jyeshtha purnima 2024 : ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा का खासा महत्व होता है। इस दिन वट सावित्री व्रत की पूर्णिमा भी रहती है। आओ जानते हैं इसका महत्व, पूजा विधि और इस दिन किए जाने वाले खास ज्योतिषीय उपाय। इससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आएगी।
कैसे करें पूजा, क्या बोलें मंत्र:-
चंद्र को अर्घ्य चढ़ाएं वक्त बोलें ये मंत्र:- ऊँ सों सोमाय नम:।
श्रीराम नाम का या ऊँ नम: मंत्र का जाप 108 बार करें।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत पूजा विधि:
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सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
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वट सावित्री व्रत की तरह ही इस दिन भी 16 श्रृंगार करें। इसके बाद वट वृक्ष की पूजा करें।
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बरगद के पेड़ में जल अर्पित कर पुष्प, अक्षत, फूल और मिठाई चढ़ाएं।
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अब वट वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करें।
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वट वृक्ष की परिक्रमा करें और अपने घर के बुजुर्गों से आशीर्वाद लें।
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इस दिन पूजा के बाद श्रृंगार का सामान किसी अन्य सुहागन महिला को देना चाहिए।
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इस दिन बरगद के पेड़ में कच्चा दूध चढ़ाने से योग्य वर और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तथा विवाह में आ रही सभी बाधाएं दूर होती हैं।
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वट पूर्णिमा व्रत के दिन सात्विक आहार और विशेषकर मीठी चीजों का सेवन करना चाहिए।
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इसके बाद भीगे हुए चनों का बायना निकालकर,उस पर रुपये रखकर सास के चरण स्पर्श कर देना चाहिए।
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व्रत के बाद फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करनी चाहिए।ALSO READ: Vat Purnima 2024: वट सावित्री पूर्णिमा पर बन रहे हैं शुभ संयोग, कर लें 5 अचूक उपाय
वट पूजा की सरल विधि:
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इस पूजन में महिलाएं चौबीस बरगद फल (आटे या गुड़ के) और चौबीस पूरियां अपने आंचल में रखकर बारह पूरी व बारह बरगद वट वृक्ष में चढ़ा देती हैं।
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वृक्ष में एक लोटा जल चढ़ाकर हल्दी-रोली लगाकर फल-फूल, धूप-दीप से पूजन करती हैं।
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कच्चे सूत को हाथ में लेकर वे वृक्ष की बारह परिक्रमा करती हैं।
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हर परिक्रमा पर एक चना वृक्ष में चढ़ाती जाती हैं और सूत तने पर लपेटती जाती हैं।
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परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं।
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फिर बारह तार (धागा) वाली एक माला को वृक्ष पर चढ़ाती हैं और एक को गले में डालती हैं। छः बार माला को वृक्ष से बदलती हैं, बाद में एक माला चढ़ी रहने देती हैं और एक पहन लेती हैं। जब पूजा समाप्त हो जाती है तब महिलाएं ग्यारह चने व वृक्ष की बौड़ी (वृक्ष की लाल रंग की कली) तोड़कर जल से निगलती हैं। इस तरह व्रत समाप्त करती हैं।
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इसके पीछे यह कथा है कि सत्यवान जब तक मरणावस्था में थे तब तक सावित्री को अपनी कोई सुध नहीं थी लेकिन जैसे ही यमराज ने सत्यवान को प्राण दिए, उस समय सत्यवान को पानी पिलाकर सावित्री ने स्वयं वट वृक्ष की बौंडी खाकर पानी पिया था।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का उपाय:
1. दान : इस दिन किसी योग्य ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद व्यक्ति को अपनी श्रद्धानुसार दान-दक्षिणा देने से पुण्यफल प्राप्त होता है तथा प्रसाद में चने व गुड़ का वितरण करने का महत्व है।
2. वृक्षारोपण : प्राचीन ग्रंथ वृक्षायुर्वेद में बताया गया है कि जो यथोचित रूप से बरगद के वृक्ष लगाता है, वह शिव धाम को प्राप्त होता है।
3. बरगद पूजा : इस दिन बरगद के पेड़ के नीचे विष्णुजी का ध्यान करते हुए घी का दीपक प्रज्वलित करें और साथ ही कपूर और लोंग भी जला दें। ऐसे करने से जीवन में आ रही बाधाओं से मुक्ति मिलती है। नौकरी में सफलता मिलती है। घर और बाहर हो रहा कलह कलेश बंद हो जाएगा।
4. शिवलिंग पूजा : बरगद के वृक्ष के नीचे स्थापित शिवलिंग की रोज पूजा करें, सुख और समृद्धि बढ़ जाएगी। बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है। इस दिन शिव-पार्वती के साथ ही विष्णु-लक्ष्मी जी का पूजन अवश्य ही करना चाहिए।
5. चंद्र पूजा : पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के समय चंद्रमा को कच्चे दूध में चीनी और चावल मिलाकर मंत्र- 'ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमसे नम:' का जप करना उत्तम रहता है। मंत्र 'ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:' का जप करते हुए चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। इससे आर्थिक समस्या खत्म होती है।
6. पीपल पूजा : पूर्णिमा के दिन पीपल के वृक्ष पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है। सुबह उठकर पीपल के पेड़ के सामने कुछ मीठा चढ़ाकर जल अर्पित करें। इससे माता लक्ष्मी की कृपा मिलेगी।