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रक्षाबंधन पर क्यों और कैसे करें श्रावणी कर्म

रक्षाबंधन पर क्यों और कैसे करें श्रावणी कर्म -
श्रावण की पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण-वर्ग अपने यज्ञोपवीत बदलते हैं जिसे श्रावणी-कर्म कहा जाता है। विशेषकर श्रावणी कर्म के लिए श्रवण नक्षत्र देखा जाता है। इस बार रक्षाबंधन 21 अगस्त को है एवं श्रवण नक्षत्र 19 अगस्त को दोपहर 03.25 से 20 अगस्त को दोपहर 01.57 मिनट तक रहेगा। परंतु 20 अगस्त को भद्रा है जो रात्रि 08.45 तक रहेगी। अत: भद्रा में श्रावणी-कर्म नहीं होता इसलिए श्रावणी कर्म 21 अगस्त को ही करें।

यज्ञोपवीत धागा मात्र नहीं होता, यज्ञोपवीत के नौ तंतुओं में ॐकार, अग्नि आदि भिन्न-भिन्न देवताओं का आह्वान किया जाता है। ब्राह्मण एक वर्ष में रक्षाबंधन के दिन अर्थात् श्रावणी कर्म में यह अभिमंत्रित कर लेते हैं।

कैसे करें अभिमंत्रित संक्षिप्त में जाने विधि : -

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रक्षाबंधन के दिन पवित्र नदी में स्नान करें, यदि नदी में स्नान नहीं हो पाए तो घर में किसी पवित्र नदी गंगा, सरयू, नर्मदा, कावेरी, क्षिप्रा इत्यादि के जल से स्नान कर लें।

पूजन की सारी सामग्री अपने पास रख लें, फिर यज्ञोपवीत को पलास आदि के पत्ते पर रखकर जल से प्रक्षालित कर लें (धो लें)। फिर एक-एक मंत्र पढ़कर चावल अथवा फूल से यज्ञोपवीत पर छोड़ते जाए।

प्रथमतंतो ॐकार आवाहयामि।

द्वितीयतंतो ॐ अग्नि-आवाहयामि।

तृतीयतंतो ॐ सर्पानावह्यमि।

चतुर्थतन्तो ॐ सोममावाहयामि।

पञ्चमतंतो ॐ पितृनावाहयामि।

षष्ठतंतो ॐ प्रजापतिमावाहयामि।

सप्तमतंतो ॐ अनिलमावाहयामि।

अष्टमतंतो ॐ सूर्यमावाहयामि।

नवमतंतो ॐ विश्वान, देवानावाहयामि।

प्रथमग्रंथो ॐ ब्रह्मणे नम:, ब्रह्मणमावाहयामि।

द्वितीयग्रंथो ॐ विष्णवे नम:विष्णुमावाहयामि।

तृतीयग्रंथो ॐ रूद्रमावाहयामि।

फिर तंतो का चन्दन आदि से पूजन करें इसके बाद यज्ञोपवीत (जनेऊ) को दस बार गायत्री मंत्र पढकर अभिमंत्रित कर लें।


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इसके बाद जल हाथ में लेकर संकल्प कर निम्न विनियोग करके गायत्री मंत्र पढ़कर एक यज्ञोपवीत पहनें, इसके बाद आचमन करें। फिर दूसरा यज्ञोपवीत पहनें।

विनियोग :- ॐ यज्ञोपवीतमिति मंत्रस्य परमेष्ठी ऋषि:,लिङ्गोक्ता देवता:,त्रिष्टुप' छन्द:,यज्ञोपवितधारणे विनियोग:।

नए यज्ञोपवीत को पहनने के बाद पुराने यज्ञोपवीत को कंठी जैसा बनाकर सिर पर से पीठ की ओर निकालकर उसे जल में प्रवाहित कर दें।


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यज्ञोपवित कब बदलें- यदि यज्ञोपवीत कंधे से सरक कर बाए हाथ के नीचे आ जाए, गिर जाए, टूट जाए, शौच आदि के समय कान पर डालना भूल जाए और अस्पृश्य हो जाए तब नया यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए।

कौन यज्ञोपवीत धारण करें :- गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रम वाले को दो यज्ञोपवीत पहनना आवश्यक है। ब्रह्मचारी एक जनेऊ पहनें।

विशेष :- चार महीने बिताने पर नया यज्ञोपवीत पहने एवं उपाकर्म में, जननाशौच और मरणाशौच में, श्राद्ध में, यज्ञ आदि में, चंद्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण समाप्त होने पर नए यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए