जाना जाता है। इस गांव में पानी का कोई कनेक्शन नहीं है, कुछ ही घरों में बिजली की सुविधा है, स्कूल, बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं और सड़कें तक नहीं हैं।
 
साफ़ सफ़ाई जैसी कोई चीज़ इस गांव में नहीं दिखाई देती लेकिन ये वो विकास नहीं हैं, जो इस गांव की औरतें चाहती हैं। वे ऐसी ज़िंदगी की तलबगार हैं जिसमें उन्हें किसी दलाल या ख़रीदार की ज़रूरत न पड़े। वाडिया की औरतों का उस भारत से कोई जुड़ाव नहीं दिखाई देता जिसने हाल की मंगल के लिए एक उपग्रह छोड़ा है। भारत के विकास की कहानी का इन औरतों के लिए केवल एक ही मतलब है कि अब उनके ज़्यादातर ग्राहक कारों में आते हैं। पिछले साठ सालों से वे यही ज़िदगी जी रही हैं।
 
तवायफ़ों का गांव : गुजरात की राजधानी गांधीनगर से क़रीब 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये वाडिया गांव बीते कई दशकों से देह व्यापार से जुड़ा हुआ है। गांव के ज़्यादातर मर्द दलाली करने लगे हैं और कई बार उन्हें अपने परिवार की औरतों के लिए खुलेआम ग्राहकों को फंसाते हुए देखा जा सकता है। इस गांव के बाशिंदे ज़्यादातर यायावर जनजाति के हैं। इन्हें सरनिया जनजाति कहा जाता है।
 
माना जाता है कि ये राजस्थान से गुजरात आए थे। सनीबेन भी इस सरनिया जनजाति की हैं। उनकी उम्र कोई 55 साल की होगी और अब वह यौनकर्मी नहीं है। पड़ोस के गांव में छोटे-मोटे काम करके वह अपना गुजारा करती हैं। वह कहती हैं, "मैं तब दस बरस की रही होउंगी जब यौनकर्मी बनी थी। ख़राब स्वास्थ्य और ढलती उम्र की वजह से मैंने यह पेशा अब छोड़ दिया है।"
 
सनीबेन की तरह ही सोनीबेन ने भी उम्र ढल जाने के बाद यह पेशा छोड़ दिया। उन्होंने कहा, "मैं 40 बरस तक सेक्स वर्कर रही। अब मेरी उम्र हो गई है और गुज़ारा करना मुश्किल होता जा रहा है।" सनीबेन और सोनीबोन दोनों ही ये कहती हैं कि उनकी मां और यहां तक कि उनकी मां की मां ने भी शादी नहीं की थी और इसी पेशे में थीं।
 
गर्भ निरोध : सोनीबेन कहती हैं, "वाडिया में कई ऐसे घर थे और अब भी हैं, जहां मां, मां की मां और बेटी तीनों के ही ग्राहक एक ही घर में एक ही वक़्त में आते हैं।" उन्होंने बताया, "हमारे दिनों में बच्चा गिराना आसान काम नहीं था। इसलिए ज़्यादातर लड़कियों को 11 बरस की उम्र होते-होते बच्चे हो जाते थे लेकिन अब औरतें बिना किसी हिचक के गर्भ निरोधक गोलियां लेती हैं और बच्चा गिरवाती भी हैं।"
 
हालांकि सोनीबेन का कहना है, "वाडिया की औरतों के लिए यौनकर्मी बनने के अलावा कोई और उपाय नहीं रहता है। उन्हें कोई काम भी नहीं देता है। अगर कोई काम दे भी देता है तो वह सोचता है कि हम उसे काम के बदले ख़ुद को सौंप देंगे।"

रमेशभाई सरनिया की उम्र 40 साल है और वह वाडिया में किराने की एक दुकान चलाते हैं। रमेशभाई के विस्तृत परिवार के कुछ लोग देह व्यापार के पेशे से जुड़े हुए हैं लेकिन उन्होंने ख़ुद को इस पेशे से बाहर कर लिया। रमेशभाई ने किसी अन्य गांव की एक आदिवासी लड़की से शादी भी की।
 
स्कूल नहीं : रमेशभाई कहते हैं, "वाडिया एक प्रतिबंधित नाम है। इस गांव के बाहर हम में से ज़्यादातर लोग कभी यह नहीं कहते कि हम वाडिया से हैं नहीं तो लोग हमें नीची नज़र से देखेंगे। अगर आज कोई औरत अपने बच्चों ख़ासकर बेटियों की बेहतर ज़िंदगी की ख़्वाहिश रखती भी हैं तो उसके पास कोई विकल्प नहीं होता है।"
 
वह बताते हैं, "वहां शादी जैसी कोई परंपरा नहीं है। कोई अपने बाप का नाम नहीं जानता। ज़्यादातर लड़कियों का जन्म ही सेक्स वर्कर बनने के लिए होता है और मर्द दलाल बन जाते हैं। वाडिया के किसी बाशिंदे को कोई नौकरी तक नहीं देता है।" रमेशभाई की तीन बेटियां और दो बेटे हैं। उन्होंने अपने बड़े बेटे को स्कूल भेजा लेकिन बेटियों को नहीं।
 
