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Last Updated : मंगलवार, 10 दिसंबर 2024 (14:32 IST)

निमाड़ की आध्यात्मिक पहचान 'संत सियाराम बाबा'

निमाड़ की आध्यात्मिक पहचान 'संत सियाराम बाबा' - Baba Siyaram
Saint of Madhya Pradesh : मध्यप्रदेश के खरगोन जिले की कसरावद तहसील में एक छोटा-सा गांव है तैली भट्यांण। वैसे तो यह गांव नर्मदा के तट पर प्राकृतिक सौंदर्य से आह्लादित है किन्तु इस गांव की प्रसिद्धि देश-विदेश में होने का महत्वपूर्ण और एकमात्र कारण हैं संत सियाराम बाबा।
 
कोई यह नहीं जानता कि बाबा आए कहां से और कैसे और क्यों इस गांव में आए। कुछ 60-70 वर्ष पहले इस गांव में बाबा आए और तब से लेकर आजतक तैली भट्यांण में ही बाबा ने अपना आश्रम बना लिया। बाबा ने कुटिया बनाई, हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की और सुबह-शाम राम नाम का जप और रामचरितमानस का पाठ करते रहते हैं बाबा।
 
कहते हैं बाबा का जन्म मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ, कक्षा 7-8 तक पढ़ाई की, फिर एक गुजराती साहूकार के यहां मुनीम का कार्य करने लगे। उसी काम के दौरान एक संन्यासी के दर्शन बाबा को हुए, मन में वैराग्य जागा, राम काज का भाव जागृत हुआ और वे हिमालय पर साधना के लिए चले गए।

यह भी कोई नहीं जानता कि सियाराम बाबा के गुरु कौन हैं? कितने वर्ष हिमालय में साधना की? यहां तक कि, बाबा के नाम के पीछे की कहानी भी बड़ी मज़ेदार है। कहते हैं कि बाबा ने 12 वर्षों तक मौन धारण करके रखा हुआ था। वहीं, जब 12 वर्ष बाद उन्होंने अपना मुख खोला, तो उनके मुख से पहला शब्द निकला ‘सियाराम’। इस वजह से गांव के लोगों ने उनका नाम सियाराम रख दिया और अब सियाराम बाबा के नाम से ही पूरे क्षेत्र में वे जाने जाते हैं।
 
इसके अलावा, बाबा ने 10 वर्षों तक खड़ेश्वर तप भी किया था। यह एक कठिन तप होता है, इसमें तपस्वी को सोने से लेकर दिन भर के सारे काम खड़े रहकर ही करने होते हैं। कहते हैं बाबा के खड़ेश्वर तप के दौरान नर्मदा नदी में बाढ़ आ गई थी और पानी बाबा के नाभि तक आ गया था, लेकिन बाबा अपनी जगह पर ही बने रहे। बाबा टस से मस नहीं हुए, मां रेवा वहां से चली गईं, यह बाबा के तप-बल का ही परिणाम है। वैसे खड़ेश्वरी साधना एक तरह का हठयोग है।
 
भारतीय संत परंपराओं में हठयोगी साधना में खड़ेश्वरी या खड़ेश्वर तप के नाम से प्रसिद्ध यह साधना बिरले ही कर पाते हैं। बाबा सियाराम की खड़ेश्वरी साधना ने बाबा में अद्भुत ऊर्जा का संचार किया। निराभिमानी बाबा सियाराम नियमित नर्मदा स्नान करते हैं और आज भी नर्मदा परिक्रमावासियों की सेवा करते हैं। आश्रम में उनके लिए भोजन इत्यादि की व्यवस्था भी रहती है। परिक्रमावासियों के ठहरने के लिए बाबा ने यात्री निवास भी बनवाए हैं।

सदाव्रत में बाबा दाल, चावल, तेल, नमक, मिर्च, कपूर, अगरबत्ती व बत्ती भी देते हैं। जो भी भक्त आश्रम आता है, बाबा अपने हाथों से चाय बनाकर पिलाते हैं। कई बार नर्मदा की बाढ़ की वजह से गांव के कई घर डूब जाते हैं। यहां तक कि, ग्रामीण लोग ऊँची और सुरक्षित जगह चले जाते हैं। लेकिन बाबा अपना आश्रम व मंदिर छोड़कर कहीं नहीं जाते। बाढ़ के दौरान मंदिर में बैठकर रामचरितमानस का पाठ करते हैं। बाढ़ उतरने पर ग्रामवासी उन्हें देखने आते हैं तो बाबा कहते हैं, ‘मां नर्मदा आई थीं, दर्शन व आशीर्वाद देकर चली गईं। मां से क्या डरना, वो तो मैया हैं।’

वर्तमान में जहां बाबा का आश्रम है, वह डूब में जाने वाला है। मध्यप्रदेश सरकार ने बाबाजी को मुआवज़े के 2 करोड़ 51 लाख दिए थे, दानी बाबा सियाराम ने मुआवज़े की पूरी राशि खरगोन के समीप ही ग्राम नांगलवाड़ी में नाग देवता के मंदिर में दान कर दी ताकि वहां भव्य मंदिर बन सके और भक्तों को सुविधा मिले। यहां तक कि श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में मंदिर निर्माण में भी बाबा ने ढाई लाख रुपए दान किए।
 
बाबा के आश्रम का नियम है कि वहां केवल 10 रुपए ही दान में स्वीकार किए जाते हैं और दानदाता का नाम रजिस्टर में बाबा दर्ज करते हैं। उन पैसों से नर्मदा परिक्रमावासियों का खाना और रहने की व्यवस्था वर्षों से आश्रम में होती आ रही है। वैसे तो निमाड़ की रत्नगर्भा धरती पर संत सियाराम बाबा का होना ही चमत्कार है।

प्रतिदिन 15 घंटे से अधिक समय तक बाबा रामचरितमानस का पाठ करते हैं। लाखों भक्तों की आस्था के केंद्र तैली भट्यांण में विशेषकर गुरु पूर्णिमा एवं सामान्य दिनों में भी बाबा का पूजन करने बड़ी संख्या में उनके भक्त आते हैं। बाबा की उम्र को लेकर भी कई बातें प्रचलित हैं, कोई 116 वर्ष बताता है तो कोई 130 वर्ष किन्तु प्राप्त जानकारियों के अनुसार 109 वर्ष की आयु है बाबा की।
 
महादानी, निराभिमानी संत हज़ारों वर्षों में एक बार जन्म लेते हैं। परम प्रतापी संत जीवन भर जो एक लंगोट में रहते हैं, ठंड हो, गर्मी हो चाहे बरसात हो, लाखों-करोड़ों देशी-विदेशी भक्तों की आस्था के केन्द्र संत सियाराम बाबा अपना कार्य स्वयं करते हैं। मां नर्मदा और हनुमान जी साक्षात् बाबा को दर्शन देते रहे हों, ऐसे संतों का दर्शन मात्र ही जीवन का सफल हो जाना है।
 
[लेखक डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)