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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 17 जून 2024 (16:47 IST)

Vat Savitri Purnima : वट सावित्री पूर्णिमा व्रत रखने से पहले जान लें ये 10 खास बातें

Vat Savitri Vrat
Vat Savitri Purnima 2024: वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या के बाद पूर्णिमा के दिन रखा जाता है। 6 जून को वट सावित्री अमावस्या के बाद अब 21 जून 2024 को वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा। इसी दिन योग दिवस भी रहेगा और साल का बड़ा दिन भी रहेगा। आओ जानते हैं वट सावित्री पूर्णिमा व्रत की 10 खास बातें।
 
1. स्कन्द व भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है।ALSO READ: Vat Savitri Vrat : पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री व्रत के दिन इस तरह करें बरगद की पूजा
 
2. भारत में अमानता व पूर्णिमानता ये 2 मुख्य कैलेंडर प्रचलित हैं। पूर्णिमानता कैलेंडर के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या जबकि अमानता कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाते हैं, जिसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं। 
 
3. उत्तर भारत में अमावस्या का महत्व है तो दक्षिण भारत में पूर्णिमा का। वट सावित्री अमावस्या का व्रत खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पंजाब और हरियाणा में ज्यादा प्रचलित है जबकि वट पूर्णिमा व्रत महाराष्ट्र, गुजरात सहित दक्षिण भारत के क्षेत्रों में प्रचलित है। 
 
4. वट सावित्री का व्रत शादीशुदा महिलाएं अपने पति की भलाई और उनकी लम्बी उम्र के लिए रखती हैं। मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से पति की अकाल मृत्यु टल जाती है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।
 
5. दोनों ही व्रत के दौरान महिलाएं वट अर्थात बरगद की पूजा करके उसके आसपास मन्नत का धागा बांधती है। वट अर्थात बरगद का वृक्ष आपकी हर तरह की मन्नत को पूर्ण करने की क्षमता रखता है।ALSO READ: Vat Savitri Vrat : वट सावित्री व्रत के दिन भूलकर भी न करें ये गलतियां वर्ना पछताएंगे
 
6. पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसलिए इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने का विशेष महत्व है। 
 
7. इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से घर में सुख-शांति, और धनलक्ष्मी का वास होता है। 
 
8. दोनों ही व्रतों के पीछे की पौराणिक कथा दोनों कैलेंडरों में एक जैसी है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 
 
9. सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है। 
 
10. इस व्रत को सभी प्रकार की स्त्रियां (कुमारी, विवाहिता, विधवा, कुपुत्रा, सुपुत्रा आदि) रख सकती हैं। ALSO READ: Vat savitri vrat 2024: वट सावित्री अमावस्या व्रत पर इन मंत्रों से करें पूजा तो मिलेगा तुरंत फल
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