पोखरण के महानायक रहे अटल बिहारी वाजपेयी
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' | सोमवार,फ़रवरी 8,2021
जो जिया हो भारत भारती के लिए, जिसने ताउम्र केवल राष्ट्र को जिया, कविता के शब्दों से संसद के गर्भगृह को सुशोभित किया ...
नई शिक्षा नीति और हिंदी भाषा की उपयोगिता
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' | सोमवार,सितम्बर 14,2020
शिक्षा की व्यवस्था हो चाहे व्यवस्था की शिक्षा दोनों की स्थिति में भाषा का महत्व सर्वविदित है। व्यावहारिक जीवन शैली हो ...
आम चुनाव 2019 : सत्ता मौन, विपक्ष कौन और मुद्दे गौण
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' | सोमवार,अप्रैल 22,2019
भारत जैसे जनतांत्रिक देश में इस समय एक पर्व मनाया जा रहा है जिसे आम चुनाव कहते हैं। इस पर्व का उत्साह तो राजनीतिक लोगों ...
सनद रहे! देश में आम चुनाव हैं...
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' | गुरुवार,अप्रैल 4,2019
अफरा-तफरी का दौर शुरू हो गया। आवाजाही पर संदेह शुरू है। बैंड-बाजा-बारात भी तैयार है। हर तरफ चुनावी शोर है। वादों की ...
पुलवामा मामला : जिम्मेदार कौन या जिम्मेदार मौन?
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' | बुधवार,फ़रवरी 27,2019
सरहद और संसद दोनों पर ही मानसिक हमला हुआ है। न केवल घाटी दहल गई बल्कि उसी के साथ भारत की वो पीढ़ी भी दहल रही है जिसके ...
हिन्दी साहित्य का पक्ष रखने के लिए प्रवक्ताओं की आवश्यकता
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' | शुक्रवार,जनवरी 4,2019
हिन्दी भाषा भी वर्तमान में समृद्धशाली तो है, परंतु बड़े और झंडाबरदार लोगों के व्यामोह से ग्रसित भी है। हिन्दी का शाश्वत ...
मध्यप्रदेश चुनाव : शिव की नैया में रोड़ा है कमल का पंजा
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' | मंगलवार,नवंबर 20,2018
राजनीति की दशा और केंद्रीय कद में निर्णायक भूमिका में रहने वाले राज्य मध्यप्रदेश में चुनाव आ चुके हैं। मध्यप्रदेश में ...
न्यायालय के फैसले और आहत भारतीयता
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' | शनिवार,अक्टूबर 6,2018
भारत एक न केवल भूमि का टुकड़ा नहीं है बल्कि भारत के भारत होने के मतलब में ही भारतीयता संस्कार निहित है। संस्कार और ...
अनिवार्य शिक्षण में शामिल होने से ही बचेगा हिन्दी का भविष्य
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' | बुधवार,सितम्बर 12,2018
भारत बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक समन्वय वाला राष्ट्र है, जहां 'कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी' बदल जाती है। किंतु ...
लेखन को स्थायित्व और वैधता देती निजी वेबसाइट
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' | गुरुवार,सितम्बर 6,2018
इंटरनेट की इस दुनिया ने पाठकों की पहुंच और पठन की आदत दोनों ही बदल दी है। इसी के चलते प्रकाशन और लेखकों का नजरिया भी ...