भाग्येश का भाग्य को देखना भाग्यवर्धक.....
किसी भी जातक की जन्मकुंडली में नवम भाव सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाना चाहिए। यदि आपके पास धन न हो तो चलेगा, विद्या न हो तब भी चलेगा, मकान-भूमि न हो, तब भी चलेगा, परिवार का साथ न हो, न ही भाई-बंधु मित्र का साथ मिले, तब भी चलेगा, लेकिन नवम भाव का यानी भगवान का साथ न हो तो जीवन नरक बन ही जाता है। नवम भाव लग्न से गिनने पर नौवें घर को कहा जाता है। नवम भाव में जो भी राशि नंबर होगा, उसे भाग्येश कहा जाएगा। नवम भाव में कर्क राशि यानी चार नंबर हो तो उसका स्वामी चंद्रमा होगा और ये वृश्चिक लग्न में भाग्येश होगा और चंद्रमा यदि अष्टम भाव में हो तो भाग्य से द्वादश होने के कारण भाग्योदय में बाधाएँ आती हैं। धर्म-कर्म में भी आस्था कम ही रहेगी। चंद्रमा लग्न में होने से नीच का होगा और भाग्योन्नति में बाधक रहेगा। सप्तम भाव में हो तो विवाह बाद भाग्योदय होगा। तृतीय भाव में होने से भाग्य में प्रयत्नपूर्वक सफलता दिलाएगा। मेष लग्न में नवम भाव का स्वामी द्वादशेश गुरु होगा। गुरु यदि नवम भाव में हो तो भाग्योदय 26 वर्ष में होता है। पंचम हो तो विद्या का लाभ पाएगा। चतुर्थ भाव में हो तो भाग्य से सुख, जनता से लाभ, स्टेशनरी से भी धन कमाएगा, माता भक्त होगा। तृतीय भाव में हो तो भाग्य उत्तम रहेगा। दशम में नीच का होने से थोड़ी कठिनाई आएगी। वृषभ लग्न में भाग्येश शनि होगा, जो कर्मेश होगा। भाग्येश यदि कर्म दशम भाव में हो तो वह जातक स्टील फर्नीचर के व्यापार में लाभ पाता है तथा राजनीति में भी सफल होता है। तृतीय भाव में भाग्य की स्थिति भाग्योदय 36 वर्ष में कराएगी। षष्ट भाव में हो तो शत्रु का नाश होगा, लेकिन पाँव या घुटनों में तकलीफ होगी। चतुर्थ भाव में माता को तकलीफ रहती है तथा सप्तम भाव में पत्नी बीमार रहती है।
मीन लग्न में मंगल की उत्तम स्थिति लग्न द्वितीय षष्ट एकादश भाव में उत्तम परिणाम देगी। अष्टम में आयु में बाधक होगी, वहीं द्वितीय में भी दाम्पत्य में कुछ अशुभ परिणाम देगी। |
|
अष्टम में आयुवर्धक लग्न में साँवला रंग होता है, द्वितीय में होने से व्यक्ति कंजूस होगा। यदि अष्टम भाव में हो तो देरी से भाग्योन्नति करता है। तृतीय भाव में हो तो भाग्य उत्तम रहता है। पंचम में हो तो संतान बलवान, भाग्यशाली होगी। द्वितीय भाव में आयुवर्धक, लेकिन लाभ में दिक्कत देगा। द्वादश में हो तो बाहर से लाभ देगा। कर्क लग्न में भाग्येश गुरु होगा। गुरु की लग्न में स्थिति भाग्यशाली बनाएगी। पंचम भाव में संतान बाधक तृतीय में भाग्यवर्धक भाइयों से लाभ होगा। अष्टम में भाग्योन्नति में बाधक रहेगा। सिंह लग्न में भाग्येश मंगल होगा। यदि भाग्येश भाग्य में हो तो भाग्यशाली बनाता है। लग्न में भी प्रभावशाली बनाएगा। चतुर्थ तृतीय पंचम भाव में शुभ परिणाम देगा। षष्ट भाव में होने से शत्रुहन्ता, भाग्यवर्धक राज्य लाभ देने वाला होगा। कन्या लग्न में शुद्ध भाग्येश होगा। भाग्येश भाग्य में हो तो धनवान, भाग्यवान होगा। सप्तम में पत्नी से लाभ द्वितीय भाव में कुटुंब से लाभ पंचम में मनोरंजन से लाभ, संतान से लाभ, भाग्यशाली होगा। तुला लग्न में बुध भाग्येश होगा और ऐसे जातक को बाहर से लाभ दिलाएगा, जब बुध द्वादश में हो। नवम तृतीय में स्थिति, उत्तम भाग्यशाली होगा। एकादश में धन भाग्य से मिलेगा। अष्टम में भाग्य अवरुद्ध होता है। धनु लग्न में भाग्य का स्वामी सूर्य पंचम, तृतीय चतुर्थ दशम लग्न में उत्तम परिणाम देगा। नवम भाव में हो तो जातक भाग्यवर्धक होगा। मकर लग्न में बुध नवम में हो तो शत्रु से भी लाभ दिलाएगा। बुध द्वितीय चतुर्थ एकादश लग्न में स्थिति उत्तम सफलता का वरदान होगी। कुंभ लग्न में भाग्येश शुक्र होगा। शुक्र चतुर्थ, तृतीय, द्वितीय, लग्न में स्थिति शुभ परिणाम देगी। अष्टम में कुछ बाधाओं के बाद सफलता धन की वृद्धि कराएगा। मीन लग्न में मंगल की उत्तम स्थिति लग्न द्वितीय षष्ट एकादश भाव में उत्तम परिणाम देगी। अष्टम में आयु में बाधक होगी, वहीं द्वितीय में भी दाम्पत्य में कुछ अशुभ परिणाम देगी।