मंदिरों में हम कुछ विशेष धार्मिक गतिविधियां करते हैं। हाथ जोड़ने से लेकर, सिर झुकाने, घंटी बजाने और परिक्रमा करने तक.. लेकिन यह हम परंपरागत रूप से करते आए हैं। इनके पीछे के रहस्य से हम अवगत नहीं होते। आइए आज जानते हैं कि प्रतिमाओं की परिक्रमा क्यों की जाती है...
प्राण-प्रतिष्ठित देवमूर्ति जिस स्थान पर स्थापित होती है, उस स्थान के मध्य से चारों ओर कुछ दूरी तक दिव्य शक्ति का आभामंडल रहता है। उस आभामंडल में उसकी आभा-शक्ति के सापेक्ष परिक्रमा करने से श्रद्धालु को सहज ही आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति दक्षिणवर्ती होती है।
इसी कारण दैवीय शक्ति का तेज और बल प्राप्त करने के लिए भक्त को दाएं हाथ की ओर परिक्रमा करनी चाहिए। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति और हमारे अंदर की आंतरिक शक्ति के बीच टकराव होने लगता है। परिणामस्वरूप हमारा अपना जो तेज है, वह भी नष्ट होने लगता है। अतएव देव प्रतिमा की विपरीत परिक्रमा नहीं करनी चाहिए।
इसी कारण दैवीय शक्ति का तेज और बल प्राप्त करने के लिए भक्त को दाएं हाथ की ओर परिक्रमा करनी चाहिए। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति और हमारे अंदर की आंतरिक शक्ति के बीच टकराव होने लगता है। परिणामस्वरूप हमारा अपना जो तेज है, वह भी नष्ट होने लगता है। अतएव देव प्रतिमा की विपरीत परिक्रमा नहीं करनी चाहिए।