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शनि प्रदोष व्रत रखने के 5 फायदे

Shani Pradosh Vrat 2021: शनि प्रदोष व्रत रखने के 5 फायदे - Shani pradosh vrat 2021
प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकदशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं। त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं। वर्ष में कुल 24 और हर तीसरे वर्ष अधिकमास होने से 26 प्रदोष होते हैं। आओ जानते हैं प्रदोष व्रत करने के 5 फायदे।
 
 
हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है। सोमवार के प्रदोष को सोम प्रदोष, मंगल के प्रदोष को भौम प्रदोष और शनि के दिन आने वाले प्रदोष को शनि प्रदोष करते हैं। अन्य वार को आने वाला प्रदोष सभी का महत्व और लाभ अलग अलग है।
 
1. शनि प्रदोष का विधिवत व्रत रखने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। 
 
2. शनि प्रदोष का व्रत रखते से हर तरह की मनोकामना भी पूर्ण होती है। 
 
3. शनि प्रदोष का व्रर विधिवत रखने से नौकरी में पदोन्नति की प्राप्ति के योग भी बनते हैं।
 
4. शनि प्रदोष के व्रत को पूर्ण करने से अतिशीघ्र कार्यसिद्धि होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। सर्वकार्य सिद्धि हेतु शास्त्रों में कहा गया है कि यदि कोई भी 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं अवश्य और शीघ्रता से पूर्ण होती है।
 
5. प्रदोष रखने से आपका चंद्र ठीक होता है। अर्थात शरीर में चंद्र तत्व में सुधार होता है। माना जाता है कि चंद्र के सुधार होने से शुक्र भी सुधरता है और शुक्र से सुधरने से बुध भी सुधर जाता है। मानसिक बैचेनी खत्म होती है।
 
प्रदोष व्रत में क्या खाएं और क्या नहीं-
प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्‍वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है। प्रदोष व्रत में लाल मिर्च, अन्न, चावल और सादा नमक नहीं खाना चाहिए। हालांकि आप पूर्ण उपवास या फलाहार भी कर सकते हैं।
 
प्रदोष व्रत की विधि-
व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठें। नित्यकर्म से निपटने के बाद सफेद रंग के कपड़े पहने। पूजाघर को साफ और शुद्ध करें। गाय के गोबर से लीप कर मंडप तैयार करें। इस मंडप के नीचे 5 अलग अलग रंगों का प्रयोग कर के रंगोली बनाएं। फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और शिव जी की पूजा करें। पूरे दिन किसी भी प्रकार का अन्य ग्रहण ना करें।
 
प्रदोष कथा-
प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है। संक्षेप में यह कि चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्टों हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया था अत: इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।