* गंडमूल, पंचक तथा नक्षत्रों की महिमा जानिए...
- आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा 'वैदिक'
वैदिक साहित्य विशेष रूप से ऋग्वेद में सभी दिन-रात एवं मुहूर्त को शुभ माना जाता है। वाजसनेय संहिता का भी मानना है कि समस्त काल उस विराट पुरुष से ही उत्पन्न हुए हैं, इसीलिए सभी 'काल' पवित्र हैं, वैदिक ज्योतिष नक्षत्रों पर आधारित हैं।
ऋग्वेद में नक्षत्र उन लोकों को कहा गया है, जिसका क्षय नहीं होता। यजुर्वेद में नक्षत्रों को चंद्र की अप्सराएं तथा परमात्मा का रूप व अलंकार कहा गया है। तैत्तरीय ब्राह्मण इन्हें देवताओं का गृह मानता है। वास्तविकता तो यह है कि वैदिक साहित्य में सभी नक्षत्र शुभत्व के प्रतीक हैं।
समय के साथ परिस्थितियां बदलीं। नक्षत्रों का स्थान ज्योतिष में गौण हो गया तथा राशियां प्रधान हो गई हैं। 12 राशियां तथा 27 नक्षत्र राशिपथ में ग्रहों के गोचर में प्रमुख हो गए। इनके प्रभावों के आधार पर शुभ-अशुभ फल भी प्रचलित हुए।
एक राशि में 2.25 नक्षत्र का भाग आया, इसीलिए एक नक्षत्र को 4 चरणों में बांटा गया तथा एक राशि को 9 चरण प्राप्त हुए। 12 राशियों को 108 चरणों में विभक्त कर दिया, यही नवांश कहलाए तथा 108 की संख्या के शुभत्व का आधार भी यही 'नक्षण-चरण' विभाजन है।
फलित और मुहूर्त ज्योतिष की दुनिया बहुत ही निराली है। बहुत से भयदायक योगों का प्रचलन हुआ। इनमें विशेष रूप से शनि की साढ़ेसाती, मंगल दोष, कालसर्प योग, यात्रा के विशिष्ट समय, गंडमूल में जन्म के दोष तथा पंचक इत्यादि। हम यहां केवल गंडमूल व पंचक की चर्चा करेंगे।
गंडमूल संज्ञक नक्षत्र हैं- अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल तथा रेवती। इनमें अश्विनी, मघा तथा रेवती को छोटा मूल तथा आश्लेषा, ज्येष्ठा व मूल नक्षत्र को बड़ा मूल अर्थात अधिक हानिकारक माना गया है। इन नक्षत्रों में जन्मे बालक का मुंह देखना भी अशुभ माना जाता है। इन नक्षत्रों की शांति के विशेष उपाय प्रचलित हैं।
एक प्रसिद्ध आख्यान प्रचलित है कि मूल में जन्म लेने के कारण गोस्वामी तुलसीदासजी को उनके माता-पिता ने त्याग दिया था। गंडमूल नक्षत्रों में जन्म से संबंधित एक और धारणा भी फलित-ज्योतिष में प्रचलित है- 'गंडांत'। मघा मूल तथा अश्विनी नक्षत्र की प्रथम दो घड़ी (अर्थात 48 मिनट) ज्येष्ठा तथा रेवती नक्षत्र के अंतिम 48 मिनट की अवधि को 'गंडांत' कहा जाता है। इस समय को घातक माना गया है। गंडमूल नक्षत्रों के विभिन्न चरणों में जन्म के फल तालिका में बताए गए हैं।
गंडमूल संज्ञक नक्षत्रों में तीन केतु तथा तीन बुध के नक्षत्र हैं। बुध बुद्धि तथा केतु मोक्ष व आध्यात्मिक क्षेत्र का कारक है। इन नक्षत्रों का प्रभाव जातक पर स्पष्ट रूप से होता है। इन नक्षत्रों के जातक विलक्षण बुद्धि या आध्यात्मिक प्रकृति के होते हैं। इन नक्षत्रों में अश्विनी, मघा तथा मूल नक्षत्र से मेष, सिंह व धनु राशि प्रारंभ होती है। राशि तथा नक्षत्र के पहले 48 मिनट गंडांत हैं, अतः तीनों का प्रथम चरण अशुभ बताया गया है।