उनका कहना है, "कुछ गिने चुने परिवारों ने यह तय किया कि वे अपनी बेटियों को देह व्यापार में नहीं जाने देंगे। वे कभी भी अपनी बेटियों को नज़र से दूर नहीं करते, यहां तक कि स्कूल भी नहीं भेजते। गांव में सक्रिय दलालों से ख़तरे की भी आशंका रहती है। सुरक्षा कारणों से मैं अपनी बेटियों को स्कूल तक जाने की इजाज़त नहीं दे सकता। वे केवल शादी के बाद ही घर से बाहर जा पाएंगी।"
 
अग़वा का डर : रमेशभाई को हाल ही में नया गुर्दा लगाया गया है। उनकी पत्नी ने उन्हें किडनी दी है। रमेशभाई की तरह ही वाडिया गांव में 13 से 15 परिवार ऐसे हैं जो कि देह व्यापार के पेशे में अपनी बेटियों को नहीं भेजते हैं। हालांकि गांव की कई लड़कियों ने प्राइमरी स्कूल तक की तालीम हासिल की है लेकिन वाडिया में ऐसी कोई भी लड़की नहीं है जिसने छठी के बाद स्कूल देखा हो।
 
क्योंकि कोई भी मां-बाप अपनी बेटी को गांव के बाहर इस डर से नहीं भेजना चाहते हैं कि कहीं दलाल उनकी बेटी को अग़वा न कर ले। ऐसा लगता है कि जैसे वाडिया को किसी की परवाह नहीं है। वाडिया की यौनकर्मियों के ख़रीदार समाज के सभी वर्गों से आते हैं। इनमें मुंबई से लेकर अहमदाबाद तक के कारोबारी हैं, पास के गांवों के ज़मींदार हैं तो राजनेता भी और सरकारी अफ़सर भी।
 
वाडिया गांव का ये पेशा राज्य सरकार की नाक के नीचे फलता फूलता रहा है। इस गांव में एक पुलिस चौकी भी है लेकिन कोई पुलिसकर्मी शायद ही कभी यहां दिखाई देता है। हालांकि कुछ ग़ैर सरकारी संगठनों के अलावा शायद ही किसी ने वाडिया और उसकी औरतों के लिए सहानुभूति दिखाई हो।
 
सामाजिक समस्या : बांसकांठा के पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार यादव कहते हैं, "जब भी हमें ये ख़बर मिली कि गांव में कोई देह व्यापार कर रहा है तो हमने वहां छापा मारा। लेकिन इसके बावजूद हम वहां वेश्यावृत्ति को पूरी तरह से नहीं रोक पाए हैं क्योंकि यह एक सामाजिक समस्या है। ज़्यादातर परिवार अपनी लड़कियों को इस पेशे में भेजते रहे हैं।"
 
हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस की निगरानी बढ़ी है लेकिन दलालों और मानव तस्करों पर लगाम नहीं लगाई गई है। स्थानीय लोग बताते हैं कि ज़्यादातर गांव वालों को पता होता है कि पुलिस कब आने वाली है और इन छापों का कोई नतीजा नहीं निकलता।
 
देह व्यापार में कमी के दावों को ख़ारिज करते हुए पड़ोस के गांव में अस्पताल चलाने वाले एक डॉक्टर बताते हैं कि उनके पास कम उम्र की कई ऐसी लड़कियां और औरतें गर्भपात करवाने या फिर गुप्तांगों पर आई चोट की तकलीफ का निदान करवाने आती हैं। डॉक्टर ने अपना नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया कि उसने किशोर उम्र की लड़कियों को गर्भपात कराने में मदद की है।
 
लिंग परीक्षण : वह कहते हैं, "गर्भपात के लिए आई कई लड़कियों की हालत बेहद नाज़ुक होती हैं क्योंकि वे गर्भ ठहर जाने के बाद भी यौन संबंध बनाती रहती हैं। मैं जानता हूं कि जो मैं कर रहा हूं वो अनैतिक है लेकिन इस गांव में कई लड़कियां डॉक्टरी इलाज के अभाव में मर जाती हैं।"
 
डॉक्टर ने बताया कि दलाल कई बार इस बात पर ज़ोर देते हैं और कई बार तो धमकाते भी हैं कि मैं बच्चे के लिंग की जांच करूं और अगर वो बेटी हो तो उसका गर्भपात न किया जाए।
 
उन्होंने कहा, "वे ये नहीं समझते कि एक 11 साल की लड़की बच्चे को जन्म नहीं दे सकती लेकिन उनके लिए एक लड़की आमदनी का केवल एक ज़रिया भर होती है। इसलिए मैं गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग के बारे में बता देता हूं।"
 
देह व्यापार से जुड़ी औरतों के लिए काम करने वाले ग़ैर सरकारी संगठन 'विचर्त समुदाय समर्पण मंच' से जुड़ी मितल पटेल कहती हैं कि किसी भी सरकारी एजेंसी ने वाडिया गांव के लोगों के लिए सहानुभूति नहीं रखी। मुझे लगता है कि यह उनके हित में है कि वाडिया के लोगों के हालात वैसे ही बने रहें।
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