वर्ष 2020 में रविवार को चम्पा षष्ठी पर्व मनाया जा रहा है। चम्पा षष्ठी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र कार्तिकेय की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान कार्तिकेय षष्ठी तिथि और मंगल ग्रह के स्वामी हैं तथा दक्षिण दिशा में उनका निवास स्थान है। इसीलिए जिन जातकों की कुंडली में कर्क राशि अर्थात् नीच का मंगल होता है, उन्हें मंगल को मजबूत करने तथा मंगल के शुभ फल पाने के लिए इस दिन भगवान कार्तिकेय का व्रत करना चाहिए, क्योंकि स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को प्रिय होने के जातकों को इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।
पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिकेय अपने माता-पिता और छोटे भाई श्री गणेश से नाराज होकर कैलाश पर्वत छोड़कर मल्लिकार्जुन (शिव जी के ज्योतिर्लिंग) आ गए थे और कार्तिकेय ने स्कंद षष्ठी को ही दैत्य तारकासुर का वध किया था तथा इसी तिथि को कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बने थे।
भगवान कार्तिकेय को चम्पा के फूल पसंद होने के कारण ही इस दिन को स्कंद षष्ठी के अलावा चम्पा षष्ठी भी कहते हैं। भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है। ज्ञात हो कि स्कंद पुराण कार्तिकेय को ही समर्पित है। स्कंद पुराण में ऋषि विश्वामित्र द्वारा रचित कार्तिकेय 108 नामों का भी उल्लेख हैं। इस दिन निम्न मंत्र से कार्तिकेय का पूजन करने का विधान है।
खासकर दक्षिण भारत में इस दिन भगवान कार्तिकेय के मंदिर के दर्शन करना बहुत शुभ माना गया है। चम्पा षष्ठी का त्योहार दक्षिण भारत, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि में प्रमुखता से मनाया जाता है। कार्तिकेय को स्कंद देव, मुरुगन, सुब्रह्मन्य नामों से भी जाना जाता है।
स्कंद षष्ठी पूजन विधि :
* स्कंद षष्ठी के दिन व्रतधारी व्यक्तियों को दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके भगवान कार्तिकेय का पूजन करना चाहिए।
* पूजन में घी, दही, जल और पुष्प से अर्घ्य प्रदान करना चाहिए।
* रात्रि में भूमि पर शयन करना चाहिए।
भगवान कार्तिकेय की पूजा का मंत्र -
* 'देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव।
कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥'
शत्रु नाश के लिए पढ़ें ये मंत्र-
* ॐ शारवाना-भावाया नम:
ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा
देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते।
इसके अलावा स्कंद षष्ठी एवं चम्पा षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय के इन मंत्रों का जाप भी किया जाना चाहिए।
* कार्तिकेय गायत्री मंत्र- 'ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात'।
यह मंत्र हर प्रकार के दुख एवं कष्टों के नाश के लिए प्रभावशाली है। इस तरह से भगवान कार्तिकेय का पूजन-अर्चन करने से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
स्कंद की कथाएं-
शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है। उनके जन्म की कथा भी विचित्र है। कार्तिकेय की पूजा मुख्यत: दक्षिण भारत में होती है। अरब में यजीदी जाति के लोग भी इन्हें पूजते हैं, ये उनके प्रमुख देवता हैं। उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश उत्तर कुरु के क्षेत्र विशेष में ही इन्होंने स्कंद नाम से शासन किया था। इनके नाम पर ही स्कंद पुराण है।
कथा 1 : जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी 'सती' कूदकर भस्म हो गईं, तब शिवजी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है। इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है। देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं। तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा।
इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शंकर 'पार्वती' के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है। कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।
कथा 2 : एक दूसरी कथा के अनुसार कार्तिकेय का जन्म 6 अप्सराओं के 6 अलग-अलग गर्भों से हुआ था और फिर वे 6 अलग-अलग शरीर एक में ही मिल गए थे।