आश्लेषा, ज्येष्ठा तथा रेवती नक्षत्र से कर्क, वृश्चिक तथा मीन राशियां समाप्त होती हैं। यहां अंतिम 48 मिनट गंडांत हैं। अतः तीनों नक्षत्रों के अंतिम चरण का फल अशुभ है। वैसे भी फलकथन में लग्न संधि, भाव संधि, नक्षत्र संधि तथा राशि संधि समय में जन्म अशुभ माना गया है।
जहां तक चंद्रमा के बुध के नक्षत्रों में भ्रमण का प्रश्न है, वह स्वास्थ्य, चिंता व मानसिक कष्ट देता है। बुध का परम शत्रु चंद्रमा है। केतु मंगलवत होता है। चंद्रमा का केतु नक्षत्रों से भ्रमण धन व राजसुख की दृष्टि से उत्तम है। अतः गंडांत मूल को छोड़कर अन्य स्थिति में गंडमूल में भय खाने की आवश्यकता नहीं है।
संहिता ग्रंथों में मूलसंज्ञक नक्षत्रों का भयावह वर्णन है। इन ग्रंथों ने विभिन्न तरह से इनका फलकथन किया है। मूल नक्षत्र के निवास को स्वर्ग, पाताल व पृथ्वी लोक मानकर इनका फल कहा है। नक्षत्रों को पुरुषाकार मानकर विभिन्न अंगों के अनुसार समय विभाजन कर फल दिया गया है। कुछ संहिताओं ने नक्षत्र को वृक्ष मानकर समय विभाजन कर फल दिए हैं।
गंडांत मूल व वर्ष, मास, पक्ष, दिन, योग, करण तथा तिथि संधि के आधार पर भयावह फल दिए गए हैं। इन नक्षत्रों की शांति के भारी-भरकम शांति विधान भी प्रचलित हैं। वेदों में वर्णित देवराज इंद्र के ज्येष्ठा नक्षत्र की दुर्दशा जितनी फलितकारों ने की है, उतने ही परस्पर विरोधी फलकथन भी प्राप्त होते हैं। सत्य में कभी मतभेद नहीं होता, अतः इन नक्षत्रों के शास्त्रीकृत फलकथन में मतभेद क्या सिद्ध करता है? अब मुहूर्त ज्योतिष की विचित्रता देखें- मूल नक्षत्र में विवाह शुभ है, लेकिन ज्येष्ठा में नहीं। इसे क्या कहा जाएगा?
अगर गंडमूल की धारणा व उसके फल को स्वीकार कर लिया जाए तो मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन राशियां, केतु, बुध, रवि, चंद्रमा, मंगल तथा बृहस्पति ग्रह सदैव दूषित फल ही करेंगे? क्या यह संभव है? अतः गंडमूल से भय अनावश्यक है और भारी-भरकम शांति की व्यवस्था भी मिथ्या है।
नक्षत्रों से संबंधित एक और भ्रांत धारणा है पंचक। यह मुहूर्त ज्योतिष की धारणा है। चंद्रमा का धनिष्ठा के अंतिम दो चरण से, शतभिषा पूर्वा एवं उत्तरा भाद्रप्रद तथा रेवती नक्षत्र से भ्रमण को पंचक नाम दिया गया है। इन नक्षत्रों में शवदाह, भवन की छत डालना, लकड़ी-कंडे एकत्रित करना, यात्रा तथा अन्य शुभ कार्य वर्जित हैं।
यहां एक तथ्य रोचक है- पंचक में किया गया कार्य पांच मर्तबा करना होता है। मुहूर्त ज्योतिष की विलक्षणता- पुष्य शुभ व स्थिर नक्षत्र है। सभी शुभ कार्य इसमें होते हैं। विवाह पुष्य नक्षत्र में नहीं होता है। पंचक अशुभ है, लेकिन विवाह होता है। शायद एक स्थिर विवाह की अपेक्षा पांच विवाह करना ज्यादा सुखद है?
फलित व मुहूर्त ज्योतिष में बहुत-सी भ्रांतियां व विरोधाभास मिलते हैं। गंडमूल व पंचक संज्ञक नक्षत्रों से भय खाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वैदिक साहित्य में सभी नक्षत्रों को शुभ कहा गया है